مقالات تخصصي ايثار و شهادت
عنوان : وصاياي شهداي دفاع مقدس درباره امام زمان (عج)
كلمات كليدي : وصيت نامه ، سفارشها و پيامها ، شهدا ، دفاع مقدس ، امام زمان(عج)
نويسنده : مصطفي عليزاده گل سفيدي , سيد علي موسوي ركعتي
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
|
مقوله كلي
|
فراواني
|
درصد
|
|
براي تعجيل در ظهور امام زمان چه بايد كرد
|
453
|
87/59
|
|
انسان كامل از منظر امام زمان
|
119
|
97/15
|
|
سفارش شهدا به مردم كدام خصوصيات و ويژگي را كسب كنند تا خشنودي امام زمان تامين گردد
|
82
|
87/10
|
|
امام زمان از منظر شهيدان
|
55
|
25/7
|
|
كدام رفتارها را از خود دور سازيم تا امام زمان ناخشنود نشوند
|
48
|
34/6
|
|
جمع
|
757
|
100
|
|
مقوله هاي جزيي
|
فراواني
|
درصد
|
درصد از كل
|
|
دعا براي فرج امام
|
114
|
16/25
|
05/15
|
|
اطاعت و پشتيباني از امام خميني ، ولايت فقيه وروحانيت
|
69
|
10/15
|
98/8
|
|
مراقبت از نفس و حفظ ايمان
|
333
|
28/7
|
|
|
حفظ انقلاب
|
33
|
28/7
|
35/4
|
|
ادامه راه شهيدان
|
32
|
06/7
|
22/4
|
|
پيروزي بر كفار و منافقين
|
27
|
96/7
|
56/3
|
|
صيانت از اسلام
|
23
|
07/5
|
03/3
|
|
وحدت و همدلي
|
20
|
41/4
|
64/2
|
|
تربيت فرزنداني عاشق امام زمان
|
19
|
19/4
|
50/2
|
|
شركت در نماز جمعه و جماعات
|
199
|
19/4
|
|
|
دعا براي سلامتي امام زمان
|
17
|
75/3
|
24/2
|
|
كسب علم و دانش
|
13
|
86/2
|
71/1
|
|
هوشياري و بي تفاوت نبودن
|
10
|
20/2
|
32/1
|
|
ياري رساندن به محرومان
|
9
|
98/1
|
18/1
|
|
نثار خون و شهادت
|
8
|
76/1
|
05/1
|
|
ايستادگي در مقابل ظلم و بي عدالتي و فساد
|
3
|
66/
|
39/
|
|
شناخت اسلام و عمل به آن
|
2
|
44/
|
26/
|
|
ياري رساندن به ديگر مسلمانان
|
2
|
44/
|
26/
|
|
جمع
|
453
|
100
|
84/59
|
|
رديف
|
مقوله جزيي
|
فراواني
|
درصد
|
درصداز كل
|
|
1
|
پيروي از ولايت فقيه
|
74
|
18/62
|
77/9
|
|
2
|
جهاد در راه خدا و بذل جان ، فرزند و مال
|
21
|
64/17
|
77/2
|
|
3
|
ياري جستن از امام زمان
|
9
|
56/7
|
18/1
|
|
4
|
همكاري با دولت
|
6
|
04/5
|
79
|
|
5
|
صبر و شكيبايي
|
55
|
20/4
|
66/
|
|
حركت براي آزادي و رهايي مستضعفان
|
4
|
63/3
|
52/
|
|
|
جمع
|
119
|
100
|
71/15
|
|
رديف
|
مقوله هاي جزيي
|
فراواني
|
درصد
|
درصدازكل
|
|
1
|
پشتيباني از ولايت فقيه
|
19
|
17/23
|
50/2
|
|
2
|
تلاش براي مراقبت از نفس
|
10
|
16/12
|
32/1
|
|
ايثار و فداكاري
|
9
|
27/10
|
18/1
|
|
|
4
|
ياد خدا
|
8
|
75/9
|
05/1
|
|
5
|
رعايت پوشش اسلامي
|
8
|
75/9
|
05/1
|
|
6
|
زمينه سازي براي ظهور و انتظار فرج
|
5
|
09/6
|
66/
|
|
7
|
شركت در جبهه
|
5
|
09/6
|
66/
|
|
8
|
كسب علم و دانش
|
44
|
87/4
|
52/
|
|
شركت در نماز جمعه و جماعت
|
3
|
65/3
|
39/
|
|
|
10
|
حفظ انقلاب و سپردن آن به صاحب اصلي
|
3
|
65/3
|
39/
|
|
11
|
تربيت صحيح فرزندان
|
22
|
52/
|
52/
|
|
خواندن دعا) كميل و زيارت عاشورا( و نماز امام زمان
|
2
|
52/
|
52/
|
|
|
13
|
رضايت والدين
|
1
|
21/1
|
26/
|
|
14
|
پيوند با روحانيت
|
1
|
21/1
|
26/
|
|
15
|
خوداري از اسراف
|
1
|
21/1
|
26/
|
|
16
|
پيش قدم بودن در كارها
|
1
|
21/1
|
26/
|
|
جمع
|
82
|
100
|
55/10
|
|
رديف
|
مقوله هاي جزيي
|
فراواني
|
درصد
|
درصد از كل
|
|
1
|
امام زمان صاحب اصلي انقلاب و كشور
|
26
|
1/47
|
35/3
|
|
2
|
گستراننده عدالت در جهان
|
166
|
10/30
|
14/2
|
|
منتقم خون شهيدان
|
7
|
20/13
|
92/
|
|
|
4
|
نابودكننده كفر و الحاد
|
6
|
43/9
|
79/
|
|
جمع
|
555
|
100
|
11/7
|
|
رديف
|
مقوله جزيي
|
فراواني
|
درصد
|
درصد از كل
|
|
1
|
دوري از روحانيت و امام
|
14
|
76/10
|
84/1
|
|
2
|
رنجش ولايت فقيه
|
10
|
59/7
|
32/1
|
|
3
|
گريه كردن براي شهيد
|
7
|
38/5
|
92/
|
|
4
|
اصرار برمحرمات و انجام گناه و امور حرام
|
7
|
38/5
|
92/
|
|
تفرقه و جدايي
|
4
|
07/3
|
52/
|
|
|
6
|
غفلت از خودسازي و مراقبت از نفس
|
4
|
07/3
|
52/
|
|
7
|
دوري از راه و آرمان شهيدان
|
1
|
76/
|
13/
|
|
8
|
غفلت از فلسفه ظهور و انتظار
|
1
|
76/
|
13/
|
|
جمع
|
48
|
100
|
34/6
|
|
رديف
|
نوع سفارش
|
فراواني
|
درصد
|
|
1
|
سياسي
|
415
|
82/54
|
|
2
|
عبادي (خودسازي، رعايت احكام و شئون ديني)
|
245
|
36/32
|
|
3
|
اجتماعي
|
97
|
82/12
|
|
جمع
|
7577
|
100
|
|
رديف
|
مخاطب سفارش
|
تعداد
|
درصد
|
|
1
|
عام (ملت مسلمان وشهيد پرور ومسلمانان جهان)
|
562
|
24/74
|
|
2
|
خانواده
|
108
|
36/14
|
|
3
|
پاسداران ، بسيجيان و رزمندگان
|
29
|
83/3
|
|
4
|
نوجوانان و جوانان
|
12
|
58/1
|
|
مومنين ، مقلدين امام و عاشقان امام زمان(عج)
|
10
|
31/1
|
|
|
6
|
اقوام و دوستان
|
9
|
18/1
|
|
7
|
دانش آموزان و معلمان
|
7
|
92%
|
|
8
|
زنان
|
7
|
92%
|
|
9
|
علماء و طلاب علوم ديني
|
7
|
92%
|
|
10
|
مسئولان كشوري و لشگري
|
2
|
26%
|
|
11
|
كشاورزان
|
2
|
26%
|
|
جمع
|
757
|
100
|
عنوان : بررسي ميزان سلامت رواني همسران شهدا ، فرزندان شهدا و همسران ايثارگران
كلمات كليدي : سلامت رواني ، همسران شهدا ، همسران ايثارگر و فرزندان شهدا
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
<>
|
شهرها
|
همسر شهيد
|
همسر ايثارگر
|
فرزند شهيد
|
جمع
|
|
خرمدره
|
5
|
7
|
5
|
17
|
|
ابهر
|
17
|
19
|
17
|
53
|
|
خدابنده
|
18
|
19
|
4
|
41
|
|
زنجان
|
84
|
20
|
36
|
140
|
|
جمع
|
124
|
65
|
62
|
251
|
|
|
|
|
|||
|
همسر شهيد
|
02/0
|
118
|
66/0
|
26/2
21/0
|
02/0
83/0
|
|
همسرايثارگر)همسرآزاده و همسر جانباز)
|
25/1
|
64
|
68/0
|
||
|
دختر شهيد
|
94/0
|
25
|
61/0
|
||
|
پسر شهيد
|
90/0
|
31
|
65/0
|
||
|
فرزند شهيد
|
92/0
|
56
|
63/0
|
|
|
|
همسر آزاده
|
40/1
|
9
|
79/0
|
|
|
|
همسر جانباز
|
23/1
|
55
|
66/0
|
|
|
|
موضوع
|
ميزان همبستگي با سلامت رواني همسران شهدا
|
Sig
|
تعداد
|
|
سلامت رواني فرزندان شهدا
|
128/0
|
158/0
|
63
|
|
سن در زمان شهادت همسر
|
421/0
|
001/0
|
58
|
عنوان : فرهنگ ايثار و شهادت و شاخصه هاي آن
انواع مقالات :علمي و فرهنگي
نويسنده : محمد شيخ زاده
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
|
وقتي صحبت از مقوله فرهنگ ايثار و شهادت مي شود، سوالات متعددي در اذهان متبادر مي شود.معمولاً اين سوالات از عدم شناخت صحيح و همه جانبه نسبت به موضوع ايثار و شهادت ناشي مي شود.اگر با تحليل عميق به اين موضوع نگاه كنيم ، به تمام شبهات و وسالات نهفته در اذهان پاسخ داده مي شود.و اين چيزي است كه در اين بخش مختصر در صدد آنيم. مقدمات بايد گفت عنصر مبارزه با ظلم و تجاوز در تمام جوامع و فرهنگ ها امري مقدس و ضروري است و يكي از عناصر مهم در حفظ حيات حقيقي بشريت است كه انسان در طول تاريخ به آن محتاج بوده، ليكن در برهه هايي از زمان و دلايل شرايطي خاص، اين فرهنگ ظهور، بروز و تجلي بيشتري داشته است. هر زمان كه ظالم يا متجاوزي قد علم كرده است، مرداني غيور با اراده اي پولادين و با فداكاري و از خود گذشتگي در مقابلشان ايستاده و با ظلم و تجاوز مبارزه كرده اند، حال يا در راه هدف والاي خود كشته شده اند و يا به فتح پيروزي رسيده و ظلم و متجاوز را سر جاي خود نشانده اند.مصاديق، حقيقي چنين مبارزاتي در تاريخ ملل مختلف با هر كيش و آئيني فراوان يافت مي شود كا بعضي از نمونه هاي آن حتي در قصه ها ، داستان ها و اشعار سينه به سينه نقل شده است. اما در دين مبين اسلام و به ويژه در مكتب تشيع به دليل ويژگي هاي خاص در آن تأكيد و بر حفظ حيات معنوي و عزت مسلمين در خصوص مبارزه با ظلم، تجاوز و فسادو... سفارشات و تأكيدات مهمي شده است، لذا در اين بخش مباني و شاخص هاي فرهنگ ايثار و شهادت بررسي مي شود. مفهوم شهيد و شهادت واژه شهيد به معناي شاهد، گواه و كشته شده در راه خدا آمده است. شهيد از ريشه شهد در لغت عرب با مشتقات متعدد در اصل معني حاضر بودن در يك محل (نقطه مقابل غايب بودن) است. همچنين به معني كسي كه چيزي را با چشم خود ديده و كسي كه آنچه را ديده بيان مي كند آمده است. در قرآن كريم 45 مرتبه به معناي حضور در يك محل، گواهي و علم به چيزي، اقرار و اعتراف، مشاهده و ديدار، به دست آمدن و حاصل شدن چيزي و آماده به خدمت بودن آمده است.(ميمنه،1385، ص8) شهيد داراي خلقيات، خصايص و ويژگي هايي است كه شايستگي كشته شدن در راه خداوند را پيدا مي كند و آثار اين خلقيات در جامعه تأثير گذاشته و ماندگار خواهد بود، و اگر افراد جامعه خصوصيات رفتاري ايشان را الگو قرار دهند، به سعادت خواهند رسيد؛ و اين «الگوي رفتاري و اخلاقي» مفهومي از فرهنگ شهادت را مي رساند. تعريف فرهنگ شهادت تعاريف متعددي از فرهنگ شهادت آورده شده است. فرهنگ شهادت عبارت است از «مجموعه آگاهي ها، باورها، آداب و اعتقادات و اعمالي كه موجب وصل انسان به عالي ترين و والاترين درجۀ كمال، يعني مرگ آگاهانه در راه خدا مي گردد.» هر گونه آثار باق مانده از شهدا درباره شهادت و شهيد، سيره، روش و پيام شهيدان و بالاخره تربت پاك و مقدس آنان بخشي از اين فرهنگ مي باشد؛ فرهنگ شهادت عبارت است از :« تعيين عاشقانه اي كه انسان دنيوي را دز عبور از حيات مادي به حيات معنوي لقاءا...مي رساند.»(معدني،22،1378) در تعريف فرهنگ شهادت مي توان سه نگاه داشت : قبل از شهادت ، حين شهادت و بعداز شهادت مي توان برا ساس آن مقاطع و ويژگي هاي آن و زمان مورد نظر، تعريف ارائه داد . مي توان اين مقاطع را جدا ديد يا اينكه به هم پيوسته ، همچنين مي توان يك مقطع را مبنا قرار داد و يا اينكه به عوامل و مواردي پرداخت كه منتج به شهادت مي شود، شهادت نيز محصولي است كه بايد معرفي گردد و شهدا معرف آن فرهنگ اند.فرهنگ شهادت مجموعه آثار ، اصول و معارفي است كه معرف و برآمده از حيات معنوي شهيدان راه خدا، و مبين سيرۀ عملي آنهاست . در فرهنگ شهادت شهيد و شهادت و پيام شهيد مطرح است؛ حضرت امام حسين (ع) به عنوان الگوي شهيد و و شهادت و حضرت زينب (س) پيام رسالت شهادت مي باشد. در بحث فرهنگ شهادت نيز، فرهنگ مادي (وجهه فيزيكي همانند تربيت و مقبره شهيد، وسايل و آثار به جاي مانده و موزۀ شهدا) و فرهنگ معنوي (باورها،ارزش ها و اعتقادات) مطرح است.بنابراين، فرهنگ شهادت عبارت است از «سيرۀ شهدا، نحوۀ تاثير سيره شهدا و اثرگذاري آن در جامعه» تعريف نهايي: فرهنگ شهادت عبارت است از «آثار باقي مانده از شهيد، اعم از غيره مادي (معنوي) مثل باورها، اعتقادات، خلقيتات ، رفتارها و اهداف و ديگر وجوه معنوي و الهي شهيد كه الهام گرفته از قرآن و معصومين(ع) مي باشد و آثار مادي آن كه عبارتند از تربت پاك شهيد، وسايل شخصي، اسامي خيابان ها، مراسم مربوط به شهيد، آثار مكتوب و كلاً هر آن چيزي كه قابل مشاهده و لمس بوده و يادآور شهيد باشد.» مصاديق شهيد يكي از راه هاي رسيدن به فيض عظيم شهادت شركت در جبهه هاي نبرد حق عليه باطل و كشته شدن در راه خداست. اما اين باب هميشه در برابر جويندگان حق و حقيقت مفتوح نيست و زمينه جهاد و نبرد با باطل هميشه مهيا نيست. بنابراين مي توان اينطور نتيجه گرفت كه شهادت هدف نيست بلكه وسيله اي براي رسيدن به آن راه هاي ديگري غير از كشته شدن در جبهه نيز وجود دارد كه اجر و ثوابي همپايه شهادت براي انسان در پي دارد. از جمله مصاديق شهادت مي توان به موارد زير اشاره نمود: 1. طالب علم : رسول خدا مي فرمايد : «هر كس با عالمي ديدار كند مانند اين است كه با من ديدار نموده است و هر كس با عالمي مصافحه نمايد مانند اين است كه با من مصافحه نموده و هر كس با عالمي همنشيني نمايد مانند اين است كه با من همنشيني نموده و هر كس در دنيا با من همنشيني كند روز قيامت با او همنشيني مي كنم.هر گاه مرگ صاحب علم در حال فرا گرفتن علم فرا رسد با شهادت از دنيا مي رود.» 2. دارنده طهارت: در دين اسلام مساله طهارت بسيار حائز اهميت است. حضر رسول خدا صل الله عليه واله است كه فرمودند: «هر كس با طهارت(وضو) شب را بگذراند و در همان شب از دنيا برود شهيد از دنيا رفته است.» 3. غريب : كسي كه براي رضاي خدا سختي ها و مشقات غربت را تحمل كند اگر از دنيا برود شهيد از دنيا رفته است. پيامبر اكرم(ص) فرموده اند : «كسي كه غريب از دنيا برود شهيد است.» 4. طالب روزي حلال : كسب و كار حلال و روزي جستن از راهي كه مورد رضايت خداوند است اجر و ثوابي همپايه شهادت دارد.پيامبر اكرم(ص) فرموده اند : هر كس در راه كسب روزي حلال براي خانواده اش تلاش كند مانند مجاهد در راه خدا است و هر كس دنيا را از راه حلال و يا عفت طلب كند در درجه خداست.(ميمنه، 1383،ص25) كاركردهاي مختلف فرهنگ شهادت «فرهنگ شهادت» از لحاظ زماني، مكاني، مناسبت ها، فردي، جمعي و... مي تواد آثار و كاركردهاي متفاوت داشته باشد. يكي از ملموس ترين نكات اين است كه فرهنگ شهادت در سه دوره داراي تاثيرات متفاوتي است.
• دوران رزم و جنگ • دوران پس از جنگ و ماندگاري همرزمان و افراد ديگر جامعه كه حماسه هاي جنگ را مشاهده كرده اند. • دوران پس از مرگ نسل رزم و جنگ كه نسل هاي به جاي مانده مي توانند با نسل پيشين ارتباط برقرار كنند. فرهنگ مادي و معنوي به جاي مانده مي توانند با نسل پيشين ارتباط برقرار كنند. در اينجا به برخي از كاركردهاي فرهنگ شهادت در سه دوره مذكور به شكل متفاوت است اشراه مي گردد. 1- فدا كردن جان براي حفظ ارزش ها : در جوامعي كه احترام و وفاداري به ارزش ها يك اصل محسوب شده و براي جامعه اهميت دارد در صورت به خطر افتادن ارزش ها يي كه مهم هستند در مقاطعي از تاريخ افراد جان خويش را كمتر از ارزشها مي پندارند و حاضر مي شوند جهت بقاء و حيات جامعه و ارزش هاي آن جان خويش را فدا كنند. در باور شيعه و مسلمانان دين، ميهن از جمله مهمترين و مقدس ترين ارزش هاست لذا زماني كه چنين ارزش هايي دچار خطر شده و مورد تعرض قرار گيرند افرادي حاضرند جان خويش را با توسل به سلاح شهادت در راه نجات دين، ناموس و ميهن فدا نمايند.زيرا كه «حب الوطن حس الايمان» ، و مردم با ايمان نمي توانند شاهد تطاول بيگانه به سرزمين خويش بوده و آسوده بنشينند.گرچه با شهادت بهترين و مومن ترين مردان خدا كشته مي شوند، كساني كه مي توانستند منشاء آثار خير و بركت براي جامعه باشند و اين قسمت به عنوان يك آسيب براي جامعه به شمار مي رود اما از سوئي ديگر با مرگ خودشان به جامعه تداوم و ثبات و حيات دوباره بخشيده اند و در جهت دفاع از ارزش ها جان خويش را فدا كرده اند. 2- عزت نفس بخشيدن به افراد جامعه .براي مردمي كه مورد تجاوز و تحقير قرار گرفته اند عامل تجاوز و تحقير نيز هيچ يك از معيارهاي انساني ، اخلاقي، ديني و عرفاني را مراعات نمي كند و تنها سلاح مبارزه در دست اهل جبهه حق شهادت است. به عبارت ديگر شهادت در مراحلي از تاريخ تامين كننده عزت براي يك ملت است.امام راحل(ره) نيز در اين زمينه اين گونه مي فرمايند: «اسلام كه اين پيروزي را حاصل كرده، شهادت است كه اين پيروزي را حاصل كرده، شهادت هم حفظ اسلام است، از اول اسلام با شهادت پيش برده، حالا هم كه مي بينيد جوان هاي ما شهادت مي خواهند... اين حس بود كه ما را پيش برد، اين حس شهادت بود، جلو آمدن براي اسلام و شهادت بود كه ما را به پيروزي رساند.»(امام خميني ص20) 3- ايجاد هويت و هدف مشترك در ميان افراد يك جامعه: مولفه هاي شهادت يعني گام برداشتن در راه خدا و مرگ داوطلبانه در موقع لزوم، هويت و هدفي مشترك را براي افراد جامعه ايجاد مي نمايد و مي تواند الگو و راهكار عملي براي نسل ها و ملل در تحت ظلم و ستم باشد. 4- عامل همبستگي تجتماعي : عاشورا، عزاداري، نوحه خواني، امام حسين (ع) و... مفاهيمي هستند كه موجب همبستگي شعيان در طول تاريخ حياتش به شمار مي رود و يك انگيزه قوي جهت همدلي، اتحاد و اتفاق در تاريخ مبارزات شيعه شده است و فرهنگ شهادت يكي از عوامل مهم همبستگي اجتماعي محسوب مي شود.(معدني،1378،ص28) 5- ايجاد روحيه ظلم ستيزي و عدالت طلبي در جامعه و احساس خطر صاحبان سلطه و ظالمان و مخالفان عدالت و قسط تا زماني كه مشغل شهادت در جامعه فروزان است. رهبر انقلاب نيز به خوبي به اين مسئله واقف بودند : «اسلام در كشور ما مي رفت تا به تباهي كشيده شود، كه با خون شهيدان ملت ما حيات خود را باز يافت.»(امام خميني،ص82) 6- عامل استقلال و حفظ تماميت ارضي كشور در مقابل اجانب و بيگانگان«آمريكا از اين وحدت كلمه و از اينكه ملت ما به اينجا رسيده است كه جوان ها ي غيور كفن پوش شده اند، شهادت مي خواهند، از اين وحشت دارد.»(امام خميني،ص82) 7- عامل ايجاد شور و نشاط و تحرك براي ملتي كه به انزوا كشيده شده است . مي كوشند يكي از آرزوهاي سيد جمال الدين اسد آبادي اين بود كه يك نفر بيايد و روحيه پرخاشگري نسبت به استعمار را در مشرق زمين و به ويژه مسلمانان ايجاد نمايد.( معدني، 1378،ص34) ويژگي هاي شهادت با توججه به مطالب فوق مي توان به برخي از ويژگي هاي شهيد و شهادت اشاره كرد: 1- الگو بودن شهيد 2- پرورش آگاهي : شهادت يك عامل آگاهانه و از سر اختيار است. جامعه اي كه مي خواهد شهيد پرور باشد و از مزاياي آن بهره مند شود لزوماً بايستي افرادي آگاه و بصير داشته باشد و زمينه اي دانستن را هميشه براي مردم هموار نگه دارد. 3- وحدت آفريني : وجود فرهنگ شهادت در يك جامعه ، از اين وضعيت حكايت مي كند كه مردم آن جامعه داراي اهداف و آرمان هاي مشتركي هستند كه حاضرند براي آن جان خود را نثار كنند. 4- نماد تعهد به سرنوشت انسان : نوعي بيان احساسات است كه مورد آن نيز نوعي تعهد است.
فرهنگ شهادت و هويت فرهنگي فرهنگ كليتي است كه هويت يك جامعه را تشكيل مي دهد . حال اگر بخشي از اين فرهنگ در تضاد با بخش هاي ديگر باشد منجر به اصطكاك،نابودي و يا حداقل كم اثر مي شود. در بيان و تشريح يك فرهنگ مي بايستي تا آنجا كه ممكن است با بخش هاي ديگر فرهنگ تضاد وجود نداشته باشد. واقعيت اين است كه ايران به عنوان يك كشور با گذشته تاريخي، مذاهب، اقليتهاي مذهبي، افكار و انديشه هاي گوناگوني دارد كه هويت ملي ما را تشكيل مي دهد. پيديده فرهنگ ايثار و شهادت كه بخشي از اين فرهنگ است مي بايست در هماهنگي و توقيت و احترام ديگر موارد فرهنگ مثل وطن دوستي ، احترام و انديشه ها و غيره هماهنگ باشد تا بتواند به بقاء خود ادامه داده و تاثير روز افزون بر جامعه داشته باشد. در حقيقت هويت فرهنگي يك جامعه از بخش هاي گوناگون تشكيل مي شود مثل تاريخ، ارزش ها و مفاخر ملي ، دين و..كه فرهنگ شهادت مي بايستي با هماهنگي با بخش هاي ديگر در جهت تداوم و قوام جامعه حركت كند .
مفهوم ايثار ايثار يعني نثار، نثار هر چيز اعم از مادي و معنوي به دو شرط: 1. در عين نياز؛ در تعريف واژه ايثار در قرآن كريم آمده است :« ويوثرون علي انفسهم و او كانوا بهم خصاصه» ايثار مي كنند بر نفس هايشان و لو به آن نياز داشته باشند. 2. شرط دوم نيت عمل است. انگيزه عمل فقط و فقط بايد عشق و محبت به خداوند باشد و هيچ انگيزه غير جذابي در آن نباشد. در سوره مباركه دهر آمده است:«ويطعمون الطعام علي حبه مسكينا و يتيما و اسيرا، انما نطعمكم لوجه ا... لانرديدمنكم جزائا و لاشكورا». به نيازمندان طعام مي دهند صرفاً به خاطر خدا و رضاي او و بدون توقع و درخواست هيچ پاداش يا چشم داشتي از كسي. لذا به نظر مي رسد روح انسان بايد از قدرت و عظمت بالايي برخوردار باشد تا بتواند در عين احتياج به چيزي و داشتن عشق و محبت نسبت به آن چيز،آن را به ديگري ببخشد و هر چقدر اين نياز بيشتر وآن عشق بزرگتر باشد، ايثار متعالي تر مي شود تا آنكه خداوند شرط رسيدن به نيكويي را انفاق دوست داشتني ها بيان مي كند:«لن تنالو البر حتي مما تحبون» هرگز به نيكي واقعي رسيد مگر اينكه آنجه را دوست داريد ببخشيد.گاهي ايثارگر ممكن است قمقمه آبش را در عين تشنگي و يا گرسنگي ببخشد.اندازه يا قيمت بخشيده شده نمي تواند ارزش ايثار را معين كند زيرا«الاعمال بالنيات». ارزش عمل به نيت آن است. هابيل پروارترين گوسفندش را به قربانگاه مي فرستد، خليل الله عزيزترين و يگانه ترين ثمره حياتش اسماعيلش را، پيامبر خاتم (ص) در آن شب روشن افروز، در آن ليله المبيت، علي (ع) را به منزله جان و نفس اوست، در بستر مي خواباند تا مايه فخر و مباهات خداوند بر ملايكه ا... گردد و در جريان مباهله جانش را، علي(ع) را، فاطمه(س) و سيد جوانان اهل بهشت«حسنين) را نثار مي كند.(احمدي،1386،49-50)
ايثار يعني بذل كردن، ديگري را بر خود برتري دادن و سواد او را بر سواد خود مقدم داشتن، قوت لازم و مايحتاج خود را به ديگري بخشيدن و خود را براي آسايش ديگران به رنج افكندن(فياض،1382). در لغت نامه دهخدا آمده است: ايثار به معني برگزيدن،عطا كردن،غرض ديگران را بر غرض خويش مقدم داشتن، ديگري را در رساندن به منفعت و دفع ضرر بر خود مقدم داشتن و آن نهايت برادري است.ايثار بر از خود گذشتگي انسان هاي يك جامعه دلالت مي كند و هم ژرفاي ديني دارد و هم عطر اجتماعي و هم فرهي انساني و در اصطلاح دانش و اخلاق دومين شكل فضيلت«سخا» مي باشد. مراد از سخا آن است كه انسان از آنچه خود بدان نياز دارد جوانمردانه بگذرد و آن را به ديگري كه بدان نيازمند است ببخشد و اين گذشتن و بخشيدن كه همانا ديگري را بر خود برگزيده است ملكه نفس آدمي گردد.(آقاپور،ص34) ايثار نمود و نماد ديگر خواهي آدميان است و روح همنوع دوستي آنها را به معرض نمايش مي گذارد و گاه تا جايي پيش مي رود كه فردي يا حتي جمع كثيري جان خويش را در راه ديگري و ديگران از دست مي دهند تا كمال و تمام ايثار و از خودگذشتگي را به جاي آورند و اين افراد در نگاه ملت ها و مردمان هر جامعه اي به سمبل فراموش ناشدني تبديل مي گردند.
ابعاد ايثار ايثار مي تواند گونه هاي مختلفي داشته باشد.گاه با فدا كردن جان صورت مي گيرد گاه با دادن مال، زماني هم با هزينه كردن اعتبار و آبرو و البته برخي توقات هم مي تواند تركيبي هم از اينها باشد كه فرد به طور ارادي و به خاطر يك هدف و آرمان مقدس و والا ، تصميم بگيرد از علايق و داشته هاي خويش اغماض نموده و دغدغه ها و دلنگراني ها و منافع« غير» را بر خود مرح بداند و در راه بر طرف ساختن مشكلات فرارئي ديگري گام بردارد. ايثار به مال و يا ايثار به جان را دانستيم. در قرآن كريم از جمع هر دو سخن گفته است كه البته جمع هر دو نور علي نور است. عاشق آن است كه چون سودا كند يك جا كند.« الذين آمنو وهاجروا و جاهدوا في سبيا الله باموالهم و انفسهم اعظم درجه عندالله» ايثار مختص به يك جامعه و ملت و منحصر به زمان معيني نيست ودر گستره تاريخ مي توان رگه و ريشه هاي بسياري را در آن خصوص جست و يافت، هر چند ممكن است شدت و ضعف قابل توجهي را پشت سرگذرانده باشد. در تمام جوامع چه سنتي و چه مدرن ، گونه هايي از ايثار وجود داشته و دارد و مردمان به اشكال متنوعي را ياري كرده ا ند . در آموزه هاي زرتشت، بودا، مزدا و كنفوسيوس و...مكرر از اين ارزش سخن رفته است و به مقلوه كمك به ديگري ، همنوع دوستي و خير خواهي و تاكيد و توجه زيادي گرديده است و احسان و گذشت و نيكوكاري از عناصر كليدي آنها به شمار مي رود. به عبارت ديگر در اديان مسيحيت، يهود و اسلام، گذشت و ايثار از ارزشهاي مهم و اساسي بر شمرده شده است و محتواي انجيل؛ تورات و قرآن شاهدي بر اين داعيه قلمداد مي گردد. ايثار هم مي تواند ارزشي فردي به حساب آيد و هم در رده ارزش هاي جمعي و اجتماعي قرار گيرد. وقتي فردي است كه يك فرد خاص به انحاي مختلف ديگري را بر خويش مقدم بداند و در رفع نيازهاي او بكوشد. اما زماني كه ميزان قابل توجهي از افراد به آن مبادرت مي كنند و در راه يك آرمان يا هدف والايي از بذل جان و آبرو و ساير داشته هاي خويش دريغ نمي ورزند، مساله جنبه عمومي پيدا مي كند و در زمره ارزش هاي اجتماعي جاي داده مي شود. ايثار قلمرو جغرافيايي خاصي ندارد. به عبارت ديگر هم مي تواند در درون قلمرو و محدوده خاصي ظهور يابد و هم در فراتر از مرزها نمودداشته باشد. از حيث جهان شمول بودن مقوله ايثار مي توان به فعاليت هاي گروههايي چون پزشكان بدون مرز، انجمن بشر دوستانه و خير بين المللي و ...اشاره كرد كه در راستاي مجموعه اي از آرمان هاي انسان دوستانه كلي و جهاني تشكيل شده اند. يايكي از مواردي كه در اين خصوص مي توان ذكر كرد مساعذت هاي مالي ملت هاي مختلف در كشورهاي جهان در مواقع ضروري همچون بروز حوادث طبيعي مي باشد. وقتي سيل، زلزله و حوادث مشابه ديگري موجب نابودي جان و مال بسياري از انسان ها در برخي از مناطق جهان مي گردد افراد و گروهها و حتي دولت هاي مختلف به طريق گوناگون كمك هاي قابل توجه نموده اند تا بلكه از رنج و اندوه و درد حادثه ديدگان اندكي بكاهند و اين چيزي جز برآيند احساسات و عواطف بشر دوستانه فردي و جمعي نبوده است. در سطح محدودتر و در داخل يك قلمرو و جامعه مين هم ايثار در اشكال مختلف تجلي پيدا مي كند كه افراد در راه آرمان و هدف و ايدئولوژي خاص و مورد احترام خويش هزينه هاي مختلفي صرف مي كنند.شهادت و كشته شدن در راه وطن و يا يك عقيده و هدف، كمال ايثاربه شمار مي رود. اما صورت هاي متعدد ديگري ازايثار را مي توان در زندگي روزمره مردم نظاره نمود كه آثار و پيامدهاي اجتماعي زيادي هم بر جاي مي گذارد.
مصاديق ايثار مصاديق ايثار علاوه بر كساني كه شهيد مي شوند و يا جانباز و معلول و مجروح و مفقود الاثر و اسير مي گردند معطوف به مواردي همچون سرپرستي ايتام ، كمك به در راه ماندگان،آزاد كردن اسيرو زنداني، كمك به خانواده هاي بي سرپرست، حمايت از بيماران صعب العلاج، امداد به مجروحان و مستضعفان و مستمندان جامعه از طريق گوناگون و فعاليت هاي انجمن خيريه در اين زمينه ها مي باشد. چه چيزهايي را مي توان ايثاركرد؟ ايثارگري در مورد چيزهايي است كه اولاً متعلق به خود ماست و با بخشش از دستمان مي رود. ثانياً براي خودمان نيز مفيد و مورد نياز باشد. ثالثاً آن را به كسي كه به آن نياز دارد، بدون چشم داشت عرضه و اهداء كنيم. با اين تعريف سه چيز در زندگي انسان ويژگي ايثار را داراست: اول وقت ياعمر، دوم مال و سوم شادماني و فراغت(احمدي،1384ص76)
ايثار و ماهيت اجتماعي آن يكي از جنبه هاي اساسي و اجتماعي بودن يك مساله يا پديده و رفتار و يا ارزش آن است كه جمع كثيري را متاثر مي سازد و به عبارتي تعداد قابل توجهي از مردم را تحت تاثير قرار مي دهد.اما چه تعداد؟ تعداد افرادي كه متاثر مي شوند صريحاً قابل تشخيص نيست،ولي فراواني مباحث طرح شده در مورد مساله مورد نظر در رسانه ها،گفتارها و... شاخص ميزان توجهي كه اين مسئله برانگيخته است و نشانگر وسعت و گستردگي آن به شمار مي رود. گاهي دامنه ي يك ارزش چنان محدود و تنگ است كه صرفاً چند فرد يا گروه بسيار كوچك را تحت شمول خود قرار مي دهد،اما برخي ارزش ها هم هستند كه از گستره ي وسيعي برخوردارند و به اين خاطر ارزش عمومي قلمداد مي گردند كه عده زيادي پاي بند به چنين ارزش هايي هستند. در جامعه ايران به تأثير از اسلام، ارزش هاي خاصي برجسته مي شوند و در نتيجه ميان بخش قابل توجهي از مردم ساري و جاري مي گردند.ايثار يكي از همان ارزش هاست كه پس از پذيرش دين اسلام توسط ايرانيان، حضوري نسبتاً پررنگ پيدا مي كند و به ويژه در دوره انقلاب اسلامي و جنگ تحميلي در اشكال مختلف و متعددي تجلي مي كند و بهمين خاطر مي توان آن را يكي از ارزش هاي اجتماعي به حساب آورد.به علاوه اينكه هنوز ميراث اين ارزش والا به صورت هاي مختلف در جامعه تداعي مي گردد وتعداد قابل توجهي شهيد(وخانواده هاي شهدا)، جانباز، ايثارگر و مفقود الاثر در جغرافياي سرزمين ايران پراكنده وآكنده است و نهادهاي رسمي قابل توجهي براي رسيدگي به امور آنها فعاليت مي كنند.(آقاپور،1384،ص36) ارزش هاي اجتماعي مدل هاي كلي رفتار، احكام جمعي و هنجارهاي كرداري را مورد پذيرش عمومي و خواست جامعه قرار گرفته اند تشكيل مي دهند. ارزش هاي اجتماعي لزوماً از ساير اقسام ارزش(شخصي، فرهنگي و...) متمايز نيستند و شامل تمامي ارزشي مي شوند كه مردم با آنان حيات اجتماعي خود را مي گذرانند و اعضاي يك جامعه در برابر آن به نوعي وفاق رسيده اند. در معناي محدودتر گاه از ارزش هاي اجتماعي تحت عنوان ارزش هاي اخلاقي، فرهنگي يا ديني سخن مي رود كه يكپارچگي اجتماعي را قوام مي بخشد و به گسترش پيوندهاي مبتني بر همبستگي مي انجامد. بدين سان، عدالت، انسان دوستي، ديگر خواهي، مهرباني و... جزو ارزش هاي اجتماعي شمرده مي شوند.(بيرو،1366،ص386) ارزش هاي دفاع مقدس مثل ايثار، شهادت طلبي، خدا خواهي، خطر پذيري و...هر چند ارزش هاي ديني،عقلاني و عاطفي هستند، اما تبلور وجه غالب آنها از نوع ارزش هاي اجتماعي است.وقتي از ماهيت اجتماعي ايثار صحبت مي شود منظور آن است كه اين ارزش هم در قلمرو جامعه مطرح مي باشد و عده زيادي متكي و پاي بند به آن هستند و هم كاركردهاي اجتماعي دارد. وقتي گروه قابل توجهي شهادت را بر مي گزينند اين امر در واقع نوعي ايثار جهت حفظ و ثبات سيستم اجتماعي و ارزش هاي جامعه مي باشد و نشانگر دفاع از آرمان ها و ارزش هاي اجتماعي و تعالي بخشيدن به آنهاست و طبعي است چنين ارزشي از يك طرف به انسجام و تحكيم جامعه مدد مي رساند و از طرف ديگر جايگاه دارندگان آن ارزش را در نزد جامعه والاتر مي سازد. زماني كه تعداد زيادي از جامعه به واسطه تقيد با ارزش ايثار، قسمت زيادي از دارايي ها و داشته هايان را در راه اهداف و ارزش هاي مورد احترام خود صرف مي كنندو موجب مب گردند تا مشكلات و موانع مختلف فرا روي همنوعان آنها رفع گردد، در واقع نقش عظيمي در كاهش مشكلات و موانع مختلف فرا روي همنوعان آنها رفع مي گردد، در واقع نقش عظيمي در كاهش مشكلات و آسيب هاي اجتماعي ايفاء مي كنند، زيرا سيستم رسمي توان آن را ندارد كه در مواقع بحراني و به ويژه حوادث بزرگي همچون وقايع طبيعي،تمام مشكلات و پش آمده را حل نمايند و به ناگزير نقش و اهميت ايثار و از خودگذشتگي نيروهاي مردمي در اينجا ظاهر مي گردد و دخالت فعال آنها پيامدهاي مثبت و سازنده اي در برگرداندن اوضاع به شكل عادي بر جاي مي گذارد. نكته مهم ديگر اينكه در سايه اين ارزش اجتماعي (و برخي ارزش هاي ديگر) همبستگي اجتماعي قدرتمندي بين اعضاي جامعه شكل مي گيرد كه مظهر آن را مي توان به سهولت در دوران انقلاب اسلامي و بويژه جنگ تحميلي ايران و عراق نظاره كرد كه افراد در بيشتر اوقات از هيچ كمك و مساعدتي نسبت به يكديگر دريغ نمي ورزيدند و حتي با وجود نيازمندي خويش رفع نياز ديگري را مقدم بر خود وافتخاري بزرگ مي دانستن. ايثار علاوه بر اينكه ماهيتي اجتماعي دارد بالتبع ماهيت فرهنگي آن عينيت پذيري آشكارتري دارد. در بحث فرهنگ مشخص گرديد كه مقوله ارزش يكي از كليدي ترين عناصر نهفته در بطن و متن فرهنگ به شمار مي رود. فرهنگ نظامي است از نگرش ها و دانشي كه به طرزي گسترده در ميان مردم مشترك است و از نسلي به نسل ديگر منتقل مي شود.(رونالد؛1373، صص236-235) لذا اثبات اينكه مقوله ايثار به عنوان يكي از ارزش هاي جامعه و هويت و ماهيتي فرهنگي دارد، شايد از مقولات بديهي محسوب گردد. آنچه كه فرهنگي بودن ماهيت ايثار را با قوت بيشتري به تصوير مي كشد نقش فرهنگ و دين اسلام در رواج و نفوذ بيشر اين ارزش ها در لايه هاي اجتماعي جامعه ايران مي باشد.به عبارت ديگر، نمي توان وجود فرهنگ ايثار و شهادت را در ايران بدون توجه به تاثير زياد دين اسلام تبيين و تشريح نمود.انكار اين امر در واقع ناديده گرفتن بسياري از تحولات و واقعيات جامعه خواهد بود. همانگون كه نمي توان مرز اجتماع فرهنگ را به شكل دقيق متمايز و تفكيك ساخت، نشان دادن مرز ميان بعد فرهنگي و جنبه اجتماعي ايثار نيز به سهولت ممكن نيست. به كلامي رساتر بايد گفت كه ايثار به مثابه ارزشي اجتماعي و فرهنگي است كه در ساخت و بافت جامعه ايران و به تاثير از فرهنگ ايراني – اسلامي در ذهنيت و عنيت گذشته و حال اين مرز بوم رگه هايي از آن ديده مي شود، گاه نقش پر رنگ وگاه كم رنگ و حتي بي رنگ مي گردد. مي توان مصاديق متعددي از وجود فرهنگ ايثار و شهادت را در اشكال اجتماعي و فرهنكي اش در بين ايراني ها از گذشته تا كنون پديدار و نمودار ساخت: وقف( سنت ديرينه اي كه در آن فرد، مال يا ملك شخصي اش را از مالكيت خويش خارج مي سازد و در اختيار جامعه و نهادهاي عمومي قرار مي دهد تا مردم به صورت بلاعوض از منافع آن بهر مند شوند)منشاء پيدايش بسياري از مراكز علمي، دارالعلم ها، بيت الحكمه ها، مدارس و كتابخانه ها بوده است و از اين طريق خدمت بزرگي به نشر علم و دانش در جهان كرده است و در خدمت به بهداشت و سلامت جامعه نيز از طريق تاسيس درمانگاه ها، بيمارستان ها، احداث قنات وآب انبار نقش بلسيار موثري داشته است. رسيدگي به نيازمندان و تامين دارو و درمان بيماران، تهيه لباس براي محرومان جامعه بخش ديگري از خدمات وقف است. گشت و گذاري كوتاه در قلمرو جغرافيايي ايران نشان مي دهد كه هنوز برخي درمانگاه ها، استراحتگاه ها، مساجد و باغ ميوه و موارد مشابه كه وقف گرديده اند، به چشم مي خورند. علاوه بر اين خيرين مدرسه ساز(بر طبق آمارها) نقش قابل توجهي در ساخت مدارس به خود اختصاص داده اند كه بي شك موجب تعالي و ترقي فرهنگ جامعه مي گردد. انجمن حمايت از بيماري هاي كليوي، بيماران خاص ، انجمن هاي خيريه كمك به ايتام و انجمن هاي دواطلبانه ديگر در زمينه كمك به نيازمندان و بيماران و محرومان از مواردي است كه در سطح جامعه به فعاليت مي پردازند. همه اين داله اشاره به مدلول هايي دارند. به عبارت ديگر، مصاديق فوق نماد و نشان پاي بندي مردمان اين مرز و بوم به يك سري ارز ش هاي خاص اجتماعي و فرهنگي و از جمله ايثار و گذشت و فداكاري است. فعاليت هايي كه در واقع هم ماهيت فرهنگي و هم ماهيت اجتماعي دارند و هم پيامدهاي مثبت و سازنده اي در بخش هاي گوناگون جامعه بر جاي مي گذارند.وقتي مصاديق فوق را در كنار شهادت به عنوان نمود كامل ايثار و همچنين مساعدت هاي قابل توجه مردم به همديگر در زمان بروز حوادث سرپرستي و كودكان يتيم به ويژه در اعياد خاص مذهبي در كنار هم قرار مي دهيم به وضوح ماهيت فرهنگي و اجتماعي ايثار آشكار مي گردد و رجوع به تعريف فرهنگ و همچنين ارزش هاي اجتماعي، قوت بيشتر و افزون تري به اين مساله مي بخشد.
اهل ايثار از منظر دين ويژگي آنان كه اهل ايثار آخرت بر دنيا هستند: • اهل خشيت الهي اند«رضي الله عنهم و رضو عنه دلك لمن خشي ربه» • اهل احسان اند « والذين اتبعو هم باحسان رضي الله عنهم و روض» • بناي آنها بر تقوي و جلب رضايت الهي است.«افمن اسس بنيانه علي التقوي من الله و رضوانه خير م اسس بنيانه علي شفا جرف هار فانهار به في نارجهنم» • متوكل علي الله اند. نه به دنيا، دلهايشان فقط به ياد خدا آرام مي گيرد«الذين آمنو و تطمئن قلوبهم بذكر الله تطمئن القلوب» • به دنبال دار آخرت و نعمت هاي باقي هستند، نه مريد حيات دنياي قليل و زودگذر ، «وابتغ فيما اتاك الله الدار الاخره».بهترين نعمت دنيا را نعمتي مي دانند كه با آن آزاد و توشه آخرت خود را فراهم كنند.دنيا را معين آخرت خود قرار مي دهند. • خرسند و خشنود به حيات زودگذز دنيا نيستند بلكه« فرحين بما اتاهم الله م فضله...» • نه تنها علم آنها منحصر به خ=حيات دنيانيست، بلكه به خلصت خالصي مجهزند كه توجه و تفطن به چيات آخرت است«انا اخلصناهم بخالصه ذكري ذكري الدار» بديهي است كه آنكه اوصاف اخير در او نباشد و به عكس رذايلي همچون: • «...رضو بالحياه الدنيا و اطمانوا بها» • «ولم يرد حياه الدنيا» • يعملون ظاهراً من الحياه الدنيا» • «ذلك مبلغهم م العلم» در او باشد، اهل ايثار و اهل اهتمام به حيات طيبه نيست بلكه صرفاً به هواي نفس خود مي پردازد و به وعده الهي سوء الظن دارد،«قد اهمتهم انفسهم يظنون بالله غير الحق». در اهميت ايثار همين بس كه بسياري از فضائل اخلاقي و بلكه امهات فضايل اخلاقي بايد در انسان ايجاد شده باشد تا شخصي بتواند اهل ايثار شود، كما اينكه از رذايل اخلاقي بايد كنار گذاشته شود تا ايثار تحقق پيدا كند. مطابق نصوص روايي ما درجه فضيلت ايثار بسيار رفيع است. از امير المومنين علي (ع) الگو و اسوه ايثار نقل شده است كه فرمودند: 1. الايثار اعلي المكارم 2. الايثار اعلي الاحسان 3. الايثار احسن الاحسان و اعلي المراتب الايمان 4. الايثار غايه الاحسان 5. افضل السخاء الايثار اعتقادات و رفتارهاي ايثارگرانه انواع اعتقاداتي كه مي تواند موجب رفتارهاي ايثارگرانه گردد عبارتند از: 1. اعتقادات ديني و مذهبي: دين و مذهب بر پايه «ايمان» قرار مي گيرد و ايمان يعني اعتقادي كه انسان درستي آن را به طور قطع و يقين باور كرده است و آن را مقدس مي داند. از اينرو اعتقادات مذهبي را مي توان نيرومندترين عامل رفتارهاي ايثارگرايانه برشمرد. فداكاري هاي و جانفشاني هايي كه در طول تاريخ در راه اعتقادات مذهبي صورت گرفته ، نشان دهنده قدرت اين عامل دروني در بروز رفتارهاي ايثارگرايانه در افراد است. 2. علايق ميهني: از عوامل مهم و محرك نيرومند بروز رفتارهاي ايثارگرانه علايق ملي ميهني است كه نمونه آن در طول تاريخ بسيار مشاهده شده است. جنگ ايرانيان با عثمانيان در چالدران در پانصد سال قبل و رشادت هاي ايرانيان پس از اشغال بخش هايي از كشور توسط نيروهاي عراقي در هشت سال جنگ تحميلي، نمونه هاي ايثارگري در قبال علايق ملي و ميهني است، كه البته در هر دو مورد ياد شده، علايق مذهبي و شيعي نيز در آن موثر بوده است. 3. اعتقادات سياسي، اجتماعي و فرهنگي : از عوامل موثر در رفتارهاي ايثارگرايانه مي توان از اعتقادات سياسي، اجتماعي و فرهنگي نام برد، كه اين باورها هر يك به گونه اي به گروه اول(اعتقادات ديني) و يا گروه دوم( اعتقادات و علايق ملي و مذهبي) مربوط و متصل مي شود تا بتواند موثر واقع شود و عده بيشتري را به ايثار و فداكاري تشويق كند. از نومنه اي شاخص اينگونه اعتقادات مي توان از مهاتما گانديو مادر ترزا نام برد كه با ايثا رو فداكاري خدمات بزرگي براي كشورشان و مردمان انجام دادند و جامعه خود را دگرگون ساختند. 4. ملاحظات انساني و انگيزه ي كمك به همنوع : يكي از علل و عوامل رفتارهاي ايثارگرايانه، ملاحظات انساني و انگيزه كمك به همنوع است كه كودكي دبستاني را وا مي دارد تا با شكست قلك كوچكش،مبلغ جمع آوري شده براي خريد يك اسباب بازي را به كودك همسن و سال خود كه در شهري ديگر گرفتار قهر طبيعت و زلزله اي ويرانگر شده است كمك نمايد. در جامعه اي كه بازخواست جدي برايم عدم انجام وظيفه وجود ندارد، داشتن وجدان كاري يك ايثارگري بر اساس ملاحظات انساني است. بنابراين براي ايثرگري نبايد به دنبال از خودگذشتگي و جانفشاني هاي قهرمانانه بود، بلكه موقعيت ابراز آن هر روز و هرساعت در دسترس ماست.
كاركردهاي ايثار 1. فرض كنيد كه شخصي با زهد و ايثار، حب دنيا را مهار كند، نتيجه چه خواهد شد؟ از آنجا كه: «حب الدنيا راس كل خطيئه »، ريشه هاي لغزش هاي اخلاقي را قطع كرده است. 2. آن را كه ايثار مي كند قطعاً است، قناعت نيز به نوبه خود عزت نفس مي آورد. امام صادق (ع ) در اصول كافي مي فرمايد:« خداوندا همه امور مومن را به خودش واگذار كرده است، ولي به او اجازه نداده است كه خودش را خوار و ذليل گرداند.» 3. آن كه اهل ايثار است قطعاً اهل حرص نيست. حرص، نياز كاذب است. عمده معصيت ها ناشي از حرص و نياز كاذب است تا نيازهاي واقعي؛ باايثار زمينه هاي حرص از ميان برود. 4. ايثار محبت مي آفريند و محبت و همدلي مايه وحدت و وفاق است 5. ايثار متوقف بر از بين بردن روحيه مال و ترس جان است. 6. ايثار، كوثر و خير كثير است و زمينه هاي تكاثر و تمركز ثروت و سرمايه داري غير مولد را كاهش مي دهد و از فقر مي كاهد. 7. لازمه ايثار تقويت روحيه صبر و پايداري و مقاومت است. خلاصه و عصاره اوامر در عدل و احسان است.«ان الله يامركم بالعدل و الاحسان و ايتاء ذي القربي». از يكسو، ايثار بالاترين مراتب احسان است و از سوي ديگر ايثار بهترين زمينه هاي روحي، عاطفي و همدردي و همدلي را براي اقامه عدل و مقابله با ظلم فراهم مي نمايد.(خاموشي،1383)
شاخص هاي فرهنگ ايثار و شهادت همانطور كه ملاحظه نموده ايد تعاريف متعددي در زمينه فرهنگ ايثار و شهادت آورده شده است و شاخص هاي مختلفي نيز در اين زمينه بيان گرديده است.در جدول زير مولفه اي اصلي اين فرهنگ همراه با شاخص هاي آن رائه شده است.
همانطور كه در جدول فوق مشاهده مي شود اصل بنيادين اين تحقيق ايثار و شهادت است. بدين منظور پس از مطالعه و بررسي تحقيقات مختلفي كه در حوزه ايثار و شهادت نگاشته شده بود مولفه هاي فرهنگ ايثار وشهادت استخراج گرديد. همچنين شاخص هاي هر يك از مولفه هاي فرهنگ ايثار و شهادت ذكر گرديد تا امكان سنجش سطح ترويج اين فرهنگ در جامعه و سازمان فراهم گردد. برخي از شاخص هاي مورد توجه در فرهنگ ايثار و شهادت عبارتند از : • ايمان به خدا • توكل به خدا • محاسبه نفس • ترجيح و منافع نظام بر منافع شخصي • خدمت گذاري • مردم داري • استقامت در راه رسيدن به هدف • ذلت گريزي • نترسيدن از مرگ • ساده زيستي • انصاف • خطر پذيري • انتقاد پذيري • عدم دنيا پرستي • قانع بودن • وطن پرستي • رعايت نظم در امور • اعتماد به نفس بالا • انجام وظيفه و مسئوليت • احسان و نيكو كاري • پركاري و كم حرفي
منابغ و ماخذ 1. قران كريم 2. نهج البلاغه، ترجمه محمد دشتي، انتشارات لاهيجي ،1381 3. آقا پور، علي؛ مجموعه مقالات همايش ايثار و شهادت ، دبير خانه شوراي نظارت بر ترويج فرهنگ ايثار و شهادت،زمستان 1384 4. تريانديس، هري.س؛ فرهنگ و رفتار اجتماعي، ترجمه نصرت فتي، تهران، تهران : رسانش 1378 5. وثوقي، منصور، نيك خلق علي اكبر، مبناي جامعه شناسي، تهران 6. معدني، سعيد؛ مقدمه اي بر فرهنگ شهادت و شيوه هاي ترويج آن زير نظر دكتر مسعود حاجي زاده ميمندي، دفتر تحقيق و پژوهش اداره تحقيقات و مطالعات بنياد شهيد انقلاب اسلامي 7. علي احمدي، شناخت فرهنگ،فرهنگ سازمان ي و مديريت آن، توليد دانش، تهران :1383 8. آراسته خو،محمد، نقد و نگرش در فرهنگ اصطلاحات علمي 9. فرهي،بورزنجاني برزو؛ نحوه توانا سازي مديران استراتژيك فرهنگي كشور، با رويكرد مديريت استراتژيك فرهنگي، دبيرخانه شوراي عالي انقلاب فرهنگي 1383 10. پورعزت، علي اصغر؛ شناسايي مباني و شاخص هاي پايدار تدوين چشم انداز فرهنگ كشور جمهوري اسلامي ايران بر اساس تحليل منطقي متن نهج البلاغه و قانون اساسي، دكتر، دبيرخانه شوراي عالي انقلاب فرهنگي ،1385 11. قرباني علي حسين بررسي اصول و مباني مديريت فرهنگي، دبير خانه شوراي عالي انقلاب فرهنگي، 1383 12. حجة السلام پيروز مند ؛ چشم انداز مطلوب فرهنگي حوزه هاي علميه ،جايگاه مطلوب، الگوي ارزيابي،عملكرد مطلوب، دبيرخانه شوراي عالي انقلاب فرهنگي،،1384 13. فيروزآبادي سيد احمد؛ بررسي سرمايه اجتماعي در ايران و راها ي ارتقاء آن، شوراي عالي انقلاب فرهنگي،1384 14. محمد صالح اولياء، طرح و تعيين چگونگي مهندسي مجدد كلان فرايندهاي مديريت فرهنگي كشور،دبير خانه شوراي عالي انقلاب فرهنگي،1384 15. ايران زاده سليمان، ابعاد پرورشي و فرهنگي مورد نياز در فرآيند ايثار و از خودگذشتگي ، مجموعه مقالات همايش ايثار و شهادت، دبير خانه شوراي نظارت بر ترويج ايثار و شهادت، زمستان
|
عنوان : موانع و راهكارهاي ترويج فرهنگ ايثار و شهادت در جامعه
كلمات كليدي : فرهنگ، ايثار، شهادت، موانع، راهكار
نويسنده : نصراله عرفاني , صفي الله صفايي
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
<>
|
رديف
|
مانع
|
منابع مورد مطالعه
|
فراواني
|
درصد
|
|
|
طرح پژوهشي
|
مقاله
|
||||
|
1
|
ضعف شناخت و اطلاعات خانواده ها و جوانان درزمينه فرهنگ ايثار و شهادت
|
16
|
21
|
17
|
85
|
|
2
|
عدم الگوي سازي مناسب وعامه پسند ازشهدا و ايثارگران
|
17
|
14
|
14
|
70
|
|
3
|
عدم معرفي درست جنگ انقلاب در فيلمها و سريالها
|
12
|
23
|
14
|
70
|
|
4
|
عملكرد ضعيف برخي از مسئولين و مديران جامعه در خصوص ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
18
|
13
|
13
|
65
|
|
5
|
كمبود اعتبارات براي ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
14
|
18
|
13
|
65
|
|
6
|
عدم ثبات و افراط و تفريط در امر ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
16
|
9
|
13
|
65
|
|
7
|
عدم بهره گيري از علوم و فنون و تكنيك هاي روز در امر ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
15
|
11
|
12
|
60
|
|
8
|
ايجاد ذهنيت منفي در عامه مردم نسبت به شهدا و ايثارگران با بزرگ نمايي بي حاصل و مانور تبليغاتي غير واقعي در خصوص مزايا و تسهيلاتي كه به حق ولي اندك به آنها تعلق مي گيرد
|
12
|
7
|
12
|
60
|
|
9
|
استفاده ابزاري از ارزشهاي فرهنگ ايثار و شهادت
|
13
|
15
|
12
|
60
|
|
10
|
جاه طلبي و مسابقه قدرت جريانهاي سياسي مدعي انقلاب، جنگ و اسلام
|
8
|
20
|
11
|
55
|
|
11
|
عدم هماهنگي بين نهادهاي ترويج كننده فرهنگ ايثار و شهادت
|
10
|
8
|
10
|
50
|
|
12
|
عدم گزينش افراد توانمند و با استعداد علمي و اخلاقي در زمينه ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
12
|
9
|
9
|
45
|
|
13
|
عدم مديريت و برنامه ريزي دقيق علمي براي گسترش فرهنگ ايثار و شهادت
|
10
|
13
|
9
|
45
|
|
14
|
گرايش مردم به تجمل گرايي و مصرف گرايي
|
8
|
14
|
8
|
40
|
|
15
|
عدم شفاف سازي وظايف و پاسخگويي در برابر مسئوليت هاي نهادهاي مختلف ترويج دهنده فرهنگ ايثار و شهادت
|
9
|
15
|
8
|
40
|
|
16
|
تكرار مكررات و تك بعدي عمل كردن درترويج فرهنگ ايثارو شهادت
|
7
|
17
|
٨
|
40
|
|
17
|
افزايش آسيبهاي اجتماعي نظير اعتياد،طلاق وافسردگي در جوانان
|
6
|
12
|
7
|
35
|
|
18
|
رويكرد مخاطب خاص برنامه هاي مختلف در حوزه ايثار و شهادت
|
5
|
9
|
7
|
35
|
|
19
|
بي انگيزگي بسياري از متوليان فرهنگي از جمله معلمان و اساتيد دانشگاه
|
9
|
11
|
7
|
35
|
|
20
|
شرايط فرهنگي،سياسي،اجتماعي واقتصادي جامعه
|
10
|
13
|
7
|
35
|
|
21
|
رواج فرهنگ فردگرايي در جامعه
|
8
|
16
|
7
|
35
|
|
22
|
عدم وجود يك نهاد مركزي هدايت كننده فعاليت هاي مرتبط با ترويج فرهنگ ايثار و شهادت سازمانهاي مختلف
|
8
|
10
|
6
|
30
|
|
23
|
ارائه چهره نامطلوب و خشن از اسلام و ارزش هاي اسلامي
|
9
|
13
|
6
|
30
|
|
24
|
عدم آگاهي جوانان از انقلاب و جنگ
|
5
|
17
|
6
|
30
|
|
25
|
نهادينه نشدن فرهنگ ايثار و شهادت در سطح كلان
|
7
|
16
|
6
|
30
|
|
26
|
تكرار بيهوده و ارائه گزارشات كليشهاي از سر تكليف صرفاً به جهت ارائه گزارش به مقامات مافوق
|
8
|
7
|
6
|
30
|
|
27
|
عوام فريبي و عوام زدگي در امرترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
6
|
11
|
6
|
30
|
|
28
|
تلاش دشمنان اسلام در راستاي كمرنگ نمودن ارزش هاي انقلاب و جنگ
|
4
|
18
|
5
|
25
|
|
29
|
متفرق شدن اسوه هاي مقاومت و ايثار پس از جنگ ودرگير شدن در مسائل دنيوي وسياسي
|
3
|
12
|
5
|
25
|
|
30
|
عدم برخوداري برخي از مسئولين و نهادهاي متولي گسترش فرهنگ ايثار و شهادت از شاخص هاي فرهنگ ايثار و شهادت
|
5
|
٩
|
4
|
20
|
|
31
|
عدم تداوم فرهنگ ايثار و شهادت در آينده، ماندن در گذشته و عدم پاسخگويي به حال و آينده
|
4
|
8
|
4
|
20
|
|
32
|
فقدان انسجام فرهنگي در جامعه
|
6
|
15
|
4
|
20
|
|
33
|
وجود خلاء تئوريك در امر ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
5
|
6
|
3
|
15
|
|
رديف
|
راهكار
|
منابع مورد مطالعه
|
فراواني
|
درصد
|
|
|
طرح پژوهشي
|
مقاله
|
||||
|
1
|
مزين شدن انديشه و رفتار مسئولان به فرهنگ ايثار و شهادت
|
20
|
11
|
17
|
85
|
|
2
|
ايجاد يادمان هاي ثابت در شهرها، خيابان ها و اماكن عمومي
|
19
|
21
|
17
|
85
|
|
3
|
تهيه برنامه هاي صوتي- تصويري عامه پسند از جمله فيلم، تئاتر، برنامه هاي راديويي و نماهنگ
|
21
|
14
|
16
|
80
|
|
4
|
بكارگيري فناوري هاي جديد و مناسب مانند اينترنت، ماهواره و پيام كوتاه در ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
15
|
18
|
16
|
80
|
|
5
|
جمع آوري، دسته بندي و انتشار اسناد، مدارك، اطلاعات و نشانه هاي مربوط به دوران دفاع مقدس
|
16
|
10
|
14
|
70
|
|
6
|
پرهيز از انحراف پردازي در ارائه مسائل ايثار و شهادت
|
14
|
15
|
13
|
65
|
|
7
|
ايجاد هماهنگي بين خانواده و مدرسه و ديگر محيطهاي آموزشي و تربيتي در ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
16
|
11
|
12
|
60
|
|
8
|
تأمين اعتبارات لازم براي ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
15
|
9
|
12
|
60
|
|
9
|
ممانعت از ابزاري شدن ارزش هاي فرهنگ ايثار و شهادت
|
12
|
7
|
9
|
45
|
|
10
|
حفظ و بازسازي مناطق جنگي
|
14
|
6
|
9
|
45
|
|
11
|
ايجاد سايت هاي مختلف در خصوص ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
11
|
15
|
9
|
45
|
|
12
|
تكريم ايثارگران و خانوادههاي شهدا با روش هاي مقبول اجتماعي
|
8
|
18
|
8
|
40
|
|
13
|
ارزيابي مستمر عملكرد نهادها و دستگاه هاي مختلف ترويج دهنده فرهنگ ايثار و شهادت
|
10
|
12
|
8
|
40
|
|
14
|
تأسيس و راه اندازي هر چه بيشتر موزه ها و گنجينه هاي مربوط به آثار شهدا و ايثارگران
|
8
|
11
|
8
|
40
|
|
15
|
محدود نكردن فرهنگ ايثار و شهادت به قشري خاص
|
12
|
5
|
8
|
40
|
|
16
|
حمايت هر چه بيشتر از پايان نامه هاي دانشجويي مرتبط با فرهنگ ايثار و شهادت
|
9
|
15
|
8
|
40
|
|
17
|
واگذاري نشر و توزيع كتب حوزه ايثار و شهادت به بخش خصوصي
|
6
|
13
|
7
|
35
|
|
18
|
درج آثار شهدا و آثار مرتبط با فرهنگ ايثار و شهادت در كتب درسي
|
10
|
11
|
7
|
35
|
|
19
|
ايجاد مراكز اسناد و بانك اطلاعاتي آثار مرتبط با ايثار و شهادت و فراهم آوردن امكان استفاده عموم از اين آثار
|
8
|
16
|
7
|
35
|
|
20
|
رفتارسازي غير مستقيم و ارائه الگوهاي عيني ايثار در بين عامه مردم
|
5
|
7
|
6
|
30
|
|
21
|
متمركز كردن فعاليت هاي مربوط به ترويج فرهنگ ايثار و شهادت در يك سازمان متولي اين امر و صرفهجويي در تخصيص بودجه
|
4
|
15
|
6
|
30
|
|
22
|
تشكيل جلسات سخنراني، سمينارها و همايش- هاي علمي، پژوهشي و فرهنگي ايثار و شهادت با جلب مشاركت عامه مردم
|
8
|
8
|
6
|
30
|
|
23
|
مبارزه با تهاجم فرهنگي و تبليغات كاذب دشمنان انقلاب و اسلام
|
3
|
12
|
6
|
30
|
|
24
|
معرفي شهدا، ايثارگران و نخبگان شاخص علمي، فرهنگي و هنري در برنامه هاي مختلف
|
4
|
16
|
5
|
25
|
|
25
|
عدم ورود ايثارگران به جناح بندي هاي سياسي
|
5
|
10
|
5
|
25
|
|
26
|
آشناسازي خانواده شهدا و ايثارگران با عامه مردم
|
3
|
9
|
4
|
20
|
|
27
|
برگزاري اردوهايي براي عموم مردم جهت بازديد از جاذبه هاي سياحتي و زيارتي مربوط به مناطق جنگي
|
6
|
11
|
4
|
20
|
|
28
|
برگزاري جلسات پرسش و پاسخ در زمينه ايثار و شهادت با حضور جوانان و ايثارگران
|
2
|
7
|
4
|
20
|
|
29
|
اعطاي نقش هاي فرهنگي به ايثارگران به عنوان واسطه هاي فرهنگي جامعه و رابطان ميان مردم و حكومت
|
5
|
15
|
4
|
20
|
|
30
|
افزايش تعامل و همكاري ميان حوزويان و دانشگاهيان در ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
6
|
13
|
4
|
20
|
|
31
|
برنامه ريزي راهبردي جهت ترويج فرهنگ ايثار و شهادت توسط نهادهاي مسئول اين امر مهم
|
4
|
12
|
4
|
20
|
|
32
|
استفاده از روش هاي گرافيك محيطي (ديوار نوشته، نقاشي ديواري، آبنما، تابلوها و بيلبوردها، حجم هاي گرافيكي، پوستر و پرده)
|
1
|
12
|
3
|
15
|
|
33
|
استفاده از مشاوران و روانشناسان اجتماعي براي بهبود ذهنيت مردم نسبت به ايثار و شهادت
|
5
|
7
|
3
|
15
|
|
34
|
شفافسازي و رفع ابهام ميان ارزش ها و ضد ارزش ها براي جوانان
|
4
|
15
|
3
|
15
|
|
35
|
تشكيل هيأت ها و انجمن هاي مردمي جهت ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
1
|
8
|
3
|
15
|
|
36
|
تغيير رويه عملكرد سازمان هاي متولي ترويج فرهنگ ايثار و شهادت از حالت نظري به عملي
|
2
|
12
|
2
|
10
|
|
37
|
ارائه نمادهاي رفتاري و سمبل هاي عملي فرهنگ ايثار و شهادت به جوانان
|
1
|
16
|
2
|
10
|
|
38
|
استفاده از اعياد و ايام سوگواري جهت ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
3
|
9
|
1
|
5
|
|
رديف
|
مانع
|
ميانگين
|
رتبه
|
|
1
|
عملكرد ضعيف برخي ازمسئولين و مديران جامعه در خصوص ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
4/52
|
1
|
|
2
|
عدم گزينش افراد توانمند و با استعداد علمي و اخلاقي در زمينه ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
43/4
|
2
|
|
3
|
عدم هماهنگي بين نهادهاي ترويج كننده فرهنگ ايثار و شهادت
|
39/4
|
3
|
|
4
|
عدم مديريت و برنامه ريزي دقيق علمي براي گسترش فرهنگ ايثار و شهادت
|
38/4
|
4
|
|
5
|
جاه طلبي و مسابقه قدرت جريان هاي سياسي مدعي انقلاب و اسلام
|
26/4
|
5
|
|
6
|
عدم آگاهي جوانان از انقلاب و جنگ
|
19/4
|
6
|
|
7
|
عدم ثبات و افراط و تفريط در امر ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
06/4
|
7
|
|
8
|
استفاده ابزاري از ارزشهاي فرهنگ و ايثار و شهادت
|
04/4
|
8
|
|
9
|
افزايش آسيبهاي اجتماعي نظير اعتياد، طلاق و افسردگي جوانان
|
01/4
|
9
|
|
10
|
بي انگيزگي بسياري از متوليان فرهنگي از جمله معلمان و اساتيد دانشگاه
|
99/3
|
10
|
|
11
|
ارائه چهره نامطلوب و خشن از اسلام و ارزشهاي اسلامي
|
94/3
|
11
|
|
12
|
عدم معرفي درست جنگ و انقلاب در فيلمها و سريالها
|
84/3
|
12
|
|
13
|
تلاش دشمنان اسلام در راستاي كمرنگ كردن ارزشهاي انقلاب و جنگ
|
83/3
|
13
|
|
14
|
گرايش مردم به تجمل گرايي و مصرف گرايي
|
80/3
|
14
|
|
15
|
فقدان انسجام فرهنگي در جامعه
|
62/3
|
15
|
|
رديف
|
راهكار
|
ميانگين
|
رتبه
|
|
1
|
بكارگيري فناوري مناسب مانند اينترنت و ماهواره براي ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
44/4
|
1
|
|
2
|
شفاف سازي و رفع ابهام ميان ارزشها و ضد ارزشها براي جوانان
|
37/4
|
2
|
|
3
|
استفاده هر چه بيشتر از جوانان جهت ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
29/4
|
3
|
|
4
|
محدود نكردن فرهنگ ايثار و شهادت به قشر و گروه خاص
|
21/4
|
4
|
|
5
|
ارائه نمادهاي رفتاري و سمبلهاي عملي فرهنگ ايثار و شهادت به جوانان
|
18/4
|
5
|
|
6
|
درج آثار شهدا و آثار مرتبط با فرهنگ ايثار و شهادت در كتب درسي
|
08/4
|
6
|
|
7
|
استفاده از مشاوران و روانشناسان اجتماعي براي بهبود ذهنيت مردم نسبت به ايثار و شهادت
|
06/4
|
|
|
8
|
برگزاري جلسات پرسش و پاسخ در زمينه شهيد و شهادت با حضورجوانان و ايثارگران
|
04/4
|
8
|
|
9
|
انجام طرحهاي كاربردي علمي و پژوهشي درزمينه ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
03/4
|
9
|
|
10
|
تشكيل هيأتها و انجمن هاي مردمي براي ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
96/3
|
10
|
|
11
|
افزايش تعامل و همكاري بين حوزويان و دانشگاهيان در ترويج فرهنگ ايثار و شهادت
|
95/3
|
11
|
|
12
|
ايجاد يادمان هاي ثابت در شهرها، خيابانها واماكن عمومي
|
91/3
|
12
|
|
13
|
عدم ورود ايثارگران به جناح بندي هاي سياسي
|
77/3
|
13
|
|
14
|
واگذاري نشر و توزيع كتب حوزه ايثار و شهادت به بخش خصوصي
|
59/3
|
14
|
عنوان : بررسي و تبيين تأثير مساجد بر شهادت طلبي، ايثارگري و گرايش به ارزش هاي اسلامي
كلمات كليدي : حضور در مسجد، شهادت طلبي، ايثارگري، گرايش به ارزش هاي اسلامي
انواع مقالات :علمي و فرهنگي
نويسنده : نورعلي عباس پور
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
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عنوان : " نياز سنجي اقتصادي، اجتماعي و فرهنگي خانواده هاي شاهد"
كلمات كليدي : نياز (need)، نياز فرهنگيCultural need)) ، نياز اقتصادي ( Economical need) ، نياز اجتماعي(Social need)
انواع مقالات :علمي و فرهنگي
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
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عنوان : بررسي نيازهاي اجتماعي فرهنگي فرزندان شاهد از ديدگاه خودشان، والدين و مربيان
كلمات كليدي : نياز needs، نياز سنجي needs accesment، نيازهاي اجتماعي-فرهنگي cultural needs social and، فرزندان شاهد shahed children
انواع مقالات :علمي و فرهنگي
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
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عنوان : بررسي اثر بخشي تبليغات شهري بنياد شهيد انقلاب اسلامي از ديدگاه جامعه
كلمات كليدي : تبليغات Propaganda ، نگرش attitude
انواع مقالات :علمي و فرهنگي
نويسنده : دكتر داود معنوي پور
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
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عنوان : بررسي رابطه بين دينداري و سلامت رواني
كلمات كليدي : دينداري، سلامت رواني Mental health ، دانش آموزان شاهد shahed student
انواع مقالات :علمي و فرهنگي
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
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عنوان : مباني ديني فرهنگ ايثار و شهادت
كلمات كليدي : شهيد، صبر، حيات جاويد، مصيبت، موانع و چالش ها
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
اگر اين فرهنگ و تفكر در جامعه حاكم شود كه شهيد زنده، گواه و شاهد است و هيچ حزن و اندوهي ندارد و اين انديشه در باور بازماندگان نقش ببندد، به يقين نورانيت شهيددر چهره ي آنها هم انعكاس مي يابد و آنها را به منزلتي مي رسا ند كه روحي زنده و با نشاط خواهند يافت و شاهد خواهند بود اگر آن نور بر تمام وجود بازمانده بتابد و اين فرهنگ در او ايجاد شود، در وجود او هم ترسي نخواهد ماند. نگراني، ناشي از قرار گرفتن در موقعيت ها ي ناشناخته است و اگر فرهنگ شناخت موقعيت ها براساس اين تحليل عميق قرآني در ميان بازماندگان شهدا ايجاد شود، تاثيرات بسيار سازنده و مثبت فكر ي، اجتماعي و اخلاقي در آنها خواهد گذاشت؛ البته بدون ترديد تنها پرداختن به بعد نظري موضوع كافي نيست.
درآيات قرآن دائماً بر اين نكته تأكيد شده است كه اين فرهنگ جامعه را با نشاط تر ، سرزنده تر ، باانگيزه تر و فعال تر خواهد كرد . اگر جهان بيني و زير بناي فكر ي وفرهنگي افراد براين مبنا استوار باشد كه جز به لقاي پروردگار نينديشند ، اراده ي او را برخواست خود مقدم شمارند، دربرابر آنچه او براي آنان مقدر كرده است سرتسليم فرود آورند و در برابر هر محنت و مصيبتي كه به آنان مي رسد صبور باشند، بديهي است آنان كه قرباني مي شوند يا در مصيبت صبر مي كنند پالايشي در روحشان حاصل مي شود كه به خاطر آن استحقاق حضور مي يابند و به مقام شهود مي رسند. در اين مقام موقعيت كاملاً شناخته شده است؛ بنابراين حزن و ترس منتفي است. درك اين فرهنگ نتايجي به بار مي آورد كه يكي از انعكاسات آن ايجاد جامعه اي پرنشاط و فعال است.
يكي از كوشش هاي اصلي پيامبر اكرم (ص) در ده سال حضور در مدينه كه دوره ي شهادت بود، ايجاد همين فرهنگ بود. پيامبر(ص) در اين راه بسيار موفق بود، زيرا از انسان هايي كه جز مفاخرات فردي و خوني چيزي نمي فهميدند، مرداني ساخت كه « شهادت » در راه خدا برايشان آرزو بود و زناني كه اندك مسامحه اي را بر همسران فرزندان و خويشاوندان، درجهاد در راه خدا نمي بخشيدند و با لبخند از جنازه شهيدان شان استقبال مي كردند و هيچ گاه نشاط زندگي هم از آنان سلب نمي شد.
در دوران دفاع مقدس و جنگ تحميلي از سوي استكبار جهاني، انقلاب اسلامي ايران، قربانيان فراواني داده. در ميان پدران و مادران و همسران و خواهران شهيد پروري كه عزيزان خود را به جبهه جنگ مي فرستادند از اين قبيل نمونه ها فراوان داريم و مي بينيم.
مقدمه
ازآن زمان كه قابيل خون برادر برزمين ريخت، در حيات تبعيديان عالم خاك صفحه اي گشوده شد كه سطور آن را با خون نگاشته اند و تا ابناء آن دو براين خاكدان مي زيند، اين صحنه و اين صفحه گشوده خواهد ماند.
دراين عرصه دوگونه مقابله امكان پذير است، حق با باطل و باطل با باطل. هر دو گروه دسته ي دوم درعداد قابيليانند و از دسته ي نخست، گروه اول در كنار هابيل مي ايستند و جماعت دوم درصف قابيل. از آن جا كه رودرروئي هاي تاريخ بشر عمدتاً مقابله باطل با باطل بوده است، خونهاي بسيار براي ارضا ء نفسانيات و اطفاء شهوانيات بر زمين ريخته شده و حجب ظلماني كفر، شرك و نفاق، صاحبان آن را درخود فرو برده است. اينان عمدتاً كساني هستند كه با پذيرش ولايت طاغوت – اعظم طواغيت نفس اماره ي آدمي است- به طرف ظلمانيت شتافته اند؛ چون نور را نشناخته اند مستحق نارند تا كثافت نفسشان چنان سوزانيده شود كه ديگر نور را مانع نباشند.
اما آنان كه ولايت نور را پذيرفته اند، ظلمت گريزند و تاريكي ها و تباهي ها سخت آزارشان مي دهد. رو به سوي نور پيش مي روند و هر چه بالاتر مي روند شوقشان به صعود بيشتر مي شود. اينان را با خفاشان شب آشنا ميانه اي نيست؛ با اصحاب نور بر فرو رفتگان دردرياي ظلمت دل مي سوزانند و دست ياريشان را براي نجات ره گم كردگان دراز مي كنند؛ اما عمال سياهي كه ياراي درك نور ندارند، باسپر جهل به مقابله ي آنان رفته و بر آنان تير جفا مي افكنند. چنين است كه اين جماعت در درياي ظلمت خود بيشتر فرو مي روند و مناديان نور، عروجي نوراني تر را آغاز مي كنند، تا آنجا كه همه ي مرزها و ميادين را در نورديده و به مقام « شهادت » نائل مي گردند. مي بينند نه به چشم سر، كه با چشم معشوق؛ مي شنوند نه با گوش تعيني، بلكه با گوش « او». مستغرق در معشوق مي شوند و به كمال آرزوي يك عاشق دست مي يابند.
به يقين در تبيين وظيفه ي جامعه اسلامي و نهادهاي رسمي و غيررسمي آن در قبال بازماندگان شهدا، هيچ منبعي بهتر و روشني بخش تر ازقرآن و سيره و سنت معصومين صلوات ا... عليهم اجمعين نيست.
قصد ما اين است كه در حد توان به شناسايي و معرفي اين اصول و رهنمودهاي « ثقلين » دراين رابطه بپردازيم. شايد آنچه گردآورده مي شود چراغ راهي باشد براي نسل حاضر و نسل هاي آينده كه در پرتو هدايت هاي قرآني و سيره و سنت حضرات معصومين ( ع ) نسبت به انجام اين تكليف بزرگ الهي اقدام نمايند.
مصاديق شهيد
«شهادت» در راه خدا به دليل شرافت و قداست آن يك مسئله ارزشمند است، از همين رو دربرخي مواقع براي بيان اهميت و قداست يك موضوع دراحاديث و ادعيه، آنرا با شهادت قرين كرده اند يا اينكه واژه ي شهيد و شهادت براي بيان منظوري غير از كشته شدن درراه خدا نيز استفاده شده است؛ بعبارت ديگر از شهادت بعنوان معياري براي سنجش اعمال و تشويق مومنان براي اعمال نيك استفاده شده است؛ بنابراين اگر سعادت وتوفيق پيكارو شهادت در ميدان نبرد براي انسان حاصل نشود بايد براين حقيقت استوار بود كه شهادت هدف نيست، بلكه وسيله اي براي جلب رضايت پروردگار و معيار و انگيزه اي براي گام نهادن در مسير سعادت و رستگاريست، لذا راههاي ديگري نيز براي رسيدن به اين مقام ومنزلت وجود دارد كه پيمودن آنها حداقل اجر شهيد را در آخرت براي انسان به دنبال دارد.به هر حال اطلاق واژه ي شهيد بر افرادي كه در ميدان جنگ كشته نشده اند، چه براي اهميت موضوع و چه به لحاظ ارزشمند بودن آن مسئله و تعلق اجر و پاداش شهيد به كساني كه اقدام خاصي را انجام مي دهند، خود موضوعي است كه در اين جا به صورت مختصر مورد بحث قرار خواهد گرفت. در مجموع غير از كشته شدگان در راه خدا، بر گروه ها ي ديگري نيز با واژه ي « شهيد» اطلاق شده است كه در ذيل به برخي از موارد اشاره مي شود:
1. عارف حق
كسي كه به حقيقت حيات دست يافته باشد و در مسير زندگي خود به بهترين وجه خدا و رسولش را شناخته باشد و به جانشينان پيامبر صلي الله عليه و آله ايمان داشته باشد نيز شهيد است. امام علي عليه السلام مي فرمايد:
«هر آنكه برمعرفت حق و رسول خدا و اهل بيت وي بميرد، اگرچه در بستر مرده باشد، به يقين در هيئت و لباس شهيدان مرده است و اجر و پاداش او برخداست.»
براين اساس بايدگفت مرگ عرفا و اوليا خدا نوعي شهادت است، البته بايد توجه داشت كه عرفان محصور در اوليا و عرفا به عنوان يك طبقه و فرقه اي خاص نيست، بلكه هركه خدا رابه درستي بشناسد و پيامبر خدا و اهل بيت او را نيز بشناسد و به حق و تكليف خود در قبال آنان آگاهي داشته باشد، در واقع عارف محسوب مي شود و مرگ وي اگر چه در بستر باشد شهادت به حساب مي آيد و اجر شهيد را دارد.
2. ثابت قدم در دين و ولايت ائمه
كسي كه درعهدخود با خدا در همه حال ثابت قدم باشد و علاوه برتوحيد و نبوت به امامت و ولايت امامان معصوم عليهم السلام – كه از اركان دين است- ايمان داشته باشد شهيد است و اجر شهيدان را دارد.
امام سجاد عليه السلام مي فرمايد:
«هركه در زمان غيبت بر ولايت و امامت ما اهل بيت استوار و ثابت قدم بماند خداوند اجر و پاداش هزار شهيد را به او عطا مي كند.»
همچنين امام صادق عليه السلام مي فرمايد:
«هر كه برامر ولايت و امامت ما اهل بيت بميرد، شهيد محسوب مي شود هرچند كه مرگ وي در بستر باشد، چرا كه چنين فردي همانند شهدا زنده است و نزد خدا داراي رزق و روزي است.»
از امام حسين عليه السلام نيز روايت است كه فرمود:
«هركس در زمان غيبت و در انتظار حضرت مهدي برسختي ها و آزار و اذيت ها صبور و پايدار و شكيبا باشد به منزله ي مجاهدي است كه با شمشير خود در ركاب پيامبر شمشير زده باشد.
3. طالب علم
هركه به قصد خير و نيت قربت درراه رضاي خداوند گام بردارد و سختي ها را برخود روا دارد تا به هدف خاصي كه دين هم آن را تأييد كرده است برسد، اگر در اين راه بميرد شهيد محسوب مي شود. از جمله ي اين افراد، طالب علم و معرفت است كه پيامبر صلي الله عليه و آله درباره ي آنان مي فرمايد:
«هنگامي كه مرگ جوياي علم فرا رسد و او در حال كسب علم باشد به هيئت شهيدان مرده است.»
4. زائر حسين
زيارت امام حسين عليه السلام ازجمله ديگر اعمالي است كه انجام و گسترش آن مورد توجه ائمه عليهم السلام بوده است و براي آن اجري همانند شهادت درراه خدا بيان شده است؛ بنابراين كسي كه به زيارت امام حسين عليه السلام برود همانند كسي است كه در راه خدا شهيد شده باشد.
امام صادق عليه السلام مي فرمايد:
«هركه در روز عاشورا به زيارت امام حسين برود و او را زيارت كند. و در كنار قبر او بيتوته كند همانند كسي است كه در ركاب امام حسين عليه السلام شهيد شده باشد.»
5: غريب
درمتون اسلامي از مرگ نيز به عنوان شهادت ياد شده است. چنانكه پيامبر اكرم صلي الله عليه و آله مي فرمايد:
«مرگ غريب، شهادت است.»
البته غربت داراي معاني مختلفي است و مي توان تفاسير گوناگوني از آن ارائه داد كه فعلا مجال آن نيست، اما بايد گفت شايد به دليل مشكلات طاقت فرسايي كه در گذشته شخص غريب تحمل مي كرد و يا به سبب مشكلاتي كه به خاطراعتقادات خود متحمل مي شد، اجر شهيد براي او در نظر گرفته شده است.
6: دارنده ي طهارت
طهارت و پاكيزگي مورد توجه خاص اسلام است و به سبب اهميت آن، اجر و پاداش طهارت داشتن با اجر شهيد مقايسه شده است، چنانچه پيامبر اكرم صلي الله عليه و آله به يكي ازياران خود به نام انس فرمود:
«اي انس اگر بتواني شب و روز با وضو و طهارت باشي همين كار را بكن چرا كه اگر در اين حالت بميري شهيد محسوب مي شوي.»
7. مدافع از جان، مال و ناموس
دفاع از جان و مال و ناموس داراي ارزش و اهميت بالاتر و پيامدهاي سياسي- اجتماعي زيادي است. به دليل اهميت اين مساله، مدافع از جان و مال و ناموس با شهيد مقايسه شده است، چنانچه پيامبر صلي الله عليه و آله فرمود:
«هركس در دفاع از جان خود با متجاوز بجنگد و كشته شود، شهيد است و هركه در دفاع از مال خود بجنگد و كشته شود شهيد است و هر كه در دفاع از خانواده و عيال خود بجنگد و كشته شود شهيد است.»
8. غريق، مهدوم، طاعون زده و...
گاهي افراد دچار مرگ دلخراشي مي شوند كه هيچ تقصيري درآن ندارند و در عين حال چاره اي نيز پيش روي خود نمي بينند؛ در مورد اينگونه مردن پيامبر صلي الله عليه و آله مي فرمايد:
«شهيدان پنج دسته اند: طاعون زده، مرده از درد شكم، غرق شده، آنكه زير آوار مرده است و آنكه درجنگ في سبيل الله شهيد مي شود.»
ظاهر امر اين است كه همه ي گروه هاي ياد شده نه به لحاظ عظمت و قداست، بلكه به لحاظ ثواب و پاداش شهيد محسوب مي شوند؛ هرچند احكام فقهي شهيد بر آنها جاري نمي شود. در همين زمينه در كتاب ارشاد الساري – كه از منابع اهل سنت است – آمده است: «روزي پيامبر صلي الله عليه وآله از ياران خود پرسيد چه كساني را شهيد محسوب مي كنيد؟ گفتند: هرآنكه در راه خدا كشته شود. پيامبر صلي الله عليه وآله فرمود: در اين صورت شهيدان امت من بسيار اندك خواهند بود. سپس حضرت برخي از گروههاي فوق را نام برد و فرمود: اينها نيز جزو شهدا محسوب مي شوند.»
9. سعادت و شهادت
در ادعيه و زيارتها – و نيز در روايات – به موارد متعددي برخورد مي كنيم كه شهادت در راه خدا را سعادت توصيف كرده اند. اين قبيل روايات و ادعيه كه تعداد آنها هم كم نيست، به طور صريح شهادت در راه خدا را سعادتي مي دانند كه در پي آن ضلالت و گمراهي وجود ندارد. در بخش عظيمي از ادعيه از درگاه خداوند خواسته شده تا سعادت را نصيب انسانها كند و در تفسير سعادت، كشته شدن در راه خدا ذكر شده است. به عبارت ديگر دو واژه ي سعادت و شهادت در ادعيه و زيارتها همواره با هم ذكر شده اند و در يك معنا به كار رفته اند. كشته شدن در راه خدا مهمترين نوع سعادت است. در مقابل سعادت، شقاوت قرار دارد كه به معني دور بودن و دور شدن از رحمت و جوار الهي است. از اين زاويه و باتوجه به اينكه شهادت زيستن در جوار خداوند محسوب مي شود، سعيد كسي است كه در اين جهان خداوند به او نظر دارد و درآن جهان نزد خدا مأوي دارد و شقي كسي است كه در هر دو جهان از رحمت خاصه ي خداوند به دور است. امام سجاد عليه السلا م دردعاي خود مي فرمايد:
«خدايا دراين دنيا مرا جامه ي عصمت بپوشان و در آن دنيا مرا در جوار رحمت خود جاي بده و سعادت و رستگاري را نصيب من كن. بدرستي كه شقي و بدبخت كسي است كه تو او را به حال خود رها كني و سعيد كسي است كه تو او را در كنف حمايت و نعمت خود قرار دهي و به هنگام مرگ او را غريق رحمت خود كرده و در منازل رحمت خود جاي دهي.»
10. نزديكي شهدا به پيامبران و صالحان
يكي از موضوعاتي كه به روشني در ادعيه و روايات و زيارتها به چشم مي خورد، مساله اقتران و هم رديفي شهيدان با پيامبران، صديقان و صالحان است. در اكثر جاهايي كه از شهيدان نام برده شده، نام آنها به همراه نام پيامبران و صديقان و صالحان آمده است. اين مساله مي تواند دلايل زيادي داشته باشد كه به نمونه اي از آنها اشاره خواهد شد. حضرت فاطمه زهرا سلام الله عليها در تعقيب نماز ظهر خود دعايي را مي خواند كه در ضمن آن شهيدان در رديف پيامبران و صالحان و صديقان ذكر شده اند:
«خدايا در بهشت خود همنشيني با پيامبرت محمد صلي الله عليه و آله و كساني كه به آنها نعمت دادي چون پيامبران، صديقين، شهدا، و صالحين را شامل حال من كن كه آنان بهترين همنشينانند.»
11. آرزوي شهادت
آرزوي شهادت فصل ديگري ازكتاب لقاءالله وديدارروي محبوب است. علاوه براينكه شهادت و كشته شدن در راه حق في نفسه محبوب دل عارفان است، طلب شهادت و آرزوي رسيدن به اين مهم يكي از آرمانها و دغدغه هاي اولياي خدا بوده است. پيامبر اكرم(ص)و ائمه (ع)نه تنها همواره آرزوي شهادت از درگاه حق را داشتند، بلكه به ما نيز سفارش كرده اند كه ازخداوند بخواهيم توفيق وصول به خودرااز طريق شهادت به ما اعطا كند.
پيامبر اكرم (ص) در روايتي مي فرمايد: «هر كه آرزوي شهادت در راه خدا را داشته باشد و صادقانه توفيق شهادت را از خداوند درخواست كند، به آن خواهد رسيد و پاداش شهدا را دريافت خواهد كرد، حتي اگر در ظاهر در جنگ با دشمنان كشته نشود.»
12. آرزوي شهادت در ركاب پيامبر(ص) و ائمه(ع)
بخشي از ادعيه وزيارتهاي نقل شده از امامان معصوم (ع)به اين امر اختصاص يافته است كه اي كاش ما درصدراسلام بوديم و در جنگ هاي پيامبر(ص)و عليه كفار و مشركين شركت ميكرديم وبه شهادت مي رسيديم يا درركاب امام علي، امام حسن و امام حسين(ع) حضورداشتيم و در راه حفظ وگسترش دين خدا مبارزه مي كرديم و دشمنان دين خدا را مي كشتيم و خود نيز به شهادت مي رسيديم. اين مسئله نشان از دو امر دارد؛ يكي اهميت و قداست ذاتي شهادت و دوم اهميت و علو مقام شهداي صدر اسلام و شهيداني كه در ركاب ائمه(ع) به شهادت رسيدند. امام سجاد(ع) در دعائي كه به صلوات و تهنيت بر پيامبر(ص) اختصاص يافته مي فرمايد:
«خدايا اگر چه پيامبر(ص) در زمان قبل از ما بود و ما حيات او را درك نكرديم و او را نديديم، ما با هيچگونه ترديد وتأملي به او ايمان آورديم اما آرزو مي كنيم اي كاش با اوبوديم و در ركاب او مي جنگيديم و دست دشمنان را از سر او كوتاه مي كرديم و در راه تو شهيد مي شديم. پروردگارا حال كه ما نبوديم تا او را ياري دهيم و روزگار به ما اجازه نداده تا در زمان حيات او باشيم و با دشمنان او بجنگيم و با او هجرت كنيم و خود را سپر بلاي او قراردهيم، پس شهادت را نصيب ما كن! و ما را از با سعادت ترين ياران او قرار بده.»
13. آرزوي شهادت در ركاب حضرت مهدي (عج)
آرزوي شهادت درركاب حضرت مهدي (عج)يكي ديگر از مضاميني است كه درادعيه وزيارتها به چشم مي خورد. دعاهايي كه در اين رابطه وجود دارد بصورت يك سلسله مطالب پيوسته است كه ابتدا مقدمات بحث را ذكر مي كند و سپس قيام حضرت مهدي (عج) و طلب ياري براي ايشان از خدا در جنگ با كافران و نهايتاً توفيق شهادت درركاب وي را از خداوند درخواست مي كند. در دعاهاي معروفي كه درزمان غيبت وارد شده است مي خوانيم:
«خدايا! ما مشتاق و اميدواربه دولت كريمه اي هستيم كه بوسيله آن اسلام و مسلمانان را عزت عطا كني و منافقين را ازبين ببري و در آن ما را از داعيان به سوي طاعت و از رهبران راه خود قراردهي.»
14. درخواست بهترين شهادت ها
نكته ي جالب توجه دررابطه با شهادت اين است كه همانگونه كه مرگ داراي مراتبي است، شهادت نيز داراي درجات ومراتبي است و ازهمين رو شهدا نيز داراي مراتب و مقامات مختلف هستند. پيامبر اكرم مي فرمايد: «شهيدان نيز در ميان خود داراي مراتبند. برخي رئيس، برخي شهيد و برخي سرور ساير شهدا محسوب مي شوند.» بنابراين شهيدي كه معصوم است و در ميدان جنگ با انگيزه ي الهي بجنگد و كشته شود سرور شهيدان است و آنان كه در ركاب پيامبر(ص) و امام معصوم(ع) بجنگند و كشته شوند، با توجه به نيت، فداكاري و ايثار خود داراي مراتب و مقامات بالا و بالاتر هستند. كسي كه درمقام دفاع ودرغير زمان امام معصوم نيز بجنگد وكشته شود شهيد است و احكام شهيد بروي جاري است.
15. دعاي معصومان در مواجهه با شهادت طلبي ياران
درطول تاريخ اسلام و بخصوص درصدر اسلام كه پيامبر براي دفع كافران ومشركان جنگهاي زيادي را متحمل شد، افراد زيادي از ياران پيامبر(ص) و ائمه(ع) نزد آنان مي آمدند و درخواست مي كردند تا براي آنها دعاي شهادت كنند. در بسياري از اين موارد پيامبر(ص) و ائمه(ع) براي آنها دعاي شهادت مي كردند و در برخي مواقع نيز علي رغم درخواست واصرار آنها، دعا مي كردند تا ياران شان صحيح و سالم از جنگ برگردند و آسيبي به آنها نرسد. البته به طور كلي دعاي پيامبر(ص) و ائمه(ع) براي پيروزي و نصرت بر دشمن بود؛ لذا مواردي كه ذكر مي شود موارد خاصي است كه از شور واشتياق ياران پيامبر اكرم(ص) و ائمه(ع) به شهادت حكايت دارد و از سوي ديگر نشانگر مطلوبيت شهادت نزد پيامبرصلي الله عليه وآله و ائمه عليهم اسلام است، از همين جهت پيامبر(ص) فرمود به كسي كه لباس نو و جديد پوشيده است، مي فرمايد:
«بگوئيد: اميد كه همواره لباس جديد و نو به تن داشته باشي و از زندگي آبرومندانه برخوردار گردي و مرگ تو شهادت سعادتمندانه در راه خدا باشد!»
16. دعاي پيامبر(ص) و ائمه(ع) براي شهدا و بازماندگان
يكي از صحنه هاي زيبا و بياد ماندني بعد از هر جنگ، صحنه ي بازديد و دلجوئي فرمانده سپاه از سربازان و نيروهاي خودي است و در اين ميان توقف بر بدن شهدا و زمزمه و دعا در حق آنها خود جلوه اي ديگر دارد. صحنه هاي زيادي از جنگهاي صدر اسلام وجود دارد كه پيامبر بر بالين شهدا مي آمد و براي آنها دعا مي كرد. در مورد امام علي و امام حسين(ع) نيز وضع به همين گونه بود. به طور كلي پيامبر(ص) و ائمه(ع) احترام خاصي براي شهدا قائل بودند و در مراتب مختلف رضايت خود از آنها را به درگاه خدا اعلام مي كردند، و براي آنها دعا مي كردند و بر آنها درود و سلام مي فرستادند. روايت است كه پيامبر هنگامي كه از قبور شهدا عبور مي كرد، مي فرمود:
«سلام بر شما بخاطر صبر و پايداري شما در راه دفاع از دين خدا و خوش به حال شما كه در بهترين مكان نزد پروردگار خود مأوي گزيده ايد.»
17. انتظار در زيارت عاشورا
انتظار پديده اي است كه رابطه ي تنگاتنگ با ارزشهاي شيعيان و بخصوص مساله ي شهادت دارد. خلفاي اموي و عباسي حقوق ائمه عليهم السلام را غصب كردند و تمامي جنبش ها و قيامهاي شيعيان را در راه گرفتن حق و اقامه ي عدالت باخشونت تمام سركوب كردند؛ بنابراين شيعيان همواره درانتظار بوده اند.
پيامبر(ص) و ائمه(ع) فرموده اند تا فرصتي براي اقامه ي حق بدست آوريد، انتقام خون شهيدان خود را از ستمكاران بگيريد. در زيارت عاشورا هم انتظار و شهادت امام حسين عليه السلام رابطه ي تنگاتنگي دارند.
در اين زيارت انتظار به معناي انزوا و گوشه نشيني نيست. به معناي اين نيست كه ما همه ظلم و ستم ها را تحمل كنيم به اين اميد كه كسي بيايد و ما را نجات دهد. بلكه انتظار در فرهنگ شيعه كه در زيارت عاشورا بخوبي متجلي يافته است، انتظاري سرخ به معني آمادگي براي ايثار و فداكاري است. در اين انتظار مومنان و آزادگان آماده اند تا با تمام قوا در مقابل دشمنان دين خدا بايستند وانتقام تمامي ظلم و ستم هايي كه در طول تاريخ بر همه ي انبيا و اوليا و انسانهاي بيگناه رفته است، بستانند. نمونه ي تجلي بارزاين انتقام و خونخواهي در زيارت عاشورا متجلي مي شود. به طوري كه مي توان گفت زيارت عاشورا زيارت انتظار و انتقام است. در اين زيارت ضمن بررسي وقايع و فجايعي كه نسبت به خاندان پيامبر صلي الله عليه و آله و شخص امام حسين عليه اسلام و ياران ايشان رفته است، لعن و نفرين خود را در حق قاتلان و ظالمان ابراز مي داريم و از خداوند مي خواهيم تا ما را جزو كساني قرار دهد كه در صف ياران حضرت مهدي(عج) انتقام خون امام حسين و همه ي پيامبران و اوليا را از دشمنان دين بگيريم در اين زيارت مي خوانيم:
«خدايا مرا از خونخواهان امام حسين عليه السلا م قرار بده تا با امام مهدي(عج) به خونخواهي امام حسين عليه السلام قيام كنم.» بازتاب عملي زيارت عاشورا در رابطه با انتظار اين است كه انسانهاي مومن با بخاطر داشتن ظلم و ستم هايي كه بر اهل بيت عليهم السلام رفته است، انحرافاتي را كه بعد از رحلت پيامبر اكرم صلي الله عليه و آله و سلم در مسير حكومت اسلامي بوجود آمده، از بين ببرند و آماده باشند تا در ركاب امام معصومي كه از نسل پيامبر اكرم صلي الله عليه و آله است به مبارزه و جهاد بپردازند و در اين راه به شهادت برسند. خواندن ادعيه و زيارتهايي چون دعاي ندبه و زيارت عاشورا آمادگي براي چنين امري را همواره در انسان تقويت مي كند. در دعاي ندبه كه بهترين زبان حال انتظار مي باشد، به حالت شكوه از خدا مي پرسيم:
«كجاست آنكه منتظر است تا كجي ها را از دين بزدايد؟ كجاست آنكه بنيان شرك و نفاق را از بين خواهد برد؟ كجاست خونخواه پيامبران و فرزندان پيامبران؟».
18. كجاست خونخواه شهيد كربلا
در زيارت عاشورا انتظار مايه حيات يك مومن و شعيه ي واقعي معرفي شده است كه در پرتو آن حتي اگر انسان منتظر پيش از ظهور حضرت مهدي (عج) از دنيا برود، درعين حال كه داراي اجر و پاداش شهدااست، بعد ازظهور حضرت مهدي(عج) دوباره به دنيا بازخواهد گشت و انتظار خود را پايان خواهد داد و با امام زمان انتقام دشمنان دين خدا را خواهد گرفت. انتقام در اين معنا نه يك فرايند خشونت بار، بلكه تلاشي براي احيا و اقامه ي ارزشها و برقراري عدالت و امر به معروف و نهي از منكر است كه امام حسين عليه السلا م جان خود را در اين راه فدا كرد و همواره از خدا خواست تا از منتظران واقعي و از ياران باوفاي حضرت مهدي (عج) باشد. اين درخواست در همه ي زيارتهاي مربوط به امام حسين(ع) و حضرت مهدي (عج) مشهود است. دريكي از زيارتهاي امام حسين عليه السلام مي گوييم:
«خدايا برمحمد و آل محمد درود فرست... و مرا وپدرانم را و فرزندانم را از كساني قرار ده كه حضرت مهدي را ياري مي دهند.»
19. قداست شهيد
در اسلام واژه اي است كه قداست خاصي دارد. اگر كسي بامفاهيم اسلامي آشنا باشد و در عرف خاص اسلامي اين كلمه را بررسي كند، احساس مي كند كه هاله اي از نور آن را فرا گرفته است و آن، كلمه ي «شهيد» است. اين كلمه در همه ي عرفها توأم با قداست و عظمت است، چيزي كه هست معيارها و ملاكها متفاوت است.
از نظر اسلام هركس به مقام و درجه ي «شهادت» نائل آيد كه اسلام با معيارهاي خاص خودش او را «شهيد» بشناسد، يعني واقعاً در راه هدفهاي عالي اسلامي به انگيزه ي برقراري ارزشهاي واقعي بشري كشته بشود، به يكي از عالي ترين درجات و مراتبي كه يك انسان ممكن است در سيرصعودي خود نائل شود مي رسد. از نوع تعبير و برداشت قرآن درباره ي شهدا و از تعبيراتي كه در احاديث و روايات اسلامي دراين زمينه وارد شده است مي توان منطق اسلام را شناخت و علت قداست يافتن اين كلمه را درعرف مسلمانان دريافت.
20. به حق پيوستن شهيد
قرآن كريم در مورد به حق پيوستن شهيد مي فرمايد:
«و لا تحسبن الذين قتلوا في سبيل الله امواتا بل احياء عند ربهم يرزقون.» يعني: گمان مبر آنان را كه در راه حق شهيد شده اند مرده اند؛ خير، آنها زندگاني هستند نزد پروردگارشان و متنعم به انعامات او.
در اسلام وقتي كه مي خواهند مقام كسي را بالا ببرند مي گويند مقام او برابر است با مقام شهيد و اجر آن كار برابر است با اجر كار شهدا. مثلاً درباره ي طالب علم اگر واقعاً انگيزه اش حقيقت جويي و خدمت و تقرب به خدا باشد و علم را وسيله ي مطامع خود قرار ندهد، مي گويند اگر كسي طالب علم باشد و در هنگام دانشجويي و طلبگي بميرد شهيد از دنيا رفته است. اين تعبير، قداست و علو مقام طالب علم را مي رساند. همچنين درباره ي كسي كه براي اداره ي عائله اش خود را به رنج مي افكند و كار مي كند و زحمت مي كشد – كه البته اين خود يك فريضه است، زيرا اسلام با بيكاري و سربار ديگران بودن به شدت مخالف است – گفته شده است:
«الكاد لعياله كالمجاهد في سبيل الله.» يعني: آن كس كه براي عائله اش كار مي كند و زحمت مي كشد و خود را به رنج مي افكند مانند مجاهد در راه خداست.
21. حق شهيد
تمام كساني كه به نحوي و از هر راهي همچون فلسفه و انديشه، صنعت، اختراع و اكتشاف و اخلاق و حكمت عملي به بشريت خدمت كرده اند، نسبت به آن حق دارند؛ ولي هيچ كس حقي به اندازه ي حق شهدا بر بشريت ندارد و به همين جهت هم عكس العمل احساسي انسانها و ابراز عواطف خالصانه ي آنها درباره ي شهدا بيش از ساير گروههاست. چرا و به چه دليل حق شهدا از حق ساير خدمتگزاران بيشتر و عظيمتر است؟ به اين دليل كه همه ي گروههاي خدمتگزار ديگر مديون شهدا هستند، ولي شهدا مديون آنها نيستند و يا دين كمتري دارند. عالم در علم خود و فيلسوف درفلسفه خود و مخترع دراختراع خود و معلم اخلاق درتعليمات اخلاقي خود نيازمند محيطي مساعد وآزادند تاخدمت خود راانجام دهند، ولي شهيد آن كسي است كه با فداكاري و ازخود گذشتگي خود و با سوختنش محيط رابراي ديگران مساعد مي كند.
مثل شهيد مثل شمع است كه خدمتش از نوع سوختن و فاني شدن و پرتو افكندن است تا ديگران در اين پرتو كه به بهاي نيستي او تمام شده بنشينند و آسايش بيابند و كار خويش را انجام دهند. آري! شهدا شمع محفل بشريت اند؛ آنها سوختند و محفل بشريت را روشن كردند و اگر اين محفل تاريك مي ماند هيچ گروهي نمي توانست كار خود را آغاز كند يا ادامه بدهد.
22. حماسه ي شهيد
شهيد حماسه آفرين است. بزرگترين ويژگي شهيد حماسه آفريني اوست. در ملت هايي كه روح حماسه، مخصوصاً حماسه ي الهي مي ميرد بزرگترين مأموريت شهيد اين است كه آن حماسه مرده را از نو زنده كند؛ بنابراين اسلام هميشه نيازمند به شهيد است ، چون هميشه نيازمند به حماسه اي نو و آفرينشي نو است.
23. جاودانگي شهيد
كسي كه عالم است و از راه علم به جامعه خدمت مي كند، در حقيقت از مجراي علم از فرديت خود خارج مي شود و به جامعه مي پيوندد؛ شخصيت فردي اش به واسطه ي علم با شخصيت اجتماع متحد مي گردد، آنچنان كه قطره بادريا متحد مي گردد. عالم درحقيقت جزئي از شخصيت خود را، يعني فكر و انديشه ي خود را با اين پيوستن به اجتماع هديه مي كند. شخص ديگري كه مخترع است، ازطريق اختراعش با جامعه مي پيوندد؛ خدمتش به ا جتماع اين است كه فن خود، صنعتش، و بالاخره خودش را از راه صنعتش در اجتماع جاويد مي كند. ديگري هنرمند است، مثلا شاعر است خود را از طريق فن و هنرش جاويد مي كند.
يك نفر معلم اخلاق و اندرز گو ست و خود را از راه اندرزهاي حكمت آميزش كه سينه به سينه منتقل مي شود، درجامعه جاويد مي كند... يكي هم شهيد است و از راه خون خود، خويش را در اجتماع جاويد مي كند؛ به عبارت ديگر، كسي كه به فكرخود ارزش و ابديت و جاودانگي مي بخشد عالم يا فيلسوف است و ديگري كه به فن و هنر يا صنعت خود ارزش و ابديت و جاودانگي مي بخشد، صنعتگر ياهنرمند است... و اما شهيد با خون خود و در حقيقت با تمام وجود وهستي خود ارزش و ابديت و جاودانگي مي بخشد. خون شهيد براي هميشه دررگهاي اجتماع جاري است. در حقيقت گروه هاي ديگر به قسمتي از مايملك خود جاودانگي مي بخشند و شهيد با تمام مايملك خود. در اين زمينه پيغمبر مي فرمايد:
«فوق كل ذي بر حتي يقتل في سبيل الله و اذا قتل في سبيل الله فليس فوقه بر.» يعني: برتر از هر نيكوكاري نيكوكار ديگري است تا آنگاه كه درراه خدا شهيد شود؛ همينكه درراه خدا شهيد شد ديگر بالا دست ندارد.
24. شفاعت شهيد
درحديث است كه خداوند شفاعت سه طبقه را درقيامت قبول مي كند: يكي طبقه ي انبياء، بعد از آنها طبقه ي علما. (دراينجا چون اسم اوصيا ذكر نشده است و روايت هم از ائمه ي ما هست، پس مقصود، علماي رباني هستند كه در درجه ي اول شامل خود ائمه ي اطهار مي شود و در درجه ي بعد شامل علمايي كه واقعاً راه آنها را پيش گرفته اند) و بعد مي فرمايد: «ثم الشهداء». از اين دو طبقه – از طبقه ي انبياء و طبقه ي ائمه و علمايي كه راه ائمه را پيش گرفته اند – كه بگذريم، طبقه اي كه در قيامت براي شفاعت ظهور مي كند، طبقه ي شهدا هستند.
اين شفاعت، شفاعت هدايت است. ظهور و تجسم حقايقي است كه در دنيا وقوع يافته است. بعد از انبياء و اوصيا و علمايي كه پيرو واقعي آنها بودند، شهدا هستند كه گروه گروه مردم را از ظلمات گمراهي نجات داده و به شاهراه روشن هدايت رسانده اند.
اميرالمومنين (عليه السلام) مي فرمايد: «خدا شهدا را در قيامت با بها و جلالي و با عظمت و نوارنيتي وارد مي كند كه اگر انبيا از مقابل اينها بگذرند و سوار باشند، به احترام اينها پياده مي شوند. اين قدر خدا شهيد را با جلالت وارد عرصه قيامت مي كند.»
25. گريه بر شهيد
در صدر اسلا م درميان شهداي زمان پيامبر، آن كه از همه بيشتر درخشيد و به اولقب «سيد الشهدا» يعني سالار شهيدان درآن زمان دادند، جناب حمزه بن عبدالمطلب عموي بزرگوار رسول اكرم بود كه در احد شهيد شد. آنان كه به زيارت مدينه مشرف شده اند حتماً به احد هم مشرف شده اند و قبر حمزه را در احد زيارت كرده اند.
هنگامي كه حمزه كه از مكه به مدينه مهاجرت كرد تنها بود. وقتي كه پيامبر اكرم از احد به مدينه برگشت، مشاهده كرد از خانه ي همه ي شهدا صداي گريه به گوش مي رسد جز خانه ي جناب حمزه. حضرت فقط يك جمله فرمود: «اما حمزه فلا بواكي له» يعني: همه ي شهدا گريه كننده دارند جز حمزه كه گريه كننده ندارد. تا اين جمله را فرمود، صحابه رفتند به خانه هايشان و گفتند كه پيامبر فرموده حمزه گريه كننده ندارد. زناني كه براي فرزندان خودشان يا شوهرانشان يا پدرانشان يا برادرانشان مي گريستند، به احترام پيامبر و به احترام جناب حمزه بن عبدالمطلب رفتند و بر جنازه ي حمزه گريستند و بعد از آن ديگر سنت شد كه هركس براي هر شهيدي كه مي خواست بگريد، ابتدا به خانه ي جناب حمزه مي رفت و براي او مي گريست.
اين جريان نشان دادكه اسلام با اينكه نسبت به گريه بر ميت (ميت عادي) چندان روي خوشي نشان نداده است، مايل است كه مردم برشهيد بگريند؛ زيرا شهيد حماسه آفريده است و گريه برشهيد، شركت در حماسه ي او، هماهنگي با روح او، موافقت با نشاط او و حركت در موج اوست.
بعد از حادثه ي عاشورا و شهادت امام حسين (عليه السلام) كه همه ي شهادتها را تحت الشعاع قرار داد، لقب سيد الشهداء به ايشان انتقال يافت. البته به جناب حمزه هم سيد الشهداء گفته ومي گوييم ولي سيدالشهداي مطلق امام حسين است. جناب حمزه سيد الشهداي زمان خودش است و امام حسين (عليه اسلام) سيد الشهداي همه زمانهاست؛ آنچنانكه مريم عذرا «سيده النساء» زمان خودش است و صديقه كبري «سيده النساء » همه زمانها.
قبل از شهادت امام حسين، آن شهيدي كه سمبل گريه برشهيد بود و گريه براو مظهر شركت درحماسه شهيد و هماهنگي با روح شهيد و موافقت با نشاط شهيد به شمار مي رفت جناب حمزه بود و بعد از شهادت امام حسين اين مقام به ايشان انتقال يافت.
26. تربت شهيد
وقتي كه پدر بزرگوار صديقه كبري فاطمه زهرا (سلام الله عليها) دستور تسبيحات معروف را به ايشان دادند (34 بار الله اكبر، 33 بار الحمد الله و 33 با ر سبحان الله كه ما هم معمولا بعد از نماز به عنوان تعقيب يا در وقت خواب مي خوانيم) بر سر قبرعموي بزرگوارش جناب حمزه بن عبدالمطلب رفت و از تربت او براي خود تسبيح درست كرد، كه تمامي اين حركات نمادين است: بدين شكل كه خاك شهيد و قبر شهيد محترم است. انسان براي اينكه اذكار و اوراد خود را بشمارد نيازمند به سبحه (تسبيح) است. ممكن است بگوييم چه فرق مي كند كه دانه ها ي تسبيح از سنگ با شد يا چوب يا خاك ؟ و يا از خاك اين مهم نيست چه خاكي باشد، ولي ما آن را از خاك تربت شهيد برمي داريم و اين نوعي احترام به شهيد و شهادت است و نوعي به رسميت شناختن قداست شهادت. بعد از شهادت حضرت امام حسين (ع) اگر كسي بخواهد ازخاك شهيد تبرك بجويد از خاك حسين بن علي تهيه مي كند.
ما كه مي خواهيم نما ز بخوانيم و سجده برفرش و برمطلق ماكول و ملبوس را جايز نمي دانيم، با خود خاكي يا سنگي برمي داريم؛ ولي پيشوايان ما سفارش كرده اند حالا كه بايد برخاك سجده كرد، بهتر كه آن خاك از خاك تربت شهيدان باشد و اگر بتوانيد از خاك كربلا براي خود تهيه كنيد كه بوي شهيد مي دهد؛ يعني هر كه خدا را عبادت مي كني سر بر روي هر خاكي بگذاري نمازش درست است ولي اگر سر بر روي آن خاكي بگذارد كه قرابت و همسايگي كوچكي با شهيد دارد و بوي شهيد مي دهد، اجر و ثوابش صد برابر مي شود. امام فرمود: «سجده كنيد بر تربت جدم حسين بن علي، كه نمازي كه برآن تربت مقدس سجده كرده ايد، حجابهاي هفتگانه را پاره مي كند.» يعني ارزش شهيد را درك كنيد، زيرا خاك تربت او به نماز شما ارزش مي دهد.
27. شب شهيد
در دنياي امروز معمول است كه روزي از روزهاي سال را به نام يك گروه يا فرقه يا جنسي براي تجليل و تعظيم اختصاص مي دهند، مثل روز مادر، روز معلم، و... نديده ايم كه روزي را روز شهيد قرار دهند. در اسلام يك روز است كه روز شهيد است و آن روز عاشورا است بنابراين شب عاشور شب شهيد است.
منطق شهيد از يك طرف منطق عشق الهي است و از سوي ديگر منطق اصلاح اجتماعي. دو شخصيت مصلح و عارف را اگر تركيب كنند و از آنها يك انسان به وجود بياورند شهيد به وجود مي آيد. مسلم بن عوسجه به وجود مي آيد، حبيب بن مظاهر به وجود مي آيد، زهير بن قين به وجود مي آيد و البته شهدا هم در يك درجه نيستند.
موانع گسترش فرهنگ ايثار و شهادت
1 . جايگزيني فرهنگ ها ( باتهاجم فرهنگي شروع مي شود: )
«ود كثير من اهل الكتاب لو يردونكم من بعد ايمانكم كفارا.» ( بقره / 109 )
چه بسيار اهل كتاب آرزوي نمايند كز دين بتابيد روي
پـس آنگه برحق ره كردگار بـرآنها بگرديد خود آشكار
دراين آيه ي شريفه خبر از تهاجم فرهنگي داده شده است و به نظر مي رسد قديمي ترين نمونه ي تهاجم فرهنگي، داستان هابيل و قابيل است. وقتي قابيل نتوانست فكر و فرهنگ خود را بر هابيل تحميل كند به تهاجم فيزيكي دست يازيد و برادر خود را به قتل رساند و اين تقابل فرهنگ ها در طول تاريخ ادامه داشته و دارد. هميشه اهل باطل در مقابل حاميان فرهنگ اصيل و انساني و الهي و مصلحان و انبياء جبهه گرفته و به آن فرهنگ هجوم آورده اند.
2 . جايگزيني فرهنگ ابتذال بجاي فرهنگ ايثار و شهادت در فرهنگ فضيلت.
«يريد الذين يتبعون الشهوات ان تميلوا ميلا عظيما.» ( نساء / 27 )
وليـكن هوسباز مردان پست كه هستند بدكار و شهوت پرست
بخواهند كز حق بگرديد دور بــمانيد دور از صـــراط غفـــور
عدول از ارزشها و ايجاد موانع درراه پاكي و سلامت جامعه اسلامي، از ديگر شگردهاي استعمارگران، كفار و مشكرين است.
3 . تلاش در مقابل انتشار فرهنگ فضيلتها: «فرهنگ ايثار و شهادت»
«يريدون ان يطفئوا نورالله با فواههم و يابي الله الا ان يتم نوره و لو كره الكافرون.» ( توبه /22)
بـخواهند بـا آن سخنــها و راي نمـــايند خاموش نور خداي
خدا كي گذارد كي اينسان شود بـه هرچيز فرمـان او مي رود
كــه تا نور خود را همان ذوالجلال رسانـد به غايت، به حد كمال
اگر چنــد آن كافــران دغــل كــراهت بورزند از اين عمــل
4 . تهاجم برنامه ريزي شده و دراز مدت:
«و لا يزالون يقاتلونكم حتي يردوكم عن دينكم ان استطاعوا.» (بقره / 2)
كه پيوسته كفار منحوس و خوار نــــمايند خود با شما كارزار
بـــدانيـــد آنكه شمـا مسلمين همي رو بتابيد از آئين و دين
از موانع مهم گسترش فرهنگ ايثار و شهادت، بوجود آمدن زمينه پذيرش و رسوخ فرهنگ بيگانه است كه اهم آن عبارتند از:
الف – ايجاد جاذبه ها ي مادي، اقتصادي و جنسي
در تاريخ 1400 ساله ي اسلام، كفار همواره درصدد از بين بردن سيادت مسلمين بوده، با برنامه ريزي دقيق عمل كرده و به نتيجه ي دلخواه نيز رسيده اند از نمونه هاي آن مي توان شكست مسلمين در اندلس ( اسپانياي فعلي ) در سده ها ي نخستين ظهور اسلام را بياد آورد كه كفار از طريق اغواي جوانان و مردم مسلمان و از راه لهو و لعب و شراب و جاذبه هاي جنسي مسلمين را شكست دادند.
«اعلموا انما الحيوه الدنيا لعب و زينه و تفاخر بينكم و تكاثر في الاموال و الاولاد... و مالحيواه الدنيا الامتاع الغرور.» ( حديد / 19)
دراين آيه ي شريفه قرآن انذار مي دهد كه خواسته ها، برخاسته از هواي نفس، دوستي و محبت به دنيا است.
«و من الناس من يشتري لهو الحديث ليضل عن سبيل الله بغير علم و يتخذها هزوا اولئك لهم عذاب مهين.» (لقمان / 6)
كسي كو كند جمع، باطل كلام احــاديث مجهــول، گفتــار خام
كــه تــا خلق را از ره كـردگار كنــد گمــره و بــازدارد ز كــار
تمسخر نمــايند قــرآن و دين برآنان عذابي است سخت و مهين
مفسران در مورد لهو الحديث گفته اند:
نصر بن حارث مردي بود تاجر كه به ايران سفر مي كرد و درضمن داستانهاي ايرانيان را براي قريش بازگو مي كرد. وي مي گفت اگر محمد سرگذشت عاد و ثمود را براي شما نقل مي كند من داستانهاي رستم و اسفنديار و اخبار كسري و سلاطين عجم را باز مي گويم و آنها (قريش) دور او را مي گرفتند و استماع قرآن را ترك مي كردند. بعضي ديگر گفته اند اين قسمت از آيات درباره ي مردي نازل شده كه كنيزخواننده اي خريداري كرده بود و شب و روز براي او خوانندگي مي كرد و او را از ياد خدا غافل مي نمود.
در روزگار ما رواج فرهنگ ابتذال و موسيقي و امور لهوي بسيار شايع شده و كاركرد اين فرهنگ در دراز مدت يكي از موانع اساسي در راه گسترش فرهنگ فضيلت ها ( ازجمله فرهنگ ايثار و شهادت ) خواهد بود.
لهو الحديث مفهوم گسترده اي دارد و هرگونه سخن و يا آهنگهاي سرگرم كننده كه در انسان غفلت ايجاد كند را فرا مي گيرد و يا اينكه انسان را به بيهودگي و يا گمراهي مي كشاند، خواه غنا و الحان و آهنگ هاي شهوت انگيز و هوس آلود باشد و خواه سخناني باشد كه نه از طريق آهنگ بلكه از طريق محتوي، انسان را به بيهودگي و فساد سوق دهد؛ از آن جمله مي توان به بازي هايي شبيه قمار و... اشاره نمود كه اين سرگرمي ها هيچ سازندگي در وجود انسان نداشته و تنها موجب اتلاف وقت و سست نمودن روح ايمان و ايثاردر مسلمين مي باشد كه از سوي دشمنان طراحي شده است. آيا مي توان باور كرد كساني كه مبتلا به گفتارها و كردارهاي لهو هستند از فرهنگ فضيلت ها از جمله ايثار و شهادت دفاع كنند؟ مقام معظم رهبري ( در پيام نوروزي سال 81 و در پيام عبرت هاي عاشورا) مي فرمايند:
«اگر نيروهاي مومن، بسيجي و حزب اللهي، همين عامه ي مردم مومن، همين اكثريت عظيم كشور عزيز، همين هايي كه جنگ را اداره كردند، همين هايي كه از اول انقلاب تا به حال با همه حوادث مقابله كردند نبودند و اگر بسيج و نيروهاي عظيم حزب الله نبود ما هم در جنگ در مقابل دشمنان گوناگون ملي اين چند سال شكست مي خورديم.»
آن جوان مومن كه دل به دنيا و منافع شخصي نبسته است، مي تواند بايستد و از اين فضيلت ها دفاع كند. (روي گرداني از ياد خدا، دين و ارزش هاي الهي بجاي اينكه در متن زندگي باشد در حاشيه قرار مي گيرد)
* «واصبر نفسك مع الذين يدعون ربهم بالغدوه و العشي يريدون و جهه و لا تعد عيناك عنهم تريد زينه الحيوه الدنيا و لا تطع من اغفلنا قلبه عن ذكرنا و اتبع هواه و كان امره فرطا.» ( كهف / 28)
شكيبا همي باش و بس مهربان به قومي كه خوانند رب جهان
خـدا را بخوانند هر صبح و شب نمــايند قــرب خـدا راطـلب
يكي لحظه چشم از فقيران مپوش تــو بـردستگيـري آنان بكـوش
مبــادا كـه بـه زينـــت دنيــوي تمــايل نمــايي و مايــل شوي
از آن قــوم هرگـــز اطاعت مكن كه غافــل بگشتند از بيـخ و بن
بكرديــمشان غافل از يـاد خويش ره نفـس خــود را گرفتند پيش
بگشتنـــد مشغـــول كـار تبــاه فتـــادند در ظلــمت و در گناه
* «فاعرض عن من تولي عن ذكرنا و من يرد الا الحيوه الدنيا – ذلك مبلغهم من العلم ان ربك هو اعلم بمن ضل عن سبيله و هو اعلم بمن اهتدي.»
از آنكس تو دوري كن اي نيكمرد كـــه او مــا را فرامــوش كرد
بجـــز زندگــاني دنيــا نخواست دلش جز به اميال دنيا نخاست
در اينــگونه افــراد از حق بــدور هميــن حد بود منتهاي شعور
كه باشنـــد دنبــال دنياي پست به لــذات فاني بـرآورده دست
هرآنكس كه گمره شد از راه راست بـر احوالش آگـاه يكتا خداست
انسان كامل از نظر قرآن كسي است كه بدنبال ارزش هاي متعالي بوده، افق نگاهش از اين دنيا و هستي كه خداوند همه ي آن را براي تكامل او آفريده فراتر رود. در دو آيه ي فوق قرآن انسان را از همنشيني كساني كه از ياد خدا غافل هستند و روي گردانيده اند بر حذر داشته است. همانطور كه قبلاً نيز اشاره شد اين همنشيني و موانست مي تواند به هرشكلي كه منجر به غفلت گردد، پديدار شود (نمونه هايي را در خصوص تفسير لهو الحديث ذكر كرديم) قرآن كساني را كه به لذات فاني دنيا دل بسته اند، تخطئه نموده، مي فرمايد (بشكل تحقير آميز ) كه دريافت و شناخت و منتهاي شعور اينگونه آدمها (دنيا پرستان) همين مقدار است و گويا به هدف آفرينش و حركت بسوي كمال و قله ي انسانيت توجه نكره اند و فراموش نموده اند چه ارزش و قدري دارند،! متأسفانه يكي از ابتلائات امروز جامعه ي ما گرفتار شدن در لذات جسم است كه انسان را از فهم معاني و ارزش هاي متعالي باز مي دارد.
ب ) مذهب عليه مذهب
«والذين اتخذوا مسجدا ضرارا و كفرا و تفريقا بين المومنين و...» ( توبه /107 )
گروهـي دو رو طرحي انداختند
يـكي مسجـدي را بنـا سـاختنـد
كــه به ديــن اسلام آيــد زيـان
بقصــد ضـرر ساختنـد آن مكان
كـــه مــردم نياينــد بهــر نماز
در آن مسجـدي كه نبـي هـست باز
فقـط قصـدشان بـود كفر و غناء نفــــاقي براننـــد بيـــن عبـاد
كه بـاشـد كمينگـاه آن دشمنان
كه هستند خود دشمن مـومنــان
همان كس كزين پيش كرده نبرد
كــه با كردگار نبــي جنـگ كرد
دمــادم نماينـــد سوگند ذكـــر
كه غيـر از نكويي چه داريم فكر
دروغ اســت اين حـرف يكتــا اله
بــر اين گفته خــام با شد گواه
ماجراي مسجد ضرار و شيوه ي پيامبر در برخورد با اين مقابله ي فرهنگي كه از ناحيه منافقين انجام شد از گوياترين نمونه هاي تهاجمات فرهنگي و نحوه ي مقابله با آن است. پيامبر اكرم (ص) دستور برتخريب آن مسجد كه به مسجد ضرار معروف شد، دادند و از اين نمونه در تاريخ، ماجراي قرآن بر سر نيزه كردن معاويه هم هست كه در جنگ صفين براي فريب دادن مسلمين انجام داد.
اصولا ً استفاده از شيوه ها و ابزارها ي يك مكتب و مذهب عليه آن يك، راه و روشي شناخته شده در طول تاريخ است كه استعمارگران و دستگاه ها ي جبار و منافقان در هراجتماعي از آن بهره برده و با ايجاد شبهه در ميان عامه ي مردم، مناديان حق را در انزوا قرار داده و ايجاد فتنه مي نمايند.
تكليف گريزي
علت تكليف گريزي با سهل انگاري عده اي از مردم علاوه بر جهل و غفلت، ضعف اعتقاد و غلبه هواي نفس و نقصان محبت به خداست و تمام اين آفات زمينه ي موانع گسترش فرهنگ فضيلت ها ( از جمله فرهنگ ايثار و شهادت ) است.
نتيجه گيري:
از آنجا كه دين اسلام، بر مبناي نظم فردي و اجتماعي پايه گذاري شده، در جنگ ها و حركت هاي نظامي كه ضرورت پايبندي به نظم تشكيلاتي و سازماني افزايش مي يابد، اطاعت از رهبري يكي از شرايط مهم بشمار مي رود؛ چنان كه پيامبر اكرم (ص) دربرابرسوال اصحاب از شهادت مردي اشجعي كه پس از فرمان رسول الله (ص) مبني برمنع حمله به قلعه ي ناعم در جنگ خيبر اقدام به مقاتله كرده و كشته شده بود، صراحتاً فرمودند جارچي جار بزند كه هركس از فرمان سرپيچي كند بهشت براو روانخواهد بود. اين سخن به خوبي بيانگر اهميت قضيه است.
به طور كلي هر اقدام خودسرانه با هر انگيزه و نيتي، نمي تواند زمينه ساز «شهادت» باشد. لازم به ذكر است، در شرايطي كه حاكميت جامعه به دست حكام جور است، اگر كسي در هر سطحي در راه عمل به تكليف و اقامه ي عدل و قسط و امر به معروف و نهي از منكر قيام كند و كشته شود «شهيد» محسوب مي گردد؛ بنابراين با عنايت وتوجه به اين عوامل و شرايط، مي توان «شهيد» را چنين تعريف كرد:
«هر صاحب ايماني كه با انگيزه ي اقامه ي عدل و قسط و با نيت خالص (غير آلوده به مطامع نفساني ) و در راستاي اطاعت از خداوند، رسول خدا و يا رهبري عادل الهي اقدام كند، چه بميرد و چه كشته شود «شهيد» محسوب مي شود.»
در تعاريف فقهي شرط كشته شدن در معركه ي نبرد و يا كارزار نيز وارد شده است. از احاديث وارده از حضرات معصومين سلام الله عليهم اين مطلب قابل استنباط است كه اگر فردي به مرگ طبيعي از دنيا برود و شرايطي كه مهمترين آن ايمان و انگيزه هاي الهي است در او وجود داشته باشد، شهيد محسوب مي شود. دو استنباط كلي مي توان از اين روايات داشت:
1 . اين گونه افراد ثواب و اجر شهيد را مي برند و منزلتي همسنگ شهيد مي يابند.
2 . كسي كه در راه اسلام و با انگيزه ي اقامه ي عدل و قسط با نيت خالص (غير آلوده به مطامع نفساني) اقدام كند اگر در راه تحقق اين آرمان و هدف، به مرگ طبيعي از دنيا برود، «شهيد» محسوب خواهد شد.
منابع و مأخذ:
1 – شهيد و شهادت درقرآن و حديث. جواد عباسي
2 – شهيد و شهادت درادعيه و زيارت. علي اكبر عليخاني، مرتضي بحراني
3 – جهاد. آيت ا... حسين نوري
4 – قيام انقلاب مهدي (عج) از ديدگاه فلسفه ي تاريخ. شهيد مرتضي مطهري
5 – فرهنگ جهاد. جواد محدثي
6 – شاهدان شهادت. دكتر علي محمد ولوي
7 – فصلنامه فرهنگيان بسيجي
8 – فصلنامه پيشگامان دانش آموزي
9 – تمثيلات حجه الاسلام قرائتي
گردآورنده: باقر باقري (كارشناس مديريت آموزشي )
عنوان : شهادت و نمودهاي آن در شعر شاعران معاصر
نويسنده : شراره الهامي
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
دكتر شراره الهامي( عضوهيأت علمي دانشگاه آزاد اسلامي واحد سنندج)
چكيده
ادبيات بويژه شعر در ادوار مختلف، تحت تأثير محر كه اي اجتماعي و سياسي، دچار تغييرات محتوايي و ظاهري گشته و دراعصار مختلف دستخوش تحولاتي مي گردد كه در نتيجه ي اين تحولات، سبك هاي گوناگون ادبي به وجود مي آيد. در دوره ي معاصر، تحول اجتماعي مهمي كه توانست تفكر و در نتيجه سبك شعري شاعران را تغيير دهد، هشت سال دفاع مقدس در برابر قدرت هاي متحد بيگانه بود،كه ملت ايران قدم در راهي پرخون گذاشته و حماسه هاي متعددي را خلق نمودند. جنگ ودفاع مقدس با شهادت و ايثار و از خودگذشتگي عجين است و با تكيه براين فرهنگ پربار شعرجنگ(يا شعرپايداري)شكل مي گيرد و بسياري از شاعران معاصر، بخش عمده اي از اشعار خود را به انعكاس رشادتها و دلاوري هاي ملت ايران اختصاص داده اند. يكي ا ز مفاهيم و تصاويري كه در شعر جنگ به اشكال مختلف نمايان شده و از محورهاي مهم شعر و ادبياتِ جنگ، محسوب مي گردد موضوع شهيد وشهادت است كه توانسته نوع ادبي حماسه را زنده كند و تلفيقي از حماسه و عرفان را به وجود آورد. كه ازآن به حماسه ي عرفاني تعبيرمي شود و در اين مقاله تلاش شده تا اشعاري كه موضوع شهيد و شهادت اختصاص دارد مورد كنكاش قرار گيرد و جلوه هايي از انعكاس موضوع شهيد و شهادت در آثار شاعران، معرفي گردد.
كليد واژه ها : شعر جنگ – ادب پايداري – حماسه ي عرفاني – شعر شهادت
مقدمه
اصطلاح شعر جنگ به مجموعه سرود هايي اطلاق مي شود كه در زمان جنگ و پس از آن در قالب هاي شعري متنوعي،مانند: غزل، قطعه، رباعي، دوبيتي و شعرنو و نيمايي سروده شده و محتواي اصلي آن برانگيختن و بزرگداشت رزمندگان و تجليل از مقام رفيع آنان است، ضمن آنكه قصد دارد به تحقير و تهديد دشمن نيز بپردازد و روحيه ي ملي و مذهبي را براي حفظ وطن و دين تقويت كند. در اين بين شهادت و ايثار از عوامل به وجودآورنده و محرك اصلي شعر دفاع مقدس هستند. از مضاميني كه با شهادت مرتبط است و شاعران متعهد به آن پرداخته اند عبارتند از : خو ن- سوگ شهيد- كوچ- سرخي- عاشورا – حسين و...
در اين مقاله برآنيم كه به ديدگاه شاعران معاصر نسبت به شهيد وشهادت بپردازيم چراكه سرخي خون شهيد، رنگ و صورت و معناي ديگري به ادبيات فارسي داده است.
شاعرخوش ذوق - سهيل محمودي - در اين رابطه بيت زيبايي دارد كه مي گويد:
ميان معركه لبخند مي زنيد به عشق
حماسه چون به غزل ختم مي شود زيباست
مضامين شهيد و شهادت در شعر معاصر:
از مضامين پر بسامدي كه شاعران به آن پرداخته اند؛ ايجاد مطابقت و همگون نمودن شهداي دفاع مقدس با شهداي كربلاست، شاعران با الگوسازي از قهرمانان حادثه ي كربلا به ذكر مشابهت هاي اين دو نبرد مقدس پرداخته و قهرمانان هر دو نبرد را داراي بينشي عميق و انساني مي دانند. گاه شاعر، مكان نبرد را كه جنوب ايران است به صراحت كربلا مي داند:
اين راه شهرنيست، عبوري ز كربلاست
اينجا جنوب نيست، حضوري ز كربلاست
« پرويز بيگي حبيب آبادي، مجموعه اشعار ص 43 »
در اين بيت، عبور و حضور در جبهه را عبور و حضور در كربلا دانسته است. شاعر ديگر دعوت به جبهه را به صراحت دعوت به كربلا مي داند. اين دعوت توسط يارآشناي او حسين(ع) صورت گرفته است :
مي روم مادر كه اينك كربلا مي خواندم
از ديار دور يار آشنا مي خواندم
« حسن حسيني- وداع ص 89 »
رزمندگان به ياد شهداي كربلا كه همچون خون در رگ آنان مي جوشد به همه چيز پشت پا زده و شراب « لا» را به ياد شهداي كربلا سر مي كشند :
چون جامه ي سبز لا به تن مي پوشد
چون جام شراب لا ز حق مي نوشد
خون در رگ او چنانكه مي در دل خم
با ياد شهيد كربلا مي جوشد
« قيصر امين پور- جامه سبزِ « لا» ص 65»
از نظر طاهره ثقفي، مجاهد راه حق، شور حسيني برسينه دارد وهمچون حسين(ع) در آرزوي شهادت است :
بيا ببين تو بر اين خاك جاي پاي شهادت
به سينه شور حسين و به دل هواي شهادت
به پاي خيز و سفر ساز سوي جبهه حق رو
كه از آنان ديار بخواند تو را خداي شهادت
« طاهره ثقفي، شعر مقاومت، روزنامه رسالت ص 17 »
در نهايت شهيد دفاع مقدس به سوي شاه شهيدان پر مي كشد و به پاي بوس شاه كربلا حسين(ع) مي رود :
سروش فتح نهايي به گوش مي آيد
كزين سروش دل اندر خروش مي آيد
صبا به شاه شهيدان بگو كه لشكر حق
به پابوس درت پر خروش مي آيد
« ستاربابايي ( سروش تبريزي) منتخب اشعار شاعران آذربايجان ص 4»
پر مي كشد به سوي شه كربلا شهيد
جان مي دهد براي رضاي خدا شهيد
« جابراسدي شريف، دفتر اشعار ص 34 »
طهماسبي ياد شهدا و اندوه و حسرت از دست دادن ايشان را همراه با نام و ياد واقعه ي كربلا بازگو مي كند:
هرگاه كربلا به مكاني قدم زند
من زينبانه بر شهدا گريه مي كنم
« فريد طهماسبي، پري بهانه ها، ص 86 »
عرفان و شهادت
هدف شهيد رسيدن و ديدن حضرت حق است، اين هدف محرك اصلي شهادت است چراكه در فرهنگ قرآني، شهادت حيات جاويدان است، اين انديشه در شعر شاعران دفاع مقدس، جلوه كرده و از عارفانه حركت كردن شهدا، تصاوير زيباي ادبي متعددي خلق كرده است. قيصر امين پور شهادت را وسيله اي براي ديدن خدا دانسته و مي گويد :
شهادت لاله ها را چيدني كرد
به چشم دل خدا را ديدني كرد
ببوس اي خواهرم قبر برادر
شهادت سنگ را بوسيدني كرد
« قيصر امين پور، جامه سبز لا، ص 46 »
از نظر محمود جعفري، شهيد به خاطر وصال دوست است كه بي صبرانه و ديوان هوار خود را غرق در خون مي كند :
سرگشته وادي جنون است شهيد
در بزم حضور لاله گون است شهيد
از شوق وصال دوست بي صبر و شكيب
در مسلخ عشق غرق خون است شهيد
« محمودجعفري، دفتر اشعار ص 98 »
يقين در اصطلاح عرفاني مشاهده ي حضرت حق است با چشم دل وظهور نور حق در دل است كه نتيجه ي برخاستن شك مي باشد .
سپيده كاشاني وجود شهيد را يكسره يقين مي داند كه به يمن شهادت راه را بر افسانه و شك بسته است و تماماً « او » شده است:
به شوق كعبه ي مقصود، بال عشق گشودي
همه يقين شدي و راه برافسانه گرفتي
...به بال همت وآزادگي به اوج رسيدي
تمام او شدي و فرّ جاودانه گرفتي
« سپيده كاشاني شعر بهار گل افشان، ص 56 »
گذشتن و عبور از بام بلند شك با نيروي يقين، تصويري است كه نصرالله مرداني از ديو » را شكسته و بر لشكر « من » شهيد ارائه مي دهد و يادآور مي شود كه شهيد، بتِ كه همان جهل و ناداني مي باشد، تاخته است :
« شب آنان كه زخون خود كفن ساخته اند
بر لشكريان ديو شب تاخته اند
از بام بلند شك به نيروي يقين
در گور زمان بت من انداخته اند
« نصرالله مرداني، خون نامه خاك ص 129 »
از ديدگاه شاعران دفاع مقدس، عارف واقعي همين شهيدان عشق اند كه با از خودگذشتگي سردر راه مقصودگذاشته و فريب ديونفس را نخورده و درشرق توحيد به نيايش مي پردازند:
گهي به مشرق توحيد ديدمت به نيايش
گهي به سنگر خون، خصمِ دون نشانه گرفتي
زخودگذشتي و سر در ره مراد نهادي
كه عاشقانه درفش شرف به نشانه گرفتي
تو را نبرد ز ره ديوِ هرزه پويِ هوسها
زموج خيزِ بلا بي امان كرانه گرفتي
« سپيده كاشاني ، بهار گل افشان، ص 149 »
سير و حركت عارفانه ي شهيدان سبب شده كه در سرودهاي دفاع مقدس آنان را جوهر گفتارهاي عارفانه بدانند. محمدحسن ارباب در غزلي با مطلع:
اي روشناي خانه ي اميد اي شهيد
اي معني حماسه ي جاويد اي شهيد
عارفانه بودن شهيد را اينگونه تثبيت مي كند :
نام تو گشت جوهر گفتار عارفان
عارف زبان گشوده به تأكيد اي شهيد
« محمد حسن ارباب كتاب حماسه هاي هميشه ص 76 »
جايگاه شهيد
يكي از مفاهيم و تصاويري كه در شعر جنگ جلوه گري مي كند سخن گفتن از مقام آسماني شهيد است والايي و عظمت شهدا تا جايي است كه عرش و آسمان طالب ديدارشان بوده وآنان را به سوي خود مي خواند:
صحراي خطر كام مرا مي خواند
صهباي سحر جام مرا مي خواند
وقت خوش رفتن است هان گوش كنيد
از عرش كسي نام مرا مي خواند
« حسن حسيني، وداع ص 187 »
شهيد بر اوج عرش جاي دارد و درخلوت خورشيدآشيانه گرفته است، او عاشقانه سير كرده و نمي تواند در صحراي زميني جاي بگيرد :
سحر شكفتي و بر اوج عرش لانه گرفته
غروب، شعله كشان در شفق زبانه گرفتي
ز دامن صحرا چو گردباد، گذشتي
گهي به خلوتِ خورشيد آشيانه گرفتي
« سپيده كاشاني، بهار گل افشان ص 90 »
عليرضا قزوه شاعر حماسه سراي دفاع مقدس، جايگاه شهيد را در اوج فلك و همسايگي خورشيد مي داند:
آغوش سحر تشنه ي ديدار شماست
مهتاب خجل ز نور رخسار شماست
خورشيد كه در اوج فلك خانه ي اوست
همسايه ي ديوار به ديوار شماست
« عليرضا قزوه، از نخلستان تا خيابان، ص 54 »
قيصر امين پور ضمن اينكه شهادت را به « نوشيدن نور ناب » تشبيه و تعبير نموده، آسماني بودن آنان را اينگونه به تصوير مي كشد:
نوشيدن نور ناب كاري است شگفت
اين پرسش را جواب كاري است شگفت
تو گونه ي يك شهيد را بوسيدي؟
بوسيدن آفتاب كاريست شگفت
« قيصرامين پور، گزيده اشعار ص 120 »
والايي مقام شهيدان تا حدي است كه شاعر از آن براي قسم دادن حضرت ولي عصر استفاده مي كند :
مي ترسم از شبي كه به دجال رو كنيم
آقا تو را قسم به شهيدان ظهور كن
« منيژه تو درميان، مهتاب كردستان، ص 67 »
تمناي شهيد
ارزشمندي شهادت سبب شده كه حسرتِ نرسيدن به شهادت و اشتياقِ واصل شدن به اين فيض و مقام، به عنوان يكي از موضوعات و درونمايه هاي اصلي شعر جنگ، نمود پيدا كرده و حس شهادت طلبي تأثير زيادي بر اشعار اين دوره بگذارد.
قادر طهماسبي(فريد) شاعري كه خود آرزومند كسب مقام شهادت است، از اينكه درِ باغ شهادت به روي او بسته شده، گلايه هاي خود را اينگونه بيان مي كند:
رفيقان، رسم همدردي كجا رفت؟
جوانمردان ،جوانمردي كجا رفت ؟
مرا اين پشت مگذاريد بيتاب
گناهم چيست پايم بود در خواب
اگر دير آمدم مجروح بودم
اسير قبض و بسط روح بودم
درِ باغ شهادت را مبنديد
به ما بيچارگان زان سو مخنديد
« فريدطهماسبي، منخب اشعار ص 16 »
عرشي بودن وآسماني بودن شهيدان باعث شد كه آنان در بلنداي شفق وضو بسازند و در درون چشمه ي خورشيد شستشوكنندتا بتوانند نمازعشق را به درگاه پاك احديت بخوانند :
درآبشار بلند شفق وضو كردند
نماز عشق به درگاه پاك اوكردند
لباس ظلمتيان را به باد سپردند
درون چشمه ي خورشيد شستشو كردند
« شيرين علي گلمرادي- نخل هاي تشنه- ص 112 »
هم اودر جاي ديگر شهادت را نردبان آسمان مي شمارد كه دستش به اين نردبان نمي رسد و دريغِ از دست دادن مقام شهادت را هنرمندانه بيان كرده و مي گويد :
شهادت نردبان آسمان بود
شهادت آسمان را نردبان بود
چرا برداشتند اين نردبان را
چرا بستند راه آسمان را
مرا پايي به دست نردبان ماند
مرا دستي به بام آسمان ماند
تو بالارفته اي من در زمينم
برادر! رو سياهم شرمگينم
مرا اسپ سپيدي بود روزي
شهادت را اميدي بود روزي
« فريد طهماسبي ص 86 »
سوگ شهيد
سوگواري براي شهيدان نشانه ي احساس شاعرانه ي سرودگويان دفاع مقدس است كه با سوگ هاي ديگرتفاوت فاحش دارد. در اين سوگها افتخار و عظمتي وجود دارد كه نشانه ي كمال معنويت است وموجب سربلندي :
سهيل محمودي از دست دادن شهيد را اينگونه به تصوير مي كشد:
شرار شب به ميدانت فرو خفت
ستاره در شبستانت فروخفت
هلا اي يار اي همواره بيدار
چرا خورشيد چشمانت فرو خفت
« سهيل محمودي، دفتر اشعار ص 58 »
اگر چه حجله اي كه براي شهيد در كوچه ي قيصرامين پور بنا شده؛ سكوت و خاموشي اين كوچه را در فراق شهيد به آتش مي كشاند؛ اما اين حجله همچون كوه نور است و سرود عشق را سر مي دهد :
به كوه نورماندحجله ي تو
سرود عشق خواند حجله ي تو
سكوت كوچه ي خاموش ما را
به آتش مي كشاند حجله ي تو
« قيصرامين پور، گزيده اشعار ص 34 »
دل سلمان هراتي به ياد شهيدان گرفته است اما ا ين ياد افتخار آميز جاني به دل او مي دهد :
در سينه ام دوباره غمي جان گرفته است
امشب دلم به ياد شهيدان گرفته است
تا لحظه اي پيش دلم گور سرد بود
اينك به يمن ياد شما جان گرفته است
« سلمان هراتي – مجله شاهد شماره 280 – ص 25 »
شكست استخوان هاي شهيد نشانه سرشكستگي نيست بلكه سرافرازي و پيروزي را به دنبال دارد ضمن اينكه شاعر ايثار و از خودگذشتگي شهيد را يادآور مي شود :
من از بوي خودسوزي شنيدم
حديث عشق آموزي شنيدم
زآهنگ شكست استخوانش
صداي پاي پيروزي شنيدم
« قيصرامين پور، گزيده اشعار ص 168 »
ذكر نام شهيد
ايثارگري و از خودگذشتگي شهيدان از آنان اسطوره هايي را ساخته است كه گاه در اشعار جنگ نام آنان به صورت خاص ذكر مي شود؛ طاهره ثقفي نام « حسين فهميده » را با ايهامي زيبا و تبادري هنري در اشعارش ذكر مي كند :
تو همچون غنچه هاي چيده بودي
كه در پرپرشدن خنديده بودي
مگر راه حيات جاودان را
تو از فهميده ها فهميده بودي
« طاهره ثقفي، گزيده اشعر ص 86 »
و محمدحسين جعفريان نام شهيد همت را به صورت اسطوره اي ماندگار به كار مي برد :
عقده ها رفتند و علت مانده است
در گلويم حاج همت مانده است
« محمدحسين جعفريان – آيينه جنگ ص 71 »
نگراني از فراموش شدن نام وياد و خاطره ي شهدا دغدغه ي ذهني توصيف گران جنگ است اغلب اين سروده ها مربوط به پس از جنگ تحميلي است؛ فريد طهماسبي نگراني خود را اينگونه ابراز مي كند :
گر نماند به گوشه ي جگري
داغي از لاله ها چه بايد كرد؟
راستي دوستان! اگر روزي
پنبه شد رشته ها چه بايد كرد؟
و يا:
چند باراز خويشتن پرسيدم كه آيا مي توان
همين چشمان نان بين برشهيدان گريه كرد؟
« فريدطهماسبي، گزيده اشعار شاعرا جنگ ص 34 »
سيمين بهبهاني گله و شكايت خود را از نسل مانده اين چنين ذكر مي كند:
به نسيم كوي شهيدان، نفرستي ازچه درودي
كه غمين گذشته ز دشتي، نه گلي در او، نه گياهي 29
« سيمين بهبهاني – شعر چه سكوت سرد سياهي »
ياد و خاطره ي غم انگيز از دست دادن شهيدان و افسوس از فراموش شدن نسل هاي جاودان موجب شده كه در شعر محمدحسين جعفريان؛ پارادوكس زيبا و هنريِ : ‹نسلهايِ جاودان فاني شدند› به وجود آيد:
... داغم بود و اشك بود و سوز بود
آه! گويي اين همه ديروز بود
اينك اما در نگاهي راز نيست
در گلويي عقده ي آواز نيست
نسلهاي جاودان فاني شدند
شعرها هم آنچه مي داني شدند
رفته رفته خنده ها زاري شدند
زخمها كم كمك كاري شدند...
« محمدحسين جعفريان – آيينه جنگ ص 45 »
اصطلاحات مربوط به جنگ و به طور اخص شهيد و شهادت در سبك شاعران ديگر نيز وارد شده (بدون اينكه بخواهند شعر جنگ بسرايند) كه اين امرنشان از فرهنگ سازي شهادت دارد:
حرف من براي تو/ كاغذ مچاله است/گوش تو براي من/سطلي از زباله است
آه! موي صورتم سپيدشد/پشت سيم خاردار خنده است/حرف من شهيد شد
« عبدالجبار كاكايي – گزيده ادبيات معاصر- ص 24 »
آه! اگر شعر دمي قفل لبم بردارد
كهكشاني ز شهيدان به زمين مي بارد
« حسين ابراهيمي مياندار – ص 11 »
طبيعت به تناسب رباعهاي هر دوره رنگي خاص مي گيرد. در شعر دفاع مقدس تصاوير طبيعت به گونه ي تشبيهي و استعاري ديده مي شود : شقايق- لاله – كبوتر – پرستو – آلاله هاي پرپر- و... در شعر نماينده شهيد و شهادت اند:
به سوگ لاله نشانديم باغ حوصله را
به دشت داغ كشانديم، پاي قافله را
نسيم سرخ به رگهاي شب دويد و گشود
دهان بسته ي گل زخم هاي حوصله را
« عباس مشفق كاشاني (سيرنگ)- ص 149 »
آن لاله كه رخ به خون مزين دارد در خلسه عشق سر به دامن دارد چون نام شهيد جسم عريان شهيد پيراهن آفتاب بر تن دارد
« طاهره ثقفي، گزيده اشعار ص 23 »
بپوش جوشن آتش به تن سواره فلق
كه در مصاف خان چون شراره بايد رفت
به گوش لاله ي خونين نسيم عاشق گفت
چون گل زباغ جهان پاره پاره بايد رفت
اين قافله نور مي دهد فرمان
به عرصه گاه شهادت هماره بايد رفت
رسيد لحظه ي موعود و نيست گاه درنگ
به قاف واقعه بي استخاره بايد رفت
« نصرالله مرداني - خون نامه خاك ص 70 »
اي لاله هاي ارغواني/اي واژه هاي آسماني/آلاله هاي پرپرعشق
« پرويز بيگي حبيب آبادي، جنگ جنگ ص 44 »
گفتي شقايق هاي در خون خفته بنگر
بر گور كودك مادر آشفته بنگر
« سيمين دخت وحيدي، جنگ جنگ ص 73 »
فرمانده سرخ پوش گل فرمان داد
فرمان شكفتن به گل خندان داد
آلاله شهيد تير رگبار بهار
سر بر زانوي بنفشه جان داد
« احمد خوانساري، جنگ جنگ ص 90 »
لاله پرپر
بياد اي دل از اينجا پر بگيريم
ره كاشانه ي ديگر بگيريم
بيا گم كرده ديرين خود را
سراغ از لاله پرپر بگيريم
« قيصر امين پور، گزيده اشعار ص 18 »
فهرست منابع و مآخذ:
1- ابراهيمي مياندار، حسين، اشعاري در رثاي سردار شهيد محمود كاوه، نشر رواق مهر، 1381
2- ارباب، محمد حسين، كتاب حماسه هاي هميشه، انتشارات سوره، 1376
3- اسدي شريف، جابر، دفتر اشعار، انتشارات سوره مهر، 1380 نشر افق، 1378 ،« لا»
4- امين پور، قيصر، جامه سبزِ
5- بابايي، ستار ( سروش تبريزي) منتخب اشعار شاعران آذربايجان، وزارت فرهنگ و ارشاد اسلامي، 1379
6- بهبهاني، سيمين، چه سكوت سرد سياهي، ديوان ، انتشارات نگاه، 1384
7- بيگي حبيب آبادي، پر ويز، مجموعه اشعار با عنوان زخم، غزل زاويه، انتشارات سوره، 1383
8- تو درميان، منيژه، مهتاب كردستان، تهران كنگره سرداران شهيد سپاه تهران، 1376
9- ثقفي، طاهره، شعر مقاومت، به نقل از روزنامه رسالت شماره 5893 ، تا ريخ 85/3/31
10- جعفري، محمود، دفتر اشعار، نشر صرير، 1383
11- جعفريان، محمدحسين، شبيخون هاي مسكوت، نشر رواق، 1385
12- حسيني، حسن، وداع، گزيده شعر جنگ و دفاع مقدس، نشر سوره مهر، 1381
13- خوانساري، احمد، مجموعه اشعار، وزارت فرهنگ و ارشاد اسلامي، 1388
14- طهماسبي، قادر( فريد)، دفتر اشعار پري بهانه ها، انتشارات سوره مهر، 1387
15- علي گلمرادي، شيرين، آوازهاي گل محمدي، نشر فرهنگ گستر، 1381
16- قزوه، عليرضا، از نخلستان تا خيابان، نشر سوره مهر، 1386
17- كاشاني، سپيده، بهار گل افشان، از مجموعه ي سخن آشنا، وزارت فرهنگ و ارشاد اسلامي، 1373
18- كاكايي، عبدالجبار، گزيده ادبيات معاصر، مجموعه شعر، نشر كتاب نيستان، 1378
19- محمودي، سهيل، فصلي از عاشقانه ها، انتشارات همراه، 1368
20- مرداني، نصراله، قانون عشق ، نشر صدا، 1378
21- مرداني، نصراله، خون نامه خاك، انتشارات كيهان، 1364
22- مشفق كاشاني، عباس، سيرنگ، انتشارات فرهنگ گستر، 1382
23- وحيدي، سيمين دخت، هشت فصل سرخ و سبز، وزارت فرهنگ و ارشاد، 1382
24- هراتي، سلمان، دري به خانه خورشيد، نشر صرير، 1364
عنوان : مباني ديني فرهنگ ايثار و شهادت
كلمات كليدي : توسعه و ترويج، شهادت، ايثار، مباني ديني، فرهنگ، عاشورا
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
در پيشگاه خداوند سبحان حمد و شكر بجا مي آوريم كه نعمت تاسيس جمهوري اسلامي را تحت زعامت و رهبري امام خميني(ره) بر ما ملت ايران مقرر فرمود؛ از مديريت سازمان آموزش و پرورش فارس و همه ي برگزار كنندگان «نخستين همايش علمي فرهنگ ايثار و شهادت» سپاس گزاريم. سلام و درود خداوند بر شهيدان با فضيلتي كه قلم و بيان از بازگويي كرامتشان كوتاه است، عزيزاني كه بر مقتداي خود پيامبر بزرگ اسلام(ص) در جهت تهذيب و تربيت نسل انسان هاي با كرامتي چون خود اقتدا كردند. بهشت برين شايسته و برازنده ي شهيداني باد كه جان شيرين خويش را بر ره مقصود نهادند و حقا بايد آفرين گفت بر دامان پر مهر و محبت پدران و مادراني كه با گوهر جان شيرين خويش چنين رادمرداني را تربيت كردند و در جهت سيرالي الله سوقشان دادند تا شمع محفل بشريت باشند آفرين گفت كه بنا به فرموده ي باغبان لاله ها، همه ي اقتدار و عظمت اين نظام الهي و مقدس و همه افتخارات حال و آينده جهان اسلام رهين همت بلند آنهاست.
نوشتار حاضر در زمينه ي «مباني ديني فرهنگ ايثار و شهادت» تهيه و تنظيم گرديده است. تداوم جريان بيمه كننده ي ياد و راه عاشورا و ترويج و توسعه ي «فرهنگ و ايثار و شهادت» در اين كشور بيدار و پايدار كه بر محور ولايت اين بيداري و پايداري را كسب و حفظ كرده هدف اين نوشتار است.
مقدمه:
«ولا تحسبن الذين قتلوا في سبيل الله امواتا بل احياء عند ربهم يرزقون.»
(آل عمران / 169)
مبادا نماييد در دل گمان كه آنها كه در راه رب جهان
نگشتند كشته نه هم مرده اند كه آنان همه تا ابد زنده اند
هميشه به درگاه پروردگار بر آنهاست رزق نكو برقرار
«اي بندگان خدا بدانيد، اكنون كه زبان ها باز است و گشاده، پيكرها سالم، اندام ها به خدمت آماده و جولانگاه فراخ و گسترده، پيش از آنكه فرصت از دست برود و مرگ شتاب آورد و گريبان بگيرد، به پيشواز مرگ رويد و منتظر آموزش نشويد.» (نهج البلاغه / خطبه 187: 632)
با تمسك به آيه اي از كلام الله مجيد و پيام زيبايي از مولي الموحدين علي(ع) كه خطاب به همه ي رادمرداني است كه راه «شهادت» را برگزيده اند و در جستجوي كمال، به سرچشمه حيات راه يافته و سرمست از جرعه «ارجعي الي ربك» به رويت جهان و كشف رضايت حق نايل آمده اند. در اين مقاله بر آن شديم تا به طور اختصار در ضمينه ي «مباني ديني فرهنگ ايثار و شهادت» مطالبي را از سرعشق و ارادت و در حد بضاعت اندك، به پيشگاه شهيدان عزيز تقديم نماييم.
در مبناي ديني فرهنگ ايثار و شهادت آمده است كه: بي شك هدف حسين بن علي از قيام خونينش با آنكه مي دانست خود و يارانش كه شايسته ترين افراد روي زمين بودند به شهادت خواهند رسيد و خاندانش به اسارت خواهند رفت، تنها توجه دادن مردم به برخي از احكام ظاهري دعوت آنان به نماز و روزه نبود، چرا كه جامعه ي آن روز در اين حد آشنايي و پاي بندي داشتند، بلكه آن نهضت بي نظير و شگفت انگيز براي باز شناساندن اسلام واقعي از اسلام صوري و به منظور احياي اسلام ناب محمدي در برابر اسلام تحريف شده اموي بود. مسلماً آن جا كه هدفي اين چنين والا و بزرگ در پيش باشد، تحمل خسارت هاي فراوان و قرباني شدن شخصيت هايي همچون حسين ابن علي(ع) آسان مي نمايد. مبارزه ي تا برابر و مقابله ي دليرانه ي حسين ابن علي (ع) تا پاي جان كه منجر به واقعه ي و دلخراش كربلا گرديد، اين درس بزرگ را به مسلمان ها آموخت كه حفظ كيان اسلام و دفاع از مرزهاي عقيده و ايمان از واجبات است و آن را ارزش و اهميت بدان پايه است كه بجاست بهترين انسان هاي هر عصر خود را قرباني تحقق آن هدف كنند؛ اگر چه بدانند در كوتاه مدت به اين هدف نايل نخواهند شد.
براساس مباني ديني «فرهنگ ايثار و شهادت» و نهضت اسلامي ايران كه در عصر حاضر، عميق ترين و شورانگيزترين حركت انقلابي جهان محسوب مي شود، تحت تاثير فرهنگ «ايثار و شهادت» و هدف بزرگ آن پديد آمد. بنيانگذار اين نهضت مقدس امام خميني(ع)، حركت خود را در عاشوراي سال 1342 با اين جمله كه «الان عصر عاشورا است» آغاز كرد و پانزده خرداد كه نقطه ي عطف انقلاب اسلامي است نتيجه ي همان سخنراني و مصادف با 12 محرم و يكي ا زآثار عاشوراي حسيني بود.
امام در كلامي تاريخي و جودانه به رمز اعتبار 15 خرداد اشاره كردند و فرمودند: «15 خرداد بايد در پناه قضيه ي بزرگ عاشورا زنده بماند.» و اين از ثمرات عظيم فرهنگ «ايثار و شهادت» بنابراين اگر شهداي 15 خرداد و انقلاب اسلامي و شهداي 8 سال دفاع مقدس را همسنگران شهداي كربلا بناميم.
سخني به گزاف نگفته ايم؛ چرا كه در هدف و مرام و مقصد يكي بودند و آن عبارت از تحكيم پايه هاي عزت و حريّت ديني و دفاع از آرمان نبوّت و امامت بود.
بايد اذعان داشت پيروزي هايي را كه نصيب ملت ما شده است نبايد به حساب فرد يا جمعيت و دسته و گروهي گذاشت، بلكه در تحليلي منصفانه بايد اعتراف كرد كه اين آثار از وجود پربركت امام حسين(ع) و روز عاشورا است و با اين حساب 22 بهمن ما نيز يكي از ثمرات وجودي «فرهنگ ايثار و شهادت» است و قيام جهاني حضرت مهدي«عج» و پيروزي آن حضرت نيز جلوه ي كاملي از پرتو خورشيد عاشورا خواهد بود در نتيجه توسعه و ترويج فرهنگ ايثار و شهادت از اهم وظايف مسلمين و مايه ي بقاء و عزت اسلام است و براي تحقق اين هدف بزرگ بايد بيشترين سعي و تلاش را در شناساندن فرهنگ ايثار و شهادت داشته باشند و اميد كه خداوند ما را از شفاعت شهيدان محروم نفرمايد.
فرهنگ ايثار و شهادت از ديدگاه قرآن كريم:
آيات زيادي از قرآن كريم به شهادت و شهيدان اختصاص دارد. از جمله آيه ي 169 سوره ي آل عمران كه در آغاز مقدمه ي اين نوشتار بيان شده و معناي آن چنين است:
گمان نكنيدآنان كه در راه خدا كشته شده اند مرده اند بلكه آنان زنده اند و نزد پروردگارشان روزي مي خورند. (آل عمران / 169)
دومين آيه كه حكايت از فرهنگ ايثار و شهادت دارد سوره ي توبه آيه ي 111 مي باشد. «ان الله اشتري من المومنين انفسهم و اموالهم بان لهم الجنه يقاتلون في سبيل الله فيقتلون و يقتلون.» يعني:
براي انسان هاي موحد چيزي بالاتر از آن نيست كه نعمت وجود را در راه رضاي معبود به كار گيرند و در راه خدا خرج شوند و فدا گردند. آمادگي براي «فدا شدن» نشانه ي صدق انسان در راه محبت خدا است. خدا مشتري جان ها و مال هاست و در برابر آن بهشت مي دهد. (توبه / 111). اولياي خدا در برابر پروردگار، براي خود هيچ شاني قائل نيستند و اگر دين الهي نيازمند مال و جان و حتي آبروي آنان باشد، از نثار آن مضايقه اي ندارند. عزت و عظمت و ارزش دين، تا حدي است كه براي بقاي آن، انسان هاي پاك و حجت هاي الهي فدا مي شوند و اين فدا شدن را اداي حق الهي مي شمارند.
دين خدا عزيزتر است از وجود ما
اين دست و پا و چشم و سر و جان فداي دوست
در سوره ي حشر، آيه 9، قرآن از مومناني ياد مي كند كه با آن كه خودشان نيازمندند، ديگران را بر خويشتن مقدم مي دارند: «ويوثرون علي انفسهم و لوكان بهم خصاصه.» (حشر / 59)
گذشتن از خاسته هاي خود و نيز چشم پوشيدن از آنچه مورد علاقه ي انسان است، به خاطر ديگري و در راه ديگري «ايثار» است. اوج ايثار، ايثار خون و جان است. ايثار گر كسي است كه حاضر باشد هستي و جان خود را براي دين خدا فدا كند، يا در راه رضاي او از تمنيات خويش بگذرد.
در مبناي ديني «فرهنگ ايثار و شهادت» از جمله قرآن كريم، آيات زيادي در زمينه ي «شهيد و شهادت» آمده است كه در اين مقاله ي مختصر به ذكر شماره ي آيات و سوره ها مي پردازيم.
سوره ي اسراء، آيه ي 81 «ان باطل كان زهوقا»، در تقابل حق و باطل، طبق آنچه قرآن كريم تعيين مي كند، «حق» ماندگار و استوار است و «باطل» رفتني است و ناپايدار.
سوره ي منافقون، آيه ي 8.
سوره ي انبياء، آيه ي 18، كه اشاره به باطل ستيزي در تاريخ بشري و فرهنگ ايثار و شهادت دارد.
سوره ي آل عمران، آيه ي 179، 152، كهب راي جدا سازي پاكان از غير پاكان در فرهنگ ايثار و شهادت است.
سوره ي قصص آيه ي 21 و آيه ي 22.
سوره ي اعراف، آيه ي 85؛ سوره ي هود، آيه ي 85، سوره ي شعرا آيه ي 183 كه هر سه آيه اشاره به شناخت ارزش جان آدمي در فرهنگ ايثار و شهادت دارد.
سوره ي اسراء آيه ي 70 و 81 به تكريم فرزندان آدم و تطهير نمودن دامان انسان و انسانيّت از پليدي هاي ذلت و پستي و خواري اشاره دارد.
سوره ي روم، آيه ي 40.
سوره ي بقره آيات 54، 186، 194 و 286.
سوره ي روم، آيه ي 7.
سوره ي رعد، آيات 39، 24 و 17.
سوره ي بقره، آيات 260، 100 و 156.
سوره ي يونس، آيه ي 13.
سوره ي فجر، آيات 27 و 28.
سوره ي عنكبوت، آيه ي 64.
سوره ي علق، آيه ي 8.
سوره ي مؤمن، آيه ي 60.
سوره ي زمر، آيات 10 و 42.
سوره ي نجم آيه ي 42.
سوره ي صافات، آيه ي 102.
سوره ي محمد، آيه ي 36.
سوره ي واقعه، آيات 10 و 11.
سوره ي انشقاق، آيه ي 6.
سوره ي ابراهيم آيه ي 27.
سوره ي انفال، آيه ي 29.
و آيات زياد ديگري كه هر كدام به نوعي اشاره به فرهنگ ايثار و شهادت دارد. مطالعه كنندگان ارجمند مي توانند آيات فوق را پس از مطالعه و بررسي مورد توجه و دقت قرار دهند.
فرهنگ ايثار و شهادت از ديدگاه نهج البلاغه:
«فرهنگ ايثار و شهادت» حضور شگرف انسانيت در هر جا و هر روز. مانده ي بزرگ و روح انسان است، در تداوم اعصار. محتواي راستين زمان است، در ملكوت زمين. ضربان قلب خورشيد است در سينه ي خاك. تجسم اعلاي وجدان بزرگ است، در دادگاه روزگار. حضور نور است، در سيطره ي بي امان ظلمت... صلابت شجاعت انسان است، در تجليگاه ايمان و براستي «فرهنگ عظيم ايثار و شهادت» طواف خون است در احرام فرياد... تجلي كعبه است، در ميقات خون. شفق خون بار است در فجر آگاهي. بارش خونين لحظه هاست، بر ارواح خروشان. باز خوان تورات و انجيل و زبور است، در معبد اقدام.
حنجره ي خونين كوه «حراء» است، در ستيغ ابلاغ و تجديد مطلع رجزهاي «بدر» است و «حنين». انفجار نماز است در شهادت و انفجار شهادت است در نماز. بانگ رساي همه ي انسان هاست، در همه ي تاريخ، از همه ي حنجره هاي پاك خدايي، خصوصاً شهيد راه محراب حضرت علي(ع) و اينك فرهنگ ايثار و شهادت از ديدگاه نهج البلاغه: خطبه ي 181 نهج البلاغه در زمينه ي فرهنگ ايثار و شهادت اذعان مي دارد كه: «كسي كه از دنيا دل بريده و به آن سرا دل بسته است، به زندگي زبونانه تن نمي دهد هيچگونه مصلحت انديشي را تاب نمي آورد، شجاعانه در برابر ستم و درويي مي ايستد و از هيچ چيز نمي هراسد. آنكه شوق مرگ سرخ دارد، از دنيا دل بريده، فريفته ي زينت ها و زيورهايش نمي شود. اين انسان چنان ارجمند است كه يادش در خاطر حجت خداوند نقش مي بندد.»
امام علي(ع) با عباراتي حسرت بار از ياران شهيدش چنين ياد مي كند: «... بندگان نيك خداوند آهنگ رفتن كردند و ارزش هاي ناچيز و ناپايدار نيا را بر ارزش هاي فراوان و فناپذير آخرت برگزيدند. آري، برادران هم رزمي كه خون شان در صفين فرو ريخت، از اين كه امروز زنده نيستند – تا خوراكشان غم و نوشابه شان خوناب دل باشد – هيچ زياني نكردند ايشان با جرئت بر اين حقيقت تاكيد مي كند كه آنان به ديدار خداوند شتفافتند، پس پاداششان را به كمال پرداخت و در پي سال هاي نگراني و ترس در سراي امنيت مقامشان داد.»
فرهنگ ايثار و شهادت از ديدگاه امام حسين(ع):
با آن همه بهره برداري هاي حماسي، مبارزاتي، تربيتي و معنوي كه تاكنون از فرهنگ ايثار و شهادت انجام گرفته، به نظر مي رسد كه غناي اين فرهنگ خدايي، بسيار بيشتر از آن است كه تاكنون مطرح بوده است. امروزيان و آيندگان پيوسته بايد از اين كوثر ايمان و يقين بنوشند و سيراب شوند و تشنگان حقيقت ناب را هم سيراب سازند. از اين رو، با همه ي كارهايي كه تاكنون در شناختن و شناساندن اين فرهنگ ماندگار انجام يافته است. زمينه ي چنين تلاش هاي فرهنگي همچنان باقي است و هر زمان به شكلي و در قالبي نوتر، مي توان درسهايي از فرهنگ ايثار و شهادت تئوين كرد و آموخت و نشر داد تاجهان و جان هاي حق جو، مجذوب جلوه ها و زيبايي هاي اين فرهنگ حماسي و خدايي شوند. پس فرهنگ ايثار و شهادت براي همه و هميشه «پيام» مي سازد كه ما همواره پاي «درس»هاي اين كلاس ابدي بنشينيم و به مراتب بالاتري از ايمان، دين شناسي، شناخت تكليف و عمل به وظيفه برسيم.
در سخنان امام حسين (ع) و ياران او، مفاهيم بلندي از فرهنگ ايثار و شهادت در محورهاي خداشناسي، رسالت انبياء، نقش وحي و قرآن در ندگي، اصالت دين و گمراهي بدعتگذاران، زندگي ابدي و حيات پس از مرگ، بهشت و جهنم، حساب و جزا و عذاب، شفاعت، حقانيت امامان براي ولايت و خلافت، وظيفه ي مردم نسبت به حج الهي، نفاق دنياپرستان، استفاده از عقايد ديني براي اغفال مردم و... ديده مي شود كه جاي مطالعه دارد.
امام حسين(ع) پيشاپيش، از شهادت خود با خبر بود و جزييات آن را هم ميدانست. پيامبر اكرم(ص)نيز مكرر اين حادثه را پيشگويي كرده بود. اين علم و اطلاع قبلي نه تنها راي او را بر ادامه ي راه ورود به ميدان جهاد و شهادت، سس يا آميخته به ترديد نكرد، بلكه شهادت طلبي او را افزون تر ساخت. آن حضرت با همين ايمان و باور،به كربلا آمد و به جهاد پرداخت و عاشقانه به ديدار خدا رفت. اينك فرهنگ ايثار و شهادت از ديدگاه امام حسين(ع) شهيد فرهنگ پيشرو انسانيت راه بررسي مي كنيم:
صبح عاشورا وقتي سپاه كوفه با همهمه رو به اردوگاه امام تاختندف دستان نيايشگر امام حسين رو به آسمان ها بود و چنين مي گفت:
خدايا! در هر گرفتاري و شدت، تكيه گاه و اميد تويي و در هر حادثه كه برايم پيش آيد، پشتوانه ي مني، چه بسا در سختي ها و گرفتاري ها تنها به درگاه تو روي آورده و دست نياز و دعا به آستانت گشودم و تو آن را بر طرف ساختي. (مجلسي، 4 / 1403)
اين حالت و روحيه، جلوه ي بيروني عقيده ي قلبي به مبدا و يقين به نصرت الهي است و توحيد در دعا و طلب را مي رساند.
عقيده به مبدا و معاد، مهمترين عامل جهاد و فداكاري در راه خداست و بدون آن،هيچ رزمنده اي معتقدانه در صحنه ي دفاع قدم نمي گزارد و خود را كه در جنگي كه به شهادت منتهي مي شود، برنده نمي داند. بدون عقيده به هيات آخروي، با چه انگيزه اي مي توان از جهاد و جانبازي استقبال كرد؟ از اين رو چنين اعتقادي در كلمات امام حسين(ع) و اشعار و رجزهاي او و يارانش، نقشي محوري دارد و به برجسته ترين شكل، خود را نشان مي دهد. امام حسين(ع) روز عاشورا وقتي بي تابي خواهرش را مي بيند، اين فلسفه ي بلند را يادآور مي شود و مي فرمايند:
«خواهرم! خدا را در نظر داشته باش. بدان كه همه ي زمينيان مي ميرند، آسمانيان هم نمي مانند. هر چيزي جز وجه خدا كه آفريدگار هستي است، از بين رفتني است. خداوند همگان را دوباره برمي انگيزد...» (موسوعه كلمات الامام حسين، 405، 404)
فرهنگ ايثار و شهادت از ديدگاه امام علي(ع):
شهادت در منظر علي(ع) محبوبي گم شده است كه تا به آن نرسد آرام نمي گيرد و آب حياتي است كه تشنگان بي رمق و از نفس افتاده را سيراب مي كند؛ از اين رو بزرگ انسان تاريخ بشري، وقتي در محراب مسجد زخم شهادت برمي دارد، عاشقانه ندا سر مي دهد «فزت و رب الكعبه». آن حضرت در خطبه ي 54 نهج البلاغه در اين باره مي فرمايد:
«سوگند به خدا هيچ باكي ندارم از داخل شدن در مرگ يا اين كه مرگ ناگاه مرا دريابد.» او خود، بي آنكه ذره اي هراس به خود راه دهد، پيشتاز صحنه هاي جنگ بود: «به خدا سوگند اگر من تنها و با ايشان روبه رو شوم و آنها همه روي زمين را پر كرده باشند، باك نداشته و نمي هراسم... و من به ملاقات خدا مشتاق بوده و انتظار نيكويي پاداش او را اميدوارانه دارم.» (نهج البلاغه، نامه 62، ص 1050) حضرت در خطبه ي 27 نهج البلاغه درباره ي جهاد في سبيل الله و ترغيب يارانش به اين امر مي فرمايد: «جهاد دري است از درهاي بهشت كه خداوند آن را به روي خواص دوستان خود گشوده و لباس تقوا و پرهيزگاري است و زره ي محكم حق تعالي و سپر قوي او است. پس هرگاه از آن دوري كند، خداوند جامه ي ذلت و رداي بلا را بر او مي پوشاند.» چه شيرين است سخن مولا آنگاه كه در ميدان كار زار، اشتياق عاشقان الله به ملاقات معبودشان را چنين توصيف مي كند و عطش تشنگان ديدار حق را فزوني مي بخشد: ايشان در خطبه ي 124 نهج البلاغه در اين باره چنين مي فرمايند:
«مجاهدان شهادت طلب چنان به سوي خدا پر مي كشيدند كه تشنگان به جانب آب. بهشت در پرتو آذرخش نيزه ها است. امروز خبرها در بوته ي آزمون ارزيابي مي شوند و به خدا سوگند كه اشتياق من به صحنه ي نبرد و رويارو شدن با دشمن، بيش از شوقي است كه آنان به خانه مان خود دارند.» طالب شهادت در كلام علي «الرانح الي الله» نام گرفته است؛ يعني كسي كه به سوي خدا بال گشاده، جانب او پرواز مي كند و چنان تشنه اي كه آب مي جويد، مشتاق آرام گرفتن در آغوش خدا است.
فرهنگ ايثار و شهادت از ديدگاه امام راحل«ره»:
در انقلاب اسلامي، سنت و سيره ي معصومين(ع) جايگزين اسلام خرافه و بدعت شد و اسلام جهاد و شهادت، جايگزين اسلام قعود و اسارت و ذلت گرديد. فرهنگ ايثار و شهادت از علل محدثه ي انقلاب اسلامي بوده و مي توان نتيجه گرفت كه از علل مبقيه نيز مي باشد. امام خميني(ره) اين سالك الي الله و عبدصالح خدا با رهبري بي نظير و دم عيسوي خود روح ايثار و شهادت را در جان هاي بي رمقي دميد كه ساليان سال با پذيرش سلطه شاهد به تاراج رفتن سرمايه هاي مادي و معنوي خود بودند.
جايگاه اهل بيت پيامبر(ص) در جامعه ي اسلامي نيز از همين زاويه قابل طرح است و نيز اصل مسئله ي رسالت حضرت محمد (ص) و قرآن و وحي و شفاعت و... هر كدام به نحوي كه داراي پيام است، در فرهنگ ايثار و شهادت مورد مطالعه قرار مي گيرد با هم محواهاي عقيدتي كه در مجموعه ي اين حماسه متجلي است، هم اساس نهضت كربلا كه براي حفظ باورهاي ناب از زوال تحريف بود. اين هدف مهمي بود كه شهيد بزرگي همچون ابا عبدالله الحسين (ع) فداي تحقق آن شد. امام خميني «قدس سره» مي فرمايد:
«شخصيت عظيمي كه از عصاره ي وحي الهي تغذيه و در خاندان سيد رسل محمد مصطفي و سيد اولياء علي مرتضي تربيت و در دامن صديقه ي طاهره بزرگ شده بود، قيام كرد و با فداكاري بي نظير و نهضت الهي خود، واقعه ي بزرگي را به وجود آورد كه كاخ ستمگران را فرو ريخت و مكتب اسلام را نجات بخشيد.» (امام خميني، 181: 1361).
در مباني ديني فرهنگ ايثار و شهادت اشاره گرديده كه شهادت مظلومانه ي امام حسين (ع) براي نجات دين اسلام بود. در اين رابطه سخن زيبايي از حضرت امام خميني (ره) را مي خوانيم:
«ما بايد سعي كنيم تا حصارهاي جهل و خرافه را شكسته، تا به سرچشمه ي زلال اسلام ناب محمدي(ص) برسيم و امروز غريب ترين چيزها در دنيا همين اسلام است و نجات آن قرباني مي خواهد و دعا كنيد من نيز يكي از قرباني هاي آن گردم.» (همان، 41)
فرهنگ ايثار و شهادت از ديدگاه مقام معظم رهبري
«حضرت آيت الله خامنه اي»
فرمانده ي معظم كل قوا، حضرت آيت الله العظمي خامنه اي درخصوص فرهنگ ايثار و شهادت مي فرمايد:
«پاسدار انقلاب اسلامي، آگاهانه راه حسين(ع) را كه ادامه ي راه انبياء الهي است، انتخاب مي كند و در اين راه، فروغ خون حسين(ع) و شهيدان گلگون كفن كربلا را چراغ راه خويش قرار مي دهد.» (پيام به سمينار سراسري سپاه، تير ماه سال 1362.)
آيت الله خامنه اي در سخنراني در جمع فرماندهان و بسيجيان لشكر 27 محمدرسول الله (ص) فرمودند:
«درس هاي عاشورا جدا است، درس شجاعت و درس چه و درس چه؛ از درس هاي عاشورا مهمتر، «عبرت»هاي عاشورا است.»
جمع بندي و نتيجه گيري:
با توجه به مطالبي كه به طور اختصار در مورد «مباني ديني فرهنگ ايثار و شهادت» در اين نوشتار جمع آوري گرديد، مي توان اذعان داشت كه اين فرهنگ حيات بخش و عزت آفرين در حقيقت، منظومه اي كامل از انديشه هاي ناب اسلامي و تدابير هدايت گرانه اي است كه شناخت ابعاد مختلف آن، هر انسان آزاده اي را براي دست يابي به الگوهاي عملي و عيني زندگي الهي و شرافت مندانه رهنمون مي سازد. احياء، توسعه و يادآوري خاطره ي عظيم و جاودانه ي عاشورا و فرهنگ ظلم ستيز آن، يعني فرهنگ ايثار و شهادت، همواره بركات فراواني داشته و دارد و در اين مورد، شناخت ما از « مباني ديني فرهنگ ايثار و شهادت» كاملاً ضروري است. سعي ما در اين مقاله، تعيين هر چه بهتر اهداف، اصول و آرمان هاي فرهنگ ايثار و شهادت اين حادثه ي عظيم بود كه استمرار اين حادثه در بستر تاريخ تحولات جوامع اسلامي، همواره جهاد جبهه ي حق در برابر باطل قلمداد مي گردد. فرهنگ ايثار و شهادت عنواني است براي رويكردي تربيتي به بزرگترين حماسه ي انساني. حماسه اي فرا تاريخي و فرا جغرافيايي براي دميدن روح حقيقت انساني در همگان و راهنمايي مردم به سوي تعالي. راهي كه حسين(ع) در تعريف زندگي نشان داد راه حيرت و عزت است و پرچمي كه فرا راه همه آزادي خواهان و شهادت طلبان برافراشت تا قيام قيامت است. عظمت فرهنگ ايثار و شهادت هر عقل منصف و آزادي خواهي را متحير و متاثر از خود ساخته و فرا راه نجات هر نهضت از يوغ بردگي و بندگي قرار داده است. گاندي رهبر بزرگ هند، به تاسي از فرهنگ ايثار و شهادت گفته است: «من مبارزه را از شهيدان عاشورا آموختم.» حسين(ع) با برافراشتن پرچم حماسه ي كربلا و عاشورا، فرهنگي را بنيان گذاشت كه مردم در آن به نيكوترين و والاترين تربيت، «تربيت نبوي و تربيت علوي» دست يابند و در نهايت در يك نتيجه گيري كلي مي توان بيان داشت كه: عبرت هاي نهفته در فرهنگ ايثار و شهادت، اگر بازشناسي و درمان نگردد ممكن است خطرات زيادي در كمين جامعه ي امروز ما و بر سر راه انقلاب و انقلابيون ما قرار گيرد.
اگر در شرايط نياز جامعه و انقلاب، به خون و جان بازي و شهادت، از حضور در صحنه ي دفاع از ارزش ها پرهيز كنند، اگر دچار تفرقه شوند، اگر بر محور ولايت فقيه و رهبري امت منجسم نباشند، اگر براي دست يافتن به پول و پست و مقام، ارزش ها و آرمان ها را زير پا بگذارند، اگر به وظيفه ي امر به معروف و نهي از منكر عمل نكنند، اگر ساده لوحانه، فريب شايعات و بوق هاي تبليغاتي دشمن را بخورند، در فرهنگ ايثار و شهادت، عاشورا دوباره تكرار خواهد شد و اسلام ضربه خواهد خورد و مظلوميت مضاعفي براي مسلمانان و جبهه ي حق پيش خواهد آمد. بنابراين: رسالت پيام آن خون ها و مجاهدت ها و شهادت ها به فرزندان خويش و ملت هاي ديگر است؛ زيرا: راه و رسم شهادت باطل شدني نيست و اين ملت ها و آيندگان هستند كه به راه شهيدان اقتدا خواهند نمود و همين تربت پاك شهيدان است كه تا قيامت مزار عاشقان و عارفان و دلسوختگان و دارالشفاي آزادگان خواهد بود.
پروردگارا! خداوندا! تو را قسم مي دهيم به محبوبيت حسين(ع) ما را براي برخورداري از فرهنگ ايثار و شهادت آماده بفرما و همانگونه كه گذشتگان ما، نيكان ما، اين فرهنگ عظيم خدايي به ما معرفي كردند و دامان علي و آل علي را به ما سپردند، ما را موفق بفرما تا دامان علي و آل علي و حسين(ع) را به نسل هاي آينده و به فرزندانمان بسپاريم!
منابع و مآخذ:
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30. هاشمي نژاد، سيد عبدالكريم. درسي كه حسين(ع) به انسان ها آموخت. (1353). موسسه انتشارات فراهاني.
پژوهشگر: طاهره انصاري (ليسانس زبان و ادبيات فارسي / مدير دبيرستان امام خميني(ره))
عنوان : بررسي و شناسايي موانع رشد و توسعه ارزش هاي منبعث از فرهنگ ايثار و شهادت در جامعه و ارائه راههاي مقابله اصولي با آنها
كلمات كليدي : ايثار(Sacrifice)، شهادت(Martyrdom)، ارزش هاي منبعث از فرهنگ ايثار و شهادت (Sacrifice& Martyrdom Cultur Vlues)،موانع فردي(Individual Obstacles)،موانع خانوادگي(Obstacles Family)، موانع
انواع مقالات :علمي و فرهنگي
نويسنده : رضا شريفي
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
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عنوان : بررسي وضعيت نظام ارزشي در بين دانشجويان شاهد
كلمات كليدي : ارزش (Value)، نظام ارزشي System of values ساختار ارزش ها Structure of values كاركرد ارزش ها Values function
انواع مقالات :علمي و فرهنگي
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
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عنوان : بررسي آسيب شناسي فرهنگي فناوري هاي اطلاعاتي وارتباطي با تأكيد بر فرهنگ ايثار و شهادت
كلمات كليدي : فناوريهاي اطلاعاتي و ارتباطاتي(information and communication technology)،جهاني شدن( Globalization)، آسيب شناسي فرهنگي(cultural phatology)
نويسنده : سيد مستجاد حسيني
موضوعات مقالات :ايثار و شهادت
چكيده:
در اين مقاله تأثيرات اجتماعي و فرهنگي فناوريهاي ارتباطي و اطلاعاتي ICT موردبررسي قرار گرفته و تلاش شده تا اثرات اين
فناوريها برفرهنگ ايثار و شهادت با نگاهي آسيب شناسانه با استفاده از روش مطالعۀ كتابخانه اي مورد كاوش قرار گيرد.
ادبيات نظري:
فرهنگ آنگونه كه جامعه شناسان تعريف كرده اند، به نماديني اطلاق مي شود كه تعيين كنندهرفتار است. فرهنگ ايثار و شهادت نيز مجموعه اي از نمادين است كه ايثارگري و ميل به شهادت را در افراد بوجود مي آورد و با نهادينه شدن آن، نگرشها و رفتار افراد را به سمت رفتار ايثارگرانه سوق خواهد داد.
انقلاب اسلامي كه خود ثمره ايثار و شهادت است، موجب تغيير و تحّول در تمامي سطوح جامعه گرديد. با مرور شرايط روزهاي اوليّه انقلاب مي توان جلوه هاي تغيير در رفتار مردم را از جهاد سازندگي و كمك رساني به محرومين جامعه،تا تغيير در الگوي مصرف و مشاركت همگاني درجنگ و تحميلي و دفاع همه جانبه مردم مشاهده كرد.علاوه بر اينكه جنگ و دفاع،تجلي گاه ايثار و از خود گذشتگي بود خود به تقويت و نهادينه شدن اين فرهنگ انجاميدبه گونه اي كه يادآوري جنگ و دفاع هشت ساله همواره مفهوم ايثار و شهادت را به ذهن متبادرمي نمايد. ايجاد تغيير سريع در تمامي جنبه ها ي زندگي،اتخاذ سياست هاي شتابزده اقتصادي،سياسي،فرهنگي و اجتماعي وشروع دوران سازندگي، پيشرفت فناوري هاي اطلاعاتي و ارتباطي و تغيير رويكرد قدرت هاي استعمار گر و بخصوص آمريكا، از مقابله مستقيم به مقابله غير مستقيم دربرابر ايران وبسياري ديگر از عواملي شرايطي را به وجود آورد كه فاصله وشكاف ميان شرايط فرهنگي دوران جنگ و پس از آن به عيان ديده مي شود. در اين مقاله تلاش مي شود تا تأثير عواملي همچون پيشرفت فناوري هاي اطلاعاتي وجهاني شدن در اين فرهنگ مورد بررسي قرار گيرد.
بررسي رابطه ميان فناوري و فرهنگ و به خصوص تأثير فناوري هاي ارتباطاتي و جهت اطلاعاتي بر زندگاني انسان عصر حاضر موضوعي است كه ذهن انديشمندان زيادي را به خود مشغول داشته است و نوشته هاي زيادي چه به صورت مقاله، سخنراني و يا كتاب در باره اين تأثيرات وجود دارد وليكن با مراجعه به مراكز علمي داخلي از جمله كتابخانه دانشگاه تربيت مدرس و سازمان اطلاعات و مدارك علمي ايران تا كنون موضوعي با اين عنوان ديده نشده است.همچنين در بررسي اي كه از طريق اينترنت به عمل آمد در اين باره نيز موضوعي مشابه به زبان لاتين مشاهده نشد. با اين وجود به يافته هاي برخي از تحقيقاتي كه با موضوعات مشابه درداخل وخارج به انجام رسيده ومي تواند مورد استفاده قرارگيرد، اشاره مي شود.فريار در تحقيقي در سال 1378با عناون"فرايند صنعتي شدن و ابعاد وآثار اجتماعي آن در بين كارگران صنايع مختلف استان آذربايجان شرقي" باتعداد نمونه 584 نفر نتايج به اين شرح گزارش شده است.روياريي با فناوري هاي پيچيده، در ايجاد و تقويت ذهنيت صنعتي و نوگرايي فردي كارگران تأثير دارد، به موازات بالا رفتن سطح فناوري توليد از گرايش هاي فاميلي و قومي كارگران كاسته شده و بر گرايش هاي ملي و فراملي آنان افزوده مي شود، رضايتمندي شغلي كارگران غيره ماهر بيش از كارگران ماهر ونيمه ماهر است، كارگران مورد بررسي مشاغل فني و صنعتي را نسبت به انواع ديگر مشاغل ترجيح داده ومنزلت بيشتري براي آنان قائل بودند، ميزان تعهد و وجدان كار كارگران صنعتي در مقايسه با كارگران فناوري هاي سنتي بيشتر بوده است، پيچيدگي فناوري هاي صنعتي ميزان تعاملات كارگران را در داخل واحد توليد افزايش مي دهد لكن اين افزايش در مورد تعاملات اجتماعي آنان در خارج از واحد توليد قابل تعميم نيست، كارگران واحدهاي پيشرفته صنعتي،كارخانه ها و كارگران واحدهاي فناوري هاي سنتي در مقايسه با كارگران كارگاه ها به ترتيب براي بسط روابط و همبستگي هاي اجتماعي آماده ترند،ميزان تعاملات اجتماعي كارگران مجتمع هاي صنعتي و شدت تعاملات اجتماعي كارگران شاغل در فناوري هاي سنتي در مقايسه با كارگران كارگاه ها و كارخانه ها بالاتر به نظر مي رسيد.آنچه در باره نتايج ارئه شده در اين تحقيق ميبايست مد نظر قرار گيرد اين است كه برخي نتايج اين تحقيق اند كه مي توان آنرا از نقاط ضعف پژوهش به شمار آورد، عدم بررسي همه جانبه زندگي كارگران و تعميم نايج به طور قطعي در برخي فريضه ها مانند: «ميزان تعهد و وجدان كار كارگران صنعتي در مقايسه با كارگران فناوري هاي سنتي بيشتر بوده است» و نمونه اي ديگري از اين دست از ارزش آن كاسته است؛ حال آنكه روح علمي اقتضا مي كند تا از ارائه نتايج بصورت قطعي اجتناب نموده و صرفاً در همان زمينه و جامعه اي كه تحقيق صورت گرفته است نتايج تعميم يابند. دوران در سال 1381 در تحقيق ديگري تأثير" تجربه فضاي سايبرنتيك برهويت اجتماعي" در سه سطح خانواده،گروه همالان وجامعه به روش شبه آزمايشي مورد بررسي قرار داده است.نمونه اين تحقيق 365 نفر از دانشجويان دانشگاه تهران هستندكه به روش غيره احتمالي سهميه اي انتخاب شده اند.پاسخگويان اين تحقيق براساس داشتن يا نداشتن تجربه استفاده از اينترنت به دو گروه آزمون(180نفر) و شاهد (185نفر)تقسيم شده اند.براساس نتايج اين تحقيق رابطه معنا داري ميان تجربه فضاي سايبرنتيك و هيچ يك از سه سطح هويت اجتماعي(هويت خانوادگي، هويت همالان وهويت ملي) وجودنداشته است.ميناوند در سال 1381 در تحقيق ديگري با عنوا شبكه اينترنت در مقايسه با رسانه هاي سنتي داراي ويژگي هاي منحصر بفردي است" عدم تمركز، سانسورگريزي و تعاملي بودن. محق با عنايت به اين ويژگي ها سه دليل برمي شمرد تا نشان دهد كه اينترنت قابليت انجام مهمترين كاركردهاي حوزه عمومي را دارد.
اولاً دسترسي عمومي به اين شبكه در عمل امري است كه در برخي جوامع تا حد قابل قبولي تحقق يافته است وثانياً اينترنت توانايي خود را در شكل دادن به افكار عمومي شهروندان در حوزه عمومي در موارد متعدد نشان داده است. ثالثاً در جوامعي كه دسترسي به اينترنت تعميم يافته،مردم از طريق سازماندهي جمعي خود به كنشهاي جمعي و مشترك براي تحقق بخشيدن به خواسته هاي سياسي و اجتماعي مي پردازند. با اين وجود،شواهد تجربي فراواني وجود داردكه نشان مي دهد فشار نيروهاي سيستمي ثروت و قدرت براي اعمال كنترل و نظارت بر شبكه ادامه دارد.اينكه شبكه اينترنت تا چه اندازه قابليت هاي خود را براي ايفاي نقش حوزه عمومي فعليت خواهد بخشيد، به ميزان آمادگي وتمايل شهروندان هرجامعه براي كاربرد اين فناوري در جهت تحقق اهداف حوزه عمومي بستگي دارد. اين تحقيق نيز از آنجا كه صرفاً به بررسي نظريات يكي از انديشمندان معاصر(هابرماس) مي پردازد، نمي تواند تمامي ابعاد و زواياي موضوع را به دقت بشكافد. رفيع پور در تحقيق ديگري تغيرات و دگرگوني هايي كه پس از انقلاب درارزشها رخ داده است. وي در اين تحقيق به بررسي (تحليل محتوا) تأثيرات برخي فيلم هاي سينمايي،سريال ها، فيلم هاي ويديويي، روزنامه ها و تبليغات مي پردازد.هدف اين كار نشان دادن تغيير جهت تأثير گذاري وسايل ارتباط جمعي در دوران پس از انقلاب مي باشد."پيكارلي" نيز در تحقيق نشان مي دهد كه كاربد فناوري هاي اطلاعاتيبراي مقاصد جنايي كاملاً رواج يافته است.اين امر حتي در كشورهايي نظير چين هم كه محدوديتهاي فراواني در زمينه اينترنت اعمال مي كند، قابل مشاهده است. اين تحقيق به طوركلي به موضوع جرائم سازمان يافته فراملي مي پردازد كه به كمك فناوري هاي اطلاعاتي و ارتباطاتي به ويژه اينترنت انجام مي شوند. تحقيق ديگري كه شايد بتوان آنرا در زمره يكي از كارهاي كم نظير عصر حاضر به شمارآورد، تحقيقي است كه مانوئل كاستلز استاد جامعه شناس اسپانيايي به انجام رسانده استاو در كتاب سه جلدي خود به بررسي شرايط حاك بر جهان كنوني پرداخته و موضوعات مهمي همچون فرايند انقلاب اطلاعات و تأثير آن بر جنبه هاي مختلف زندگي انسانها را شرح داده است.وي توضيح مي دهد كه پارادايم جديد اجتماعي شكل گرفته است واين تغيير عصر حاضر را مي توان به عنوان گذر از فناوري هاي عمدتاً مبتني بر دروندادهاي ارزان انرژي فناوري به طور عمده متكي به درونداده هاي ارزان اطلاعاتي كه از پيشرفت حاصل از فناوري ميكروالكترونيك و مخابرات بدست آمده است در نظر گرفت. ويژگي هاي اين تغييرات كه شالودۀ جامعه اطلاعاتي را تشكيل مي دهند، عبارتند از: برخلاف فناوري هاي پيشين كه تنها اطلاعات برروي فناوري عمل مي كند، اطلاعات مادۀ خام آن است.به عبارتي فناوري هايي هستند كه روي اطلاعات عمل مي كنند. دومين ويژگي به فراگير بودن تأثيرات فناوري هاي جديداشاره دارد.از آنجا كه اطلاعات بخش لاينفك تمامي فعاليتهاي بشري است،همۀ فرايندهاي حيات فردي و جمعي ما مستقيماً توسط رسانه فناوري جديد شكل داده مي شوند(گرچه يقيناً توسط آن تعيين نمي شود). سومين ويژگي به منطق شبكه سازي هر سيستم يا مجموعه روابطي اشاره داردكه از اين فناوري هاي جديد اطلاعات استفاده مي كنند. ...اين پيكر بندي توپو لوژيك يعني شبكه، اكنون مي تواند با استفاده از فناوري هاي اطلاعات كه به تازگي در دسترس قرار گرفته، در همۀ انواع فرايندها و سازمانها تحقق عيني پيدا كند. بدون اين فناوري ها محقق ساختن منطق شبكه سازي بسيار دست و پاگير خواهد بود.ويژگي چهارم كه به ويژگي پنج اين انقلاب همگرايي فزايندۀ فناوري هاي خاص در درون يك سيستم بسيار منسجم است كه در آن، مسيرهاي تكنولوژيك قديمي و جداگانه غير قابل تشخيص مي شوند.(كاستلز1380-92-94). در خصوص تأثيراتي كه فناوري هاي اطلاعاتي و ارتباطاتي بر اجزاي جامعه دارند، همانگونه كه در ويژگي دوم تغييرات پاراديم ذكر گرديده، تمامي اجزاي جامعه تحت تأثير اين فناوري ها قرار خواهد گرفت.كاستلز در جاي ديگر مي نويسد:در خصوص تأثيرات اجتماعي فناوري اطلاعات« فرضيه من اينست كه ميزان تأثير آنها تابعي است از توان انتشاراطلاعات در سراسر ساختار اجتماعي.(كاستلز1380،97)كاستلز در اين اثر سعي نموده بخشهاي مختلف جامعه را درخصوص تأثيراتي كه انقلاب فناوري هاي اطلاعاتي وارتباطاتي داشته اند،مورد بررسي موشكافانه قراردهد.از جمله موضوعات بررسي شده مي توان به بحث تجارت جهاني، اشتغال، جهاني شدن، تأثير بر ساختار وكاركرد شهرها و آينده آنها، جنگ، مرگ ومير، زمان، هويت، ملت ودولت، محيط زيست، خانواده و جنسيت، فمينيسم، دموكراسي و...اشاره كرد. يكي از كساني كه توانست با انتشار چند كتاب طي چند دهه شهرت فراواني كسب نمايد، الوين تافلر است.كتاب «موج سوم» وي از سال 1980 به مدت دوسال در ليست پرفروشترين كتابهاي جهان قرار گرفت.او در اين كتاب، پيشرفت جوامع بشري را به سه مرحله (سه موج) تقسيم مي كند.موج اول كه كشاوزري را در سراسر جهان نشر داد، موجب اقامت دائمي انسان در روستاها شد بطوريكه انسان آن زمان تمام عمر خود را د ر محدوده اي به شعاع چند كيلومتر از محل تولد خود بسر مي آورد.كشاورزي موجوديتي ساكن و از نظر مكاني متمركز به وجود آورد و احساسات محلي را بشدت تقويت كردكه حاصل آن روحيه روستايي بود.تمدن موج دوم بالعكس جمعيتهاي عظيمي را در شهرهاي بزرگ متراكم ساخت و بعلت نياز به برآوردن منابع از راه هاي دور و توزيع كالا به نقاط دوردست، مردماني پرتحرك به بار آورد. فرهنگي كه به وجودآورد از نظر مكاني گسترده و به جاي روستا- كانوني، شهريا كشور- كانوني بود. موج سوم تجربۀ ما را از فضا نه از طريق تمركز جمعيت بلكه پخش جمعيت دگرگون مي كند. در حاليكه هنوز ميليون ها نفر در كشورها ي پيشرفته شاهد جريان عكس آن هستيم. توكيو، لندن، زوريخ و گلاسكو جمعيت خود را از دست مي دهند، در حاليكه شهرهاي متوسط يا كوچكتر بر جمعيتشان افزوده مي شود.(تافلر:1372-215). تافلر در توصيف موج سوم و تغييراتي كه پي مي آورد مي نويسد: يك بمب اطلاعاتي در ميان ما منفجر شده است و تركشهايي از تصاوير بر سر وروي ما باريدن گرفته كه با ضربات خود ادراك و رفتارمان را در زندگي خصوصي از بنياد دگرگو ساخته است.در انتقال از سپهر اطلاعاتي موج دوم به موج سوم، روح و روانمان نيز دگرگون مي شود.(تافلر1372-215)."اين كتاب بيشتر از آنكه يك تحقيق ميداني يا حتي كتابخانه اي باشد، شامل حدسهايي در باره وقايع آينده است كه در آن به منابع مختلف آماري و علمي نيز استناد مي نمايد.آينده اي كه اينك در آن قرار داريم برخي از اين آينده نگري ها به وقوع پيوسته يا در حال وقوع اند. اريك فروم نيز از جمله كساني است كه به مباحث تأثيرات فناوري ها بر رفتار و تفكر انسانها پرداخته است. نگاه انتقادي وي به روشهاي تبليغات در رسانه تلوزيون در كتاب "داشتن يا بودن"اينگونه بيان شده است":روش هاي شستشوي مغزي خطرناك است.زيرا نه تنها ما را وادار به خريد اشيايي مي كند كه نه نياز داريم و نه خواهان آن هستيم، بلكه ما را به انتخاب نمايندگاني رهنمون مي شودكه اگر كنترل و اختيار فكر و انديشه خود را داشتيم نه بدانها نياز داشتيم و نه آنان را مي خواستيم . ما تسلط كامل به فكر و مغز خود نداريم. زيرا در تبليغات از روش تخدير ذهن استفاده مي كنند. ما تسلط كامل به به فكر و مغز خود را نداريم. زيرا در تبليغات از روش تخدير ذهن استفاده مي كنند. براي مقابله با اين خطر فزاينده بايد از هر نوع تبليغ مخدر براي كالا و امور سياسي جلوگيري كنيم."(تافلر:1362- 156) فروم در باره تأثيرات منفي و تبليغات بر سلامت روان و فكر بر اين باور است كه" روشهاي تخدير در آگهي ها و تبليغات سياسي خطري جدي براي سلامت روان است.بخصوص براي تفكر انتقادي و استقلال عاطفي...رگبار وسوسه ها درآگهي،بخصوص تبليغات تجارتي در تلوزيون، مردم را دچار نوعي حماقت مي كند.اين يورش به شعور وحس واقع گرايي سبب اغواي فرد در هر زمان و مكان مي شود.(تافلر1362- 257).
نكات قابل توجه فراواني در مطالعات پيشين ذكر شده است ومي تواند مورد توجه قرار گيرد. اولين نكته اي كه مي توان ذكر كرد اين است به قول گي روشه اگر بپذيريم انقلاب فناوري جوامع روستايي را دگرگون كرده وفرهنگ سنتي را از هم پاشيده و را توسعه اقتصادي، اجتماعي و سياسي را براي ديگر كشورها گشوده است و بايد به اين نكته برسيم كه اين رسانه ها تحت تأثير جدي فشارهاي سيستمي قدرت و ثروت براي كنترل آنها قرار دارد، ولازم است با دقت و وسواس بيشتري به آنها بپردازيم و به ياد داشته باشيم بيشترين فراواني اين رسانه ها از غرب بوده و توسط آنها تغذيه، جهت گيري و حمايت مي شود. محتواي اين رسانه ها نيز نه تنها همسويي با ارزشهاي ايثار و شهادت ندارند بلكه مروج مبتذل و سطحي غرب هستند كه هيچ گونه وجه اشتراكي با فرهنگ ايثار و شهادت ندارند.به قول آلبرتز هيچ كاري به اندازه صنعت پورونوگرافي از اينترنت سود نبرده است.در اين صورت بايد بدانيم كه اين رسانه ها با پشتوانه هاي عظيم مالي و فكري مورد حمايت قرار مي گيرند ومروجين فرهنگ ايثار وشهادت نيز بايد نسبت به ترويج اين فرهنگ با همين ابزار و فضا اهتمام بيشتري داشته باشند.
جهاني شدن تهاجم فرهنگي و نقش نظام سرمايه داري
گسترش روز افزون فناوري هاي ارتباطي و اطلاع رساني و دستيابي آسان با وجود شبكه هاي ماهواره اينترنت و فراگير شدن استفاده از آن ها با هجوم انبوهي از اطلاعات، تمامي افراد را در هر سن، جنس، مليت وفرهنگ و با هر خواسته و در هر موقعيتي از شبانه روز هدف قرار داده اند.
انقلاب اطلاعات كه در سال 1970م، در دره سيليكن در كاليفرنيا آغاز شد،با سرعت و شتابي كه در طول تاريخ سابقه نداشته است، سپهرهاي طبيعي و فرهنگي و معنوي آدمي را در سراسر سياره و در همه ابعاد در تعرض تحولات بنيادين قرار داده است. فناوري ارتباطات و اطلاعات، امكان ظهور جامعه اي شبكه اي را فراهم آورده كه افراد و جوامع را در درون قالبهاي تازه، هويت هاي تازه مي بخشد وتعاريف تازه اي از انسان عرضه مي دهد. در عين حال اين شبكه تحت تاثير ديناميسم داخلي دستخوش تغييرات دايمي و در نتيجه ايجاد الگوهاي جديد زيست و حيات در نقاط مختلف است. اين فناوري ها نقش خانواده، مدرسه و حكومتها را در اجتماعي شدن و جهت دهي يه اميال و افكار انسانها كمرنگ نموده، با فشرده نمودن زمان وفاصله، دامنه ارتباط انسانها را در يك گستره جهاني وسعت بخشيده است وتغييرات اساسي را در نحوۀ زندگي، آداب و رسوم، ارزشها و نگرشها وبطور كلي هويت افراد به وجود آورده كه قابل تأمل بوده و لازم است از تمامي جوانب مورد بررسي و موشكافي قرار گرفته تا ضمن جلوگيري از اثرات مخرب آن بتوان از فرصتهاي ايجاد شده استفاده مناسب نمود.
هويت فرهنگي نيز كه حاصل انباشت تجارب نسلهاي گذشته مردم ساكن يك ناحيه بوده و مردم با آن سلسله ارزشها و آداب و رسوم خو گرفته و به آ ها عشق مي ورزند، با تأثيراتي كه جهاني شدن بر هويت فرهنگي افراد و جوامع مي گذارد، به تدريج شاهد حل شدن اين فرهنگ ها در فرهنگ غالب كه همان فرهنگ مصرف زده و سود محور آمريكايي بر محمل رسانه هاي ارتباطاتي و اطلاعاتي درحال فراگير شدن است، خواهيم بود. و مي بايست تدابير لازم در اين خصوص اتخاذ گردد. از آنجا كه جهاني شدن يك پديده پيچيده و چند بعدي است، انديشمندان رشته هاي مختلف علمي به فراخور زاويه ديد و مباحث مورد نظر در آن رشته به ارائه تعاريف مختلفي از اين پديده پرداخته اند.«پل سوئيزي»معتقد است كه:«جهاني شدن يك وضعيت يا يك پديدۀ(نوظهور) نيست، بلكه يك روند است كه براي مدتي بسيار طولاني جريان داشته است...سرمايه داري در ژرف ترين كنه و ذات خود، چه از لحاظ دروني و چه از جهت بيروني يك نظام گسترش يابنده است.هنگامي كه اين نظام ريشه دوانيد، هم رشد مي كند و هم به اطراف خود گسترش و تسّري مي يابد».در مقابل اين دسته، برخي از متفكران، جهاني شدن را به مثابه يك پروژه يا برنامه طراحي شده توسط كشورهاي ثروتمند و توسعه يافته تلقي مي كنند. چنانكه«سيزجي. هام لينك» نظر منتقدان جهاني شدن را اينچنين شرح مي دهد:« مسأله جهاني شدن يك برنامۀ سياسي نئو ليبرال است كه ابتدا منافع بازيگران قدرتمند را افزايش مي دهد. ميليونها كشاورز، مهاجر، جوانان، زنان و كارگران شهري كه زندگي بسيار فقيرانه اي دارند، از پيامدهاي منفي جهاني شدن آسيب مي بينند. آن ها در اقتصاد جديد جهاني ناديده گرفته شده وبه حاشيه رانده مي شوند».
«مالكوم واترز»، جهاني شدن را چنين تعريف مي كند:«فرايندي اجتماعي كه در آن قيد و بندهاي جغرافيايي كه بر روابط اجتماعي و فرهنگي سايه افكنده است، از بين مي رود و مردم به طور فزاينده از كاهش اين قيد و بندها آگاه مي شوند».در باره مفهوم جهاني شدن«جيمز روزه نا»،نظريه پرداز مكتب واقع گرايي در روابط بين المللي، معتقد است كه«جهاني شدن، فرايندي است كه در وراي مرزهاي ملي گسترش يافته وافراد، گروهها، نهادها وسازمان ها را به انجام رفتارهاي يكسان، يا شركت در فرايندها، سازمان ها يا نظام هاي فراگير ومنسجم وا مي دارد.
ويژگي ها و اثرات جهاني شدن
با عنايت به تعاريف جهاني شدن، مي توان گفت كه اين فرايند آثار و تبعات سياسي، اجتماعي، اقتصادي و فرهنگي فراواني در پي دارد كه اهم آن ها عبارتند از: از بين رفتن مفهوم پيشين زمان، مكان، فاصله و مرزهاي جغرافيايي سياسي و در نتيجه دگرگوني عميق در روابط اجتماعي، تحديد و تهديد حاكميت«دولت- ملتها» گسترش حقوق بشر و دموكراسي در سراسر جهان، پيدايش شهرهاي جهاني مفاهيم جامعه مدني جهاني و شهروند جهاني، پيدايش نابرابريهاي اجتماعي در درون طبقات مختلف جامعه، گسترش تروريسم در سطح جهان، اشاعه ارزش هاي ليبرالي در سطح جهان و ايجاد بحران هويت در كشورهاي جنوب كه شكاف نسلها و بيگانگي اجتماعي جوانان با ارزش هاي فرهنگي خويش از جمله پيامدهاي آن است،تسهيل حركت سرمايه و نيروي كار بر فراز مرزهاي بين المللي،«مهاجرت پنهان"نيروي انساني متخصص از طريق فناوري هاي نوين ارتباطي نظير شبكه هاي تلوزيوني ماهواره اي و شبكه جهاني اينترنت،مهاجرت و فرار نيروهاي انساني متخصص در «فناوري برتر»از كشورهاي جنوب به قطب هاي فناوري كشورهاي شمال مانند«درۀ سيليكون» در كاليفرنيا.هركدام از اين تأثيرات علاوه بر اينكه اثرات متفاوتي را با توجه به شرايط فرهنگي، اجتماعي، اقتصادي وسياسي كشورها بر جاي مي گذارد،در روابط ميان كشورها و فرهنگ ها نيز تأثيرات عميقي به وجود مي آورد و به ايجاد و افزايش شكاف ميان كشورهاي برخوردار و غير برخوردار مي انجامد. بنابراين موارد ذكر شده مي توان گفت جهاني شدن كه به تعبير روشنتر جهاني شدن نظام سرمايه داري است،در پي ايجاد وگسترش روحيه سرمايه داري است. واگر بپذيريم كه روح نظام سرمايه داري دستيابي به حداكثر سود است، و در اين فرايند فردگرايي و منافع فردي ترويج مي گردد،درآن صورت به درجه اختلاف اين فرهنگ با فرهنگ ايثار و شهادت كه در پي دروني نمودن از خودگذشتگي است، پي برد.هرچند جهاني شدن منافع ونتايج مثبت فراواني نيز دارد، ليكن برخورد با اين پديده نياز به هوشياري و آمادگي دارد، جلوگيري كرد، بلكه با ميراث فرهنگي غني اي كه در اختيار داريم بتوانيم با نيازهاي فرهنگي ساير جوامع نيز پاسخي شايسته ارائه كنيم.
پيشرفتهاي فناوري و آسيبهاي فرهنگي
فناوري و تأخير فرهنگي(Cultural Lag)
كشورهايي كه به بلوك غرب مشهورند در يك فرهنگ ديالكتيكي به اين دليل كه همزمان با تغييرات فناوري در بعد مادي(بخش عيني)، توانسته اند بخش نامادي(ذهني) آن را نيز همزمان و يا با تأخيري اندك ايجاد نمايند و به اصطلاح فرهنگ سازي كنند، اثرات مخرب كمتري را متحمل شده اند و شايد بهتر است گفته شود متناسب با نيازهاي فرهنگي خود دست به اختراع و ابداع زده اند و چون سوداي جهانگيري نيز داشته اند، اين مصنوعات را با قابليت استفاده مردم ديگركشورها توليد كرده و صادر مي نمايند. به عنوان مثال شركت مايكروسافت نرم افزارهاي توليدي خود را براي فروش بيشتر و به انحصار در آوردن بازار، آن ها را با قابليت كاربرد به زبان هاي محلي متعدد مجهز نموده است.(مصداق جهاني انديشيدن و محله اي عمل كردن). ورود اين فناوري ها به كشورهاي وارد كنندۀ آن به دليل عدم تطابق ميان عين و ذهن باعث بروز مشكلاتي گرديده است زيرا در اين گونه جوامع پيش از به وجود آمدن نياز، اين گونه فناوري ها و روشها وارد شده به دليل ورود شتابان فناوري ها، فرصت كافي براي بازتوليد فرهنگ بومي خود را نداشته و به همين دليل دچار تأخير فرهنگي شده اند. لازم به ذكر است كه اين پديده در تمامي جوامع رخ مي دهد. با اين تفاوت كه در كشورهاي توليد كننده فناوري ها اين فاصله كمتر است. در نتيجه پيشگيري و يا حل بموقع آن امكان بيشتري دارد.
كشورهاي پيشرفته صنعتي و كشورهاي عقب مانده(نگهداشته شده) به لحاظ تفاوتي كه ميان آن ها از لحاظ نحوه رشد و برخورد با فناوري ها دارند بدين صورت است كه:
در كشورهاي صاحب فناوري نيازهاي مختلف فرهنگي، اجتماعي، اقتصادي و سياسي منجر به پيدايش فناوري مي شود ولي در كشورهاي وارد كننده فناوري: ورود فناوري پيدايش نيازهاي جديد و تحت الشعاع قرار دادن فرهنگ بومي به دليل عدم تناسب (همخواني) زمينه هاي فرهنگي و ورود فناوري ها را در پي خواهد داشت.
به عبارت روشنتر در كشورهاي پيشرفته صنعت هم پاي فرهنگ رشد كرده و در كشورهاي ديگر فرهنگ بومي، خصايص فرهنگي كشورها ي صنعتي را به خود گرفته است. پديده تأخير فرهنگي در ارتياط مستقيم با هويت فرهنگي جوامع قرار دارد يعني بيشترين اثر اين پديده در هويت فرهنگي جوامع نمودار خواهد شد و به گسست فرهنگي مي انجاميد.
گسست فرهنگي نيز از جمله مباحثي است كه در اين زمينه تبيين كننده شرايطي است كه باعث مي شود انتقال فكر و تجربه از گذشته به حال وآينده دچار مشكل شود. چنين بريدگي مانع انتقال ميراث ملي،سنن وآداب و رسوم نيك گذشتگان به نسل بعد مي شود بگونه اي كه نسل امروز ممكن است تصور كند كه هيچ وقت چيزي براي گفتن نداشته و بايد از صفر شروع كند.تكرار اين از صفر شروع كردنها خود بحران هاي فردي و اجتماعي را دامن مي زند وعدم تعادلها را استمرارمي بخشد.
نادر نقشينه در مقاله اي با عنوان وجه تيره حركت به سوي جامعه اطلاعاتي در اين رابطه مي نويسد:" غوطه وري مهار نشد در فضاي سيبر نتيكي و قرار گرفتن در معرض آن، در بهترين حالت نيز اقدامي مخاطره آميز خواهد بود.قطعا همۀ جوامع از انقلاب اطلاعاتي سود نخواهد برد؛ برخي از اين جوامع ممكن است به دليل فقدان زير ساختار و حفاظ هاي نامناسب حتي زيان ببينند
همان گونه كه قبلاًگفته شد؛ رشد سريع فناوري ها، تغييرات وسيعي را در بخشهاي مختلف زندگي اجتماعي بوجود آورده است.اين تغييرات از محيط منزل، تفريحات، آموزش ودرمان و تابسياري زمينه هاي كلان جهاني مانند تجارت، حقوق بشر، امنيت ملي و...در حال گسترش است. اين تحولات سريع در ابزارها و شيوه ها ي زندگي و مصنوعات، تأثيرات متفاوتي را بر فرهنگ ملتها بر جاي نهاده است.
به تعبير گي روشه" فناوري به عنوان يكي از عوامل عمده تغير در كنار عواملي چون جمعيت، محيط جغرافيايي، نژاد، ساخت اجتماعي و اقتصادي وضع آگاهي و شعور و اعتقاد ديني همواره مورد توجه انديشمندان بوده است. انقلاب فناوري جرياني است كه به نظر«گي روشه» از حدود دو قرن پيش تا كنون، تغيرات عميقي در جامعه و در دنيا به وجود آورده است. جريان اين انقلاب جوامع روستايي را دگرگون، فرهنگ هاي سنتي را از هم پاشيده و راه توسعه اقتصادي، اجتماعي وسياسي را براي ديگر كشورها گشوده است." سازمان هاي جنايي،پيشرفت هاي فناوري اي اطلاعاتي را مغتنم مي شمارند و دائماً در جستجوي روش هاي نويني هستند تا بدين وسيله، منافع خود را به حداكثر و هزينه ها را به حداقل برسانند.در واقع؛ فناوري هاي اطلاعاتي، بويژه رايانه ها و شبكه هاي ديجيتالي پيشرفته، براي اهداف سازمان هاي جنايي يك اهرم اعمال فشار بوده اند. مثال شاخص استفاده از شبكه جهاني وب براي آگاهي يافتناز دستور العمل هاي توليد مواد مخدراست.« مواد مخدر ساخته شده " همچون«استاسي» باعث شده كه براي عرضه مواد مخدر،سايت هاي اينترنتي مرتبط با مواد شيميايي رواج يابند. درواقع، شبكه جهاني وب به يك رسانۀ عالي تبديل شده است كه از طريق آن مقدار زيادي مواد مخدر به دست مصرف كنندگان مي رسد. بويژه آن هايي كه در جستجوي اين هستند تا مواد مخدر ساخته شده را خريداري كنند.در واقع، شبكه جهاني وب، براي دست يافتن تعداد زيادي از مصرف كنندگان مواد مخدرمخصوصاً آنهايي كه در جستجوي اين هستند تا مواد مخدر ساخته شده را خريداري كنند.درواقع، شبكه جهاني وب، براي دست يافتن تعداد زيادي از مصرف كنندگان مواد مخدر مخصوصاً آن هايي كه متكي به خريد داروهاي ساخته شده هستند، به رسانه كاملي تبديل شده است. يك نمونه ديگر، گسترش فعاليتهاي سازمان يافته جنايي از طريق سوء استفاده از فناوري هاي اطلاعاتي انگيزه هاي زيادي براي اين تجارت ايجاد كرده است.هيچ كار ديگري به اندازه صنعت پورنو گرافي از اينترنت سود نبرده است، زيرا اينترنت براي تجارت پورنو گرافي زمينه بسيار مناسبي است. بسياري از حلقه هاي پورنوگرافي كودكان مخفي بوده و با و با سوء استفاده از شبكه هاي ديجيتالي مي توانند به راحتي از چنگ قانون فرار كنند.اگر چه، جرايم سازمان يافته سنتي، عمدتاً در پي بدست آوردن رضايت خاطر بودند، اما جرايم شبكه هاي فراملي در پي سود اندوزي هستند. اين گروهها، با استفاده از اينترنت در حال پيشرفت هستند.اين گروهها،با استفاده از اينترنت در حال پيشرفت هستند؛ اعضاي اين گروهها تصاوير و تجارب خود را با يكديگر مبادله كرده، در برخي از موارد، كاربرد ارتباطات اينترنت منجر به وسوسۀ كودكان براي ملاقات هاي شخصي مي شود.
پيشرفت فناوري،آسيبهاي فرهنگي و سياستهاي استعماري
از آنجا كه،پيشرفت علم و فناوري در كشورهاي اروپايي از قرن شانزدهم به اين طرف از رشد فزايندي برخوردار شده بود، برخي از اين كشورها،مانند انگلستان، فرانسه، هلند و بلژيك با صدور فناوري خود(بويژه استعمارگران انگليسي)، به كشورهاي صاحب انرژي و صاحب نيروي انساني ارزان قيمت(ازجمله كشور ايران) توانستند سيستم فرهنگي و سياسي خود در ميان افكار و انديشه قشر تحصيل كرده و با سواد، رسوخ و رونق دهند. هنوز هم در اكثر كشورهاي آفريقايي، ساكنان آن ها به زبان هاي فرانسوي و انگليسي نه تنها صحبت مي كنند، بلكه اين زبان ها جزوزبان هاي رسمي شناخته شده اند. در كشور ما، ارتباط علمي و فرهنگي در طول قرن بيستم نسبت به قرنهاي گذشته از رشدو گسترش قابل توجهي برخوردار شد.(لازم به توضيح است كه ايجاد امكانات مناسب در برقراري و تحكيم پايه هاي علمي،پژوهشي و فرهنگي بين ملت ها از اساسي ترين و زير ساختارهاي مهم در توسعه پايدار به شمار مي رود و امروزه هيچ كشوري بدون برقراري اين نوع روابط،قادر به ادامه حيات نيست).اما،از آنجا كه كشورهاي استعمارگر براي توسعه اقتصادي، صنعتي و توليدي خود، نياز به تأمين انرژي ارزان قيمت داشتند و هنوز هم،هدفشان برقراري ارتباط با كشورهاي صاحب انرژي، در اساس، به خاطر دسترسي و بهره برداري از منايع انرژي زا مي باشد.لازمه دسترسي به اين منابع گذر از موانع (غالباً فرهنگي) است كه در كشورهاي برخوردار از منابع وجود دارد و كشورهاي استعمارگر براي گذر از اين موانع، برنامه هاي متنوع سياسي را تدارك مي بينند. رفتارهاي يكصد سال گذشته كشورهايي مانند انگليس آمريكا با كشورايران و عكس العمل هاي مختلف در برابر آن توطئه ها مي تواند به عنوان نمونه هايي از اين موارد آورده شود.
غربيان ابتدا با بهره گيري از قدرت نظامي برتر خود كه آن را نيز مديون تحولات فكري و فناوري خود بودند، اوضاع و احوال" استعمار كلاسيك" را بر اكثر قريب به اتفاق مناطق جهان حاكم ساختند و در مقطع بعدي با استفاده از برتري اقتصادي خويش"امپرياليسم نو" را پديد آوردند و امروزه نيز با بهره گيري از فناوري ارتباطات، نفوذ و سلطۀ خود را به نحوي ديگر استحكام مي بخشند كه در ادبيات و مكتوبات انقلاب اسلامي از اين پديده به "تهاجم فرهنگي" تعبير مي شود.
در مقابل چنين تهاجم همه جانبۀ سياسي/ نظامي، اقتصادي/ فناوري/فكري و فرهنگي غرب، جوامع مسلمان و از جمله جامعۀ ايراني واكنشهاي متعدد و متضادي را به نمايش گذاشتند. به گفته" ريچارد كاتم" در مقابل آنهايي كه به مسأله نوفذ غرب اهميت مي دادند سه راه حل وجود داشت تا به مبارزه طلبي غرب پاسخ دهند.
آن ها مي توانستند بدون قيد و شرط تسليم شوند و فرهنگ غربي را با همان سرعتي كه مي توانست جذب شود قبول كنند؛ مي توانستند با غرب در تمام جلوه هايش بجنگند ومي توانستند به يك موقعيت دفاعي تر عقب نشيني نمايند. در واقع هر يك از اين سه راه حل در ايران هواداران خود را داشت.
جريانات و حوادث مورد اشاره و نفوذ فرهنگ و تمدن غرب، منازعاتي را در درون جامعۀ ايراني اواخر دورۀ قاجاري و عصر مشروطيت پديد آورد كه از آن به " بحران هويت ايرانيان" تعبير مي شود. اين بحران در ايران از دورۀ قاجار بتدريج شكل گرفت، در انقلاب مشرو.طۀ ايران تجلي عيني و عملي پيدا كرد؛ در دورۀ رضا شاه با پيروزي غير مذهبي ها ادامه يافت و در نهايت در حوادث انقلاب اسلامي ايران به شكل تعارض ميان گروههاي مذهبي، سنتي و محافظه كار از طرف ديگر جلوه نمود كه در نهايت با غلبه طيف سنتي- مذهبي همراه شد.
بنابراين جامعۀ ايراني در مقطع عصر جديد تحت نفوذ و تأثير فرهنگ و تمدن بيگانه از سنت خويش فاصله گرفت و دچار بحران هويت شد، ولي انديشه وران،متفكران و نخبگان ايراني هيچ گاه اين موضوع زا به صورت آگاهانه، قاطع و جدي به بحث و بررسي نكشيدند و از اين رو منافع، مصالح و استراتژي ملي و سرانجام هويت ملي نيز به روشني تبيين و توجيه نشد. بنابراين وفاق و اجماع نظر كلي در مورد چنين مفاهيم اصلي به وجود نيامد و منافع، مصالح و استراتژي ملي در كش و قوسهاي متعدد ميان طيف تجدد طلب از يك طرف و طيف سنتي و مذهبي از طرف ديگر يله و رها شد كه اين امر خود، توسعه و ترقي ايران را با دشواريهاي بي شماري روبرو ساخته و مي سازد.
اينترنت، چت و آسيبهاي فرهنگي ناشي از آن
شبكه اينترنت همانند يك محل مجازي ملاقات عمومي شهروندان جهان است، يك نقطه تلاقي عمومي است كه در آن ميليون ها نفر با هم در رابطه قرار مي گيرند و سازمان عظيمي را تشكيل مي دهند. اينترنت به افارد اجازه مي دهد طيف وسيعي از كارها را انجام دهند و افارد با استفاده از پست الكترونيك يا چت، با افارد ديگري كه در نقاط دور دست قرار دارند، ارتباط برقرار كنند و اين امكان را پيدامي كنند تا روزانه ديدار مجدد داشته باشند. برخي در وب، به بازي هاي اينترنتي مي پردازند تا از اين طريق سرگرم شوند يا وقت بگذرانند. برخي ديگر به جست و جو وكسب اطلاعات مي پردازند.برخي نيز براي دريافت خبرهاي هواشناسي، اخبار جالب و شنيدني، اخبار و رويدادهاي ملي يا بين المللي، اطلاعات تجاري و اخبار سياسي به سراغ رسانه هاي آن لاين مي روند.قاعده كلي حاكم بر اينترنت استفاده از اطلاعات به گونه اي آزاد است. ابعاد كاربري اينترنت به دو صورت است: مي تواند به عنوان تكنولوژي ميانجبي ميان فردي ، براي پيوندها و روابط اجتماعي، حل مشكلات، ادامه ارتباط و اقناع و تبليغ مورد استفاده قرار بگيرد.
2-مي تواند به عنوان وسيله ارتباط جمعي، براي مقاصد اطلاعاتي و فراغت مورد استفاده قرار بگيرد.
گمنامي افراد، سرعت ارتباطات و سيال بودن دراين فضاي مجازي است اين امر پيامدهايchat room از ويژگيهاي مهم فضاي گسترده اي را در روابط جنسيتي و الگوهاي ارتباطي و دوست يابي جوانان برجاي مي گذارد.وجود اين شرايط فضاي آزاد كننده اي را براي دسته اي از جوانان پديده آورده و مرزبندي هاي رايج جنسيتي و اجتماعي را در فرهنگ جوانان كمرنگ نموده ومي نمايد. ارتباطات اينترنتيدر محيط هاي چت، ضمن آنكه تقويت كنندۀ روابط غيره وابسته به زمان و مكان گرديده است، به محلي براي جستجووارضاي كنجكاوي هاي جوانان نيز تبديل شده است.علاوه بر اين،فضاي مجازي و ديجيتال اينترنت صورت هاي جديد، مشاركت هاي اظهاري و عاطفي را جايگزين صورت هاي متداول مشاركت سياسي و اجتماعي در عرصه هاي «حقيقي» جامعه ساخته است.استدلال بر اين است كه سرگرمي هاي مجازي اينترنتي عموماً تقليل سرمايه اجتماعي، انزوا و بريدگي از مشاركت هاي ) كه امكانchat roomمحسوس و عيني تغيير روابط از اجتماعات و گروه هاي آشنا به اجتماعات شبكه اي مي انجامد.در اين فضا(
برقراري ارتباط نوشتاري، صوتي و تصويري همزمان را براي كاربران بوجودآورده است، افراد با انگيزه هاي مختلفي وارده شده و با ديگران ارتباط برقرار مي كنند. بنا به گزارش وزارت ارتباطات و فناوري اطلاعات در ايران از هر هزار نفر 72 نفر به اينترنت دسترسي دارد.در بين اينها جوانان و نوجوانان زيادي علاقه مند ورود به اين اتاقها شده اند و خواسته هاي خود را جستجو مي كنند. بر اساس تحقيقي كه توسط پژوهشگاه فرهنگ، هنر و ارتباطات انجام شده هفت ميليون نفر كابرفعال اينترنت دركشور وجود دارد كه اين ميزان 2 برابر تيراژ مجموع مطبوعات كشور، كتاب ها و ساير گزارش ها ي منتشر شده مي باشد. بر اساس يافته هاي آن "اوركات" گسترده ترين شبكه از لحاظ دوست يابي است ايرانيان و مقام سوم در اين شبكه را بعد ازآمريكا و برزيل دارند. همچنين در اين شبكه تعداد زنان از مردان بيشتر است،64 درصد افراد مجردند و بيشتر اعضا سنيني بين 19-25سال را تشكيل مي دهند. بنا به يافته اي اين پژوهش 87درصد با انگيزه دوست يابي،33 درصد با انگيزه كارو شغل و 17 درصد با انگيزه قرار ملاقات وارد اين شبكه شده اند.تعداد كاربران در شهرهاي تهران، مشهد، شيراز واصفهان را بيشتر از ساير شهرها استو 80درصد افراد به موسيقي سنتي،20درصد به تركيبي از اين دو علاقه مندند.آنچه مسلم است اينترنت يك الزام است با در نظر گرفتن تمام ابعاد مثبت و منفي آن همچنين ابزاري است براي پر كردن اوقات فراغت و به علت غالب بودن محتواي غيره بومي آن مطمئناً به تغيير هنجارهاي فرهنگي منجر خواهد شد.اينترنت يك وسيله است و كابري آن بستهبه ميزان آگاهي كاربر تغيير مي كند. لذا بايد استفاده مفيد از آن آموزش داده شده و محتواي آن نيز از محتواي غني فرهنگي ايراني- اسلامي كه ارائه دهنده راه سعادت بشريت است، انباشته شود. در غير اينصورت اشاعه بدون نظارت و برنامه ريزي آسيبهاي جدي را متوجه فرهنگ ايثار و شهادت خواهد بود.واگر درست به اين پديده نگاه كنيم نه تنها تهديدي نخواهد بود كه فرصتي است براي گسترش و افزايش دامنه نفوذ فرهنگ ايثار و شهادت در دنياي كنوني كه خودخواهي و درنده خويي را ترويج مي نمايد.
تبيين رابطه پيشرفتهاي فناوري اطلاعات آسيبهاي اجتماعي و فرهنگي
يكي از منتقدان جدي تكنولوژي "نيل پستمن" است وي فناوري را مايه زوال مي داند. او بي آنكه تكنيك را به طور كلي نفي كند، آن را به باد انتقادات گزنده خود مي گيرد و تلاش مي كند در فضايي كه انسانها از پيشرفت هاي تكنولوژيك خود سرخوشند و به اين سبب علي الدوام به خود تبريك مي گويند، جبهه جديدي بگشايد و نشان بدهد كه اوضاع آنقدرها خوب نيست. پستمن در ((تكنوپولي" اختراعات را وسايلي تكامل يافته مي داند كه براي رسيدن به اهدافي تكامل نيافته به كار مي روند. معناي صريح اين سخن اين است كه انسان قرن بيست ويكم فاصله زيادي از بدويت نگرفته است. مسائل اساسي او هنوز حل نشده اند. عادات و خلقياتش هم دگرگوني چنداني نيافته اند. انسان قرن بيست ويكم هنوز هم علاقه زايد الوصفي به استثمار ديگران و حتي دريدن آن ها دارد. تنها اتفاقي كه افتاده اين است كه تكنولوژِ روش هاي موثرتر و بهداشتي تري در اختيار او گذاشته است! وي عقيده دارد آدمي نسبت به دوره پارينه سنگي عقب تراگر نرفته باشد، چيزي جلوتر نيامده است. زيرا انسان مدرن چند قرن است كه از شاهراه تكامل برون افتاده و در بيراهه راه مي پيمايد.پستمن بي آنكه معترض فلسفه اي در پس تكنيك خفته است بشود،آن را مقصر اصلي مي داند. انسانها در جازده و بلكه جانب قهقرا رفته اند ه اين دليل كه اجازه داده اند تكنولوژي بر آن ها مسلط شود و معاني ارزشهاي اساني را دگرگون سازد- چيزي كه نبايد نسبت به آن نا اميد بود- تكنيك مثل هر محصول بشري ديگر محتاج تربيت و كنترل است. وقتي آن را به حال خود بگذاريد، هستند كساني كه براي مقاصد ناصواب خود از آن استفاده مي كنند.
به نظر دوركيم جامعه يك موجود زنده است و افراد مثابه ياخته هايي هستند كه اعضاي اين جامعه را تشكيل داده و به صورت يك موجود زنده از نظر همبستگي اجتماعي متحول مي شوند. جوامع به طور مستمر از حالت ابتدايي و ساده به حالت مدرن و پيچيده سير مي كنند و در هر مرحله همبستگي هاي قبلي فرو مي پاشند و همبستگي هاي جديدي جاي آن ها را مي گيرد. جوامع ابتدايي از يك نوع همبستگي سلولي- مكانيكي ساده برخوردارند. ويژگي اساسي اين نوع جوامع وجود يك وجدان جمعي و همگاني بسيار قوي است؛ به گونه اي كه وجدان فردي در چنين جوامعي تا حد زيادي زير سيطرۀ وجدان جمعي است.
به تدريج جوامع از حالت ابتدايي خارج شده و به سوي نوگرايي پيش مي روند، همبستگي هاي اجتماعي پيشين فرو مي پاشند. اين در حالي كه هنوز همبستگي هاي اجتماعي جديدي شكل نگرفته اند؛ از اين رو در حالت گذرا جوامع از يك مرحله به مرحله ديگر- به عنوان مثال از حالت ابتدايي به پيشرفته- همبستگي اجتماعي به ضعيف ترين نقطۀ خود مي رسد و نيروهاي گسستگي در اوج قرار مي گيرند. در چنين حالتي است كه جوامع دچار سرگشتگي و بي هويتي شده، به تعبير دوركيم حالت"آنومي" درجوامع پديد مي آيد. اين حالت تا زماني استمرار خواهد يافت كه جامعه از حالت گذرا خارج شده، درمرحلۀ بعدي استقرار يابد. در اين مرحلۀ جديد از تحول اجتماعي، نيروهاي همبستگي جديدي به وجود مي آيند و جامعه از حالت آنومي خارج مي شود. بنابر نظر دوركيم، جوامع همانند ارگانيسم دچار تحول و در نتيجه عدم انسجام و گسيختگي مي شوند. گسيختگي مورد بحث، شباهت زيادي با نظريۀ روانشناسان در مورد فقدان ارزشها و هنجارهاي يگانه در ذهن فرد و يا تعدد شخصيت در فرد دارد. حالت گسيختگي در فواصلي كه جامعه از يك مرحله به مرحله ديگر در حال گذرا است به وجود مي آيد. در چنين وضعيتي وجدان مشترك جامعه به زوال مي گرايد، ارزشها و هنجارهاي قبلي فرد فرو مي پاشند،چندگانگي ارزشي در سطح جامعه پديدار شده و جامعه دچار تعدد شخصيت مي شود. اين وضعيت در مرحله گذرا و نوسازي جوامع اتفاق مي افتد. درحالت نوسازي، همبستگي جديد به وجود نيامده اند. از اين رو حالت سر گشتگي يا آنومي در سطح جامعه نمايان مي شود. نوسازي جامعه موجب پيدايش گروههاي جديد و جابجايي گروههاي قديم مي شود. اين گروههاي جديد به ناچار بايد خود را با وضعيت نو تطبيق بدهند و هويت جديدي به دست آورند.
از نظرات دوركيم چنين بر مي آيد كه تاريخ در دو بعد حركت مي كند؛ در حالي كه يك بعد از حركت تاريخ شامل نوسازي، تقسيم كار، افزايش پيچيدگيها و پيدايش نيروهاي گسستگي است، بعد ديگر آن در برگيرندۀ پيدايش همبستگي هاي جديد است. از اين رو در هر جامعه اي به طور مستمر نيروهاي گسستگي پيدا مي شوند كه در برابر نيروهاي همبستگي ايستادگي مي كنند. بنابراين يك نوع تضاد و كشمكش هميشگي ميان اين نيروها برقرار است.جامعه ما نيزبه دليل ورود فناوريهاي نوين در معرض تغييرات عميق فرهنگي، اجتماعي، اقتصادي و سياسي قرار گرفته و در حاليكه بخش سنتي جامعه ما قواعد پيشين و همبستگي بيشتر نيروهاي اجتماعي تأكيد دارد، بخش مدرن و نوگرايي جامعه در حال تجربه جديدي از روابط در فضايي مجازي است و شكل جديدي از روابط فردي و اجتماعي را شكل داده و يا در حال شكل دادن است.در حاليكه جامعه هنوز آمادگي پذيرش اين تغيرات را ندارد و قواعد آ« را به وجود نياورده، به نظر مي رسد دچار نوعي آنومي در اين بخش گرديده است. نمونه هاي آن را مي توان از نگراني پدران ومادران نسبت به دوستيهاي اينترنتي فرزندان خود و مشكلات به وجود آمده ناشي از دوستي هاي اينترنتي و ازدواجهاي اينترنتي دانست.
بحث و نتيجه گيري:موضوعاتي مانندجهاني شدن، تأخير فرهنگي اينترنت، چت، سياستها و اقدامات كشورهاي استعمارگر و موضوعاتي از اين قبيل مورد توجه اكثر دانشمندان رشته هاي مختلف علمي بوده است.
هركدام تلاش نموده اند تا از زوايه نگاه خود به اين موضوعات نگاه كرده و آنها را تحليل نمايند. به طور كلي سه ديدگاه درباره فناوريهاي اطلاعاتي وارتباطي وجود دارد.دسته اول كساني اند كه سر سختانه از وجود و گسترش اين پديده دفاع مي كنند
وسعي آنها در برجسته نمودن منافع اين فناوريهاست (مانند تافلر). دسته دوم كساني اند كه در مقابل گروه اول بوده و تلاش آنها بر بزرگنمايي مضرات فناوريها و به ويژه فناوريهاي نوين اطلاعاتي و ارتباطاتي است. اينان معتقدند تكنيك مثل هر محصول بشري ديگري محتاج تربيت و كنترل است. وقتي آن را به حال خود بگذاريد، هستند كساني كه براي مقاصد ناصواب خود ازآن استفاده مي كنند. كساني مانند اريك فرومنيل پستمن در اين دسته قرار مي گيرند. در دسته سوم كساني قرار دارند كه نه موضعي متخاصم گرفته ونه اين پديده دفاع مي نمايند. بلكه بيان مضرات و منافع استفاده از فناوريها نوين اطلاعاتي و ارتباطاتي را وجهه همت خود قرار داده و سعي نموده اند تا موضعي روشنگر داشته باشند بي آنكه بخواهند يكجانبه از موضعي خاتص جانبداري نمايند. كاستلز را مي توان در اين دسته قرار داد.
آنچه مسلم است، ناگزير بودن استفاده از فناوريهاي نوين ارتباطاتي است بدون شك ورود هر پديدۀ نويني به جامعه پيامدهايي خواهد داشت. فناوريهاي نوين اطلاعاتي و ازتباطاتي به كشور ما در نتيجه تحولات جهاني و جهاني شدن به كشور ما وارد شده است.همانگونه كه پيش از اين اشاره شد؛ تقريباً از هر هزار نفر ايراني هفتاد و دو نفر به اينترنت دسترسي دارند كه اين رقم در حال افزايش است. ما ناگزير از پذيرش شرليط جديدي هستيم كه دراثز اين تغيرات و پيشرفتهاي خواسته ناخواسته برما تحميل شده است. اين بدين معنا نيست كه بايد دست روي دست گذاشت و منتظر بود تا هر آنچه خواهد اتفاق بيفتد. و يا اينكه كشورهاي استعمارگر استفاده از اين ابزار به اهداف خود كه همانا سلطه مداوم بر ديگر كشورها برسند. بلكه همانگونه كه در نتايج يكي از پژوهشها آمده بود، تأثير لين فناوريها به ميزان آمادگي و تمايل شهروندان هر جامعه براي كاربرد اين فناوري در جهت تحقق اهداف آن حوزه بستگي دارد. و بايد بپذيريم تكنيك مثل هر محصول بشري ديگري محتاج تربت و كنترل است. وقتي به حال خود رها شود، براي مقاصد ناصواب از آن استفاده مي شود و يا به تعبيري بهتر نفي و يا انكار آن به منزله واگذارتر نمودن بازار به رقيباني است كه در صدد دستيابي به اهداف خود هستند. لذا با توجه به فراگير بودن تأثيرات فناوريهاي جديد و اينكه همه فرايندهاي حيات فردي و جمعي ما مستقيماً توسط فناوريهاي جديد شكل داده مي شو.دند(گرچه يقيناً توسط آن تعيين نمي شوند) و تمامي اجزاي جامعه تحت تأثير اين فناوريها قرار دارند، لازم است با كسب آمادگي و آگاهي نسبت به تمامي جوانب اين پديده با هشياري كامل به استقبال آن برويم و از منافع بيشمار آن بهره برده و از تبعات منفي آن تا حد امكان بكاهيم. قبل از آنكه به تعبيرات اريك فروم با استفاده از اين فناوريها مردم ما را شستشوي مغزي داده و ما را وادار به خريد اشيايي كنند كه نه نياز دازيم و نه خواهان آن هستيم، بتوانيم با استفاده از همين ابزار و روشهابه تبليغ و اشاعۀ فرهنگي همت گماريم كه به تعبير بزرگان ما مي توا ن نجات دهندۀ بشريت از آلام كنوني باشد و ما را به جايي رهنمون سازد كه كنترل و فكر وانديشه خود را داشته باشيم و با تسلط كامل به فكر و مغز خود مرعوب و مغلوب روشهاي تبليغي غرب كه از روش تخدير ذهن استفاده مي كنند، نشويم. اگر تعبير كاستلز را از فناوري ارتباطات و اطلاعات بپذيريم كه اينترنت امكان ظهور جامعه اي شبكه اي را فراهم آورده كه فاراد و جوامع را در درون قالبهاي تازه، هويت هاي تازه مي بخشد و تعاريف تازه اي از انسان عرضه مي دهد، بايد جهت گيري ما به سمتي باشد كه بتوانيم ضمن حفظ و نهادينه نمودن شاخصهاي هويت فرهنگي و اجتماعي خود در ميان اعضاي جامعه، بتوانيك الگويي از يك شخصيت سالم و هويت سالم جهانيان ارائه نمايم.
در آخر اينكه هرچند شناخت كامل نسبت به آسيب هاي فرهنگي مستلزم تحقيقي جامع و در فرصت زماني مناسب است و پرداختن به اين موضوع كه حائز ابعاد گوناگون ووسيعي است در يك مقاله كوتاه و در فرصتي اندك وجود ندارد ولي تلاش گرديده موضوعاتي جديد كه مي تواند آسيب هاي اجتماعي و فرهنگي در كشور ما را در پي داشته باشد به طور مختصر بررسي شوند تا شايد هشداري باشد براي كساني كه دغدغه فرهنگ اسلامي- ايراني دارند.
براي آآسيب شناسي همه جانبعه فرهنگ ايثار و شهادت بايد تمامي ابعاد جامعه به دقت موشكافي گردد. اهم موضوعاتي كه بايد در نگاه همه جانبه مد نظر قرار گيرد سياستهاي كلان در طي سالهاي گذشته و سياستهاي كلي بيست سال آينده است كه بايد به دقت تحليل شوند.
در انتها برخي از سرفصلهايي كه مي تواند در يك مطالعه جامع مي بايست مد نظر قرار گيرند، آورده شده است و لازم است هركدام به تفصيل مورد بحث قرار گيرند.
زمينه هاي فرهنگي و اجتماعي آسيب شناسي فرهنگ ايثار و شهادت
نفوذ انديشه هاي بيگانه، تغيير جهت دادن انديشه ها، تجدد گرايي افراطي در برابر تمسك به اسلام، دنيا طلبي و اشتغال به زينت هاي دنيايي، بوروكراسي مفرط و فساد اداري و اجتماعي، حاكم شدن روحيه ريا و تملق بجاي اخلاص و ايثار،اشاعه فساد، فحشا و ارتشاء، تأثير پذيري از جنگ رواني و تهاجم فرهنگيف بحران هويت اجتماعي بخصوص مابين جوانا و نسل هاي پس از انقلاب، فرار مغزهاو...
زمينه هاي سياسي آسيب شناسي فرهنگ ايثار و شهادت
ناتمام گذاشتن آرمان هاي نهضت، ابهام در برنامه ريزي و سياست گذاري براي آينده، رخنۀ فرصت طلبان، تفرقه و درگير شدن در گرداب اختلافات داخلي و استفاده نكردن از نيروهاي مردم، شفاف نبودن مواضع گروه ها، افراد و جناح ها در سطح جامعه، بي تفاوتي مردم نسبت به سرنوشت كشور، ايجاد ترديد درآرمان هاي انقلاب، در خطر قرار گرفتن امنيت مظلومين، عدم امنيت حقوقي، سياسي و حيثيتي مردم،جدي نگرفتن تخصص در امر حكومت و سياست، بروز ابهامات و چالش ها در سياست خارجي، بازگشت استعمار به طريق آشكار و پنهان،
زمينه هاي اقتصادي آسيب شناسي فرهنگ ايثار و شهادت
وابستگي اقتصادي به قدرت هاي بيگانه، نداشتن برنامه هاي بلند مدت و كوتاه مدت براي رشد اقتصادي و توسعه كشور، عدم توجه به بحران هاي اقتصادي ناشي از روند توسعه، عدم وجود فرهنگ كار و انضباط اجتماعي، رانت گرايي، جدا شدن مردم از برنامه هاي دولت در طرح هاي سازندگي، افزايش فاصله طبقاتي
منابع:
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http://www.isu.ac.ir/Publication/Research-Quarterly/Research-Quarterly-01/Research-Quarterly-0105.htm
http://www.isu.ac.ir/Publication/Research-Quarterly/Research-Quarterly-01/Research-Quarterly-01.htm
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